नवरात्रि पर्व (चैत्र)

( Navratri Parv )

सप्तम दिवस

भुवाल माता का स्मरण सदा साथी
इस जग में कोई दूसरा न साथी है ।
भुवाल माता पर श्रद्धा मानो
दीपक में है यदि स्नेह भरा तो
जलती रहती बाती है ।
उसके अभाव में लौ अपना
अस्तित्व नहीं रख पाती है ।
इस जग में कोई दूसरा न साथी है ।
भुवाल माता पर श्रद्धा मानो
फूलों पर मधुपों की टोली
गुन्जाती अपनी प्रिय बोली
प्रमुदित होकर पीती पराग
मँडराती गाती मधुर राग |
इस जग में कोई दूसरा न साथी है ।
भुवाल माता पर श्रद्धा मानो
पेड़ों पर पंछी आते है
कलरव कर मोद मनाते है
वे फुदक – फुदक शाखाओ पर
अतिशय अनुराग दिखाते है ।
इस जग में कोई दूसरा न साथी है ।
भुवाल माता पर श्रद्धा मानो
स्वार्थ से परमार्थ की और है
निस्वार्थ प्रीति की और है
बन जाते सभी अपने
आत्मा का सुख जहाँ हैं ।
इस जग में कोई दूसरा न साथी है ।
भुवाल माता का स्मरण सदा साथी
इस जग में कोई दूसरा न साथी है ।

षष्ठ दिवस

भुवाल माता अलौकिक, ज्योतिपुञ्ज ,
छविधाम , ह्रदय की सम्राट
उभरता स्मृति – पट पर
स्वयंमेव माता का
व्यक्तित्व विराट
भुवाल का दर्शन
दिव्य प्रकाश स्तम्भ
मानो अविरल व्याप्त है
धरा पर सदा नवीन सौरभ
कलाकृति भव्य , उदार
स्नेह- मेदूर नयनों से आज
उसको देखता है संसार
कमल – चरणों में
भुवाल माता के
बारम्बार विश्व
करता प्रणाम ।

पंचम दिवस

भुवाल माता मनुज
रूप में थी ईश्वर
सिद्ध कोई लोकोत्तर
करुणाविल
प्रांजल अदभुत
माता का रूप
वत्सलता का
अविरल निर्झर
प्राणिमात्र के लिए
उच्छ् वसित
नवयुगल से
अमित अनुग्रह
चुम्बकीय आकर्षण
आभामण्डल का
परिक्षेत्र है
इतना व्यापक
यान्त्रिक युग में भी
नहीं होता दृष्टिगत
भुवाल माता मनुज
रूप में थी ईश्वर

चतुर्थ दिवस

भुवाल माता की
कथा विलक्षण ।
विश्व – क्षितिज पर
हुई माता प्रतिष्ठित
भुवाल माता के
दर्शन मंगल
जुड़ा तार से तार
प्रफ़ुल्लित है
मानस – उत्पल
भुवाल माता को
घटित परस्पर
होता भावो का
सही से सम्प्रेषण
भुवाल माता है
अतुल्य प्रतिबिंबन
भुवाल माता की
मूरत पावन
भुवाल माता की
कथा विलक्षण ।

तृतीय दिवस

भुवाल माता को नमन हमारा ।
जिस हिमगिरी से हुई प्रवाहित
पावन प्रेक्षा – गंगाधारा ।
भुवाल माता को नमन हमारा ।
माता का दर्शन
पौरुष के साक्षात निदर्शन
सत्य के प्रति आकर्षण
दैव तुल्य स्वरूप निहारा ।
भुवाल माता को नमन हमारा ।
पारदर्शी , ऋजु , निश्छल
प्रवर आभामण्डल
अमृतस्रावी प्रांजल
कालजयी अजस्र
नयनाभिराम स्वरूप ।
भुवाल माता को नमन हमारा ।
सृष्टि की कमनीय कलाकृति
सौम्य , मनोज्ञ , प्रभावक आकृति
नहीं दृष्टिगत कोई अनुकृति
जिस पर न्यौछावर जग सारा
भुवाल माता को नमन हमारा ।
अपनी गति से काल बहेगा
युग प्रताप की कथा कहेगा
सतत चमकता नाम रहेगा
सदियों तक जैसे ध्रुवतारा ।
भुवाल माता को नमन हमारा ।
ओम् अर्हम सा !

द्वितीय दिवस

ज्योति से चरण
तिमिर हरण
विजय वरण
भुवाल माता को
कोटि – कोटि वन्दन ।
सौम्य सा वदन
स्निग्ध नयन
क्षमा सदन
भुवाल माता को
कोटि – कोटि वन्दन ।
मलय सा पवन
सुरभि सघन
ताप शमन
भुवाल माता को
कोटि – कोटि वन्दन ।
श्रेय है शरण
भाव प्रवण
करे स्तवन
हर धड़कन
भुवाल माता को
कोटि – कोटि वन्दन ।

प्रथम दिवस

धन्य आज का मंगल क्षण है ।
भुवाल माता को वन्दन है ।
भुवाल माता के दर्शन
भरते है प्राणो में पुलकन
ढूँढ रहा पर भुवाल माता को
व्रजाहत – सा यह विरही मन ।
भुवाल माता का साया
सबको मन में सुहाया
किन्तु कहाँ वह माँ है
जिसने श्रम से हमको बनाया ।
भुवाल माता गौरवशाली
फलावनत जिसकी हर डाली
जिसने फसले नई उगाई
नहीं दिखती वह स्वयं इकतारी ।
भुवाल माता ने सबको समाया
माता से कुछ नहीं छिपा
उड़ते प्राण हँस को रोके
क्या ऐसा गुर हमको नहीं सिखाया ।
धन्य आज का मंगल क्षण है
भुवाल माता को वन्दन है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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