चिंता | Chhand chinta
चिंता
( Chinta )
मनहरण घनाक्षरी
चिंता चिता समान है, तन का करें विनाश
खुशियों से झोली भरे, थोड़ा मुस्कुराइए।
छोड़ो चिंता जागो प्यारे, खुशियां खड़ी है द्वारे।
हंसो हंसाओ सबको, माहौल बनाइए।
अंतर्मन जलाती है, आत्मा को ये रुलाती है।
अधरो की मुस्कानों को, होंठों तक लाइए।
मत कर चिंता कभी, बैठा जग करतार।
रखता हाथों में डोर, हरि को मनाइए।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )