शारदे माँ

( 16 , 14 मात्रा पर यति अनिवार्य
30 मात्रा का मात्रिक छंद
पदांत गुरु वर्ण अनिवार्य ) 

 

भक्तों को विद्या देती हैं , कृपा शारदे माँ करतीं ।
दिखा मार्ग भी उत्तम हमको , बुद्धि ज्ञान से ही भरतीं ।।
अपने शरणागत पर माता , हाथ माथ अपना धरतीं ।
भक्तों से प्रसन्न होकर माँ , आशीष सदा ही वरतीं ।।१।।

छंद-शास्त्र में रचना रचते , मुक्त-छंद में कुछ कविता ।
शब्दों में हैं भाव समाहित , जैसे चमके है सविता ।।
ख्याति बढ़े रचना से इतनी , चहुँओर फैलती हरिता ।
भाव बहें मन के सब ऐसे, बहती है जैसे सरिता ।।२।।

दोहा रोला चौपाई में , रचते अपनी हम रचना ।
खूब प्रगति के सपने दिखते , सच होता है हर सपना ।।
कुण्डलिनी कुण्डलिया कुण्डल , छप्पय सब अच्छे लगते ।
सोरठा सवैया बरवै में , हम रचना सर्जन करते ।।३।।

 

Vikas Aggarwal

विकास अग्रवाल “बिंदल”

( भोपाल )

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