चाह के चाहत | Chaht ke Chahat

चाह के चाहत

( Chaht ke Chahat )

चाहत बा कि तु हमरा मे,
हम तोहरा मे बस जईती
जियत मुअत हसत खेलत
बस तोहरे नाम ही गईति

तीनो लोक के तु स्वामी
दास तोहर बन जईती
तोहर गोड के धोअल धुल
माथा पे लगईती

तन मन धन सब तोहर
हर जन्म मे तोहके ही पईती
मांग मे सिंन्दुर तोहसे
जियत, मुअत अउर मुअले पे सजवईती ।

रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
[ पुव सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु ]
एवं वर्तमान अधिवक्ता ( सिविल कोर्ट , बगहा)
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सब के फुलईले चल

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