Kavita Akelapan
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अकेलापन

( Akelapan )

 

आज कल
अकेलापन महसूस कर रहा हूं
ना जाने क्यूं ऐसा लगा
दादी की कहानी
दादा जी का लाड
मां की ममता
ओर खोया बहुत
चिढाचारी का खेल
जोहड़ के किनारे रिपटना
गुल्ली डंडा
बेट बोल का खेल
सब खो गया
ईंटों से घर बनाना
रेत से घर बनाना
सब दूर हो गया
आज मैं अकेला हूं
मेरे साथ है
घर की जिम्मेदारी
बच्चों की पढ़ाई की चिन्ता
राशन पानी की चिन्ता
मैं अकेला हूं
मेरे साथ न बाप है न भाई
ना ही कोई असनाई
सब दूर चला गया
लौट कर आना चाहता हूं
लौट नहीं पाता
परिवार होने के बाद भी
अकेला महसूस हो रहा है
क्योंकि दोस्त मित्र सब चले गए
अपने अपने काम पर
घर का आंगन भी सिकुड़ गया
जब मेरे पिता के भाई अलग हुए
आज भी सिकुड़ गया यारों मैं
जब भाई भाई से अलग हो गए
कोई नहीं सुध लेने वाला
कभी कभी मैं प्रसन्न हो जाता हूं
जब बच्चों के साथ बेट बोल खेलता हूं
फिट्टो खेलता हूं
कैरम बोर्ड खेलता हूं
अकेला हूं

Manjit Singh

मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )

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