चढ़ते सूरज | Chadhate suraj
चढ़ते सूरज
( Chadhate suraj )
चढ़ते सूरज की सवारी मेरे सिर पे आ गई ।
हम सफर थी मेरी परछाई उसे भी खा गई ।।
आपको जुल्मों का कर के तजुर्बा तारीफ में ।
कर रहा था बयां कड़वाहट जुबां पे आ गई ।।
सहन करने के अलावा और कुछ वश में नहीं ।
हादसों के बीच में इतनी अकल तो आ गई ।।
आ गया आगाज से अंजाम की जानिव सफर ।
जो चली तहरीर झवले से कफन पर आ गई ।।
इन्तजारे यार बस्ले मौत का बाइस बना ।
इश्क की अंजाम तक ‘कौशल’ कहानी आ गई ।।
लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)