चिंता की रेखाएं | Chinta par kavita
चिंता की रेखाएं
( Chinta ki rekhayen )
जीवन पथ है सरल,सरस कोमल किसलय सा
फिर मधुर जीवन क्यों ,हो जाता है विषमय सा
खिच जाती है आर ,पार जीवन के पथ पर
दिख जाती है खिंची, तनी उभरी मस्तक पर
कहती करुण असहन, वेदना मनुष्यता का
जीवन-सुख बिनु तड़प, तड़प मन तन में जीता
चिता से बढ़कर हो, जाया करती तब चिंता
पक्षाघात सा बिक्षत जीवन, दुर्लभ व्यथित हो जाती
चक्की बधी सी पैरों में, जीना मुश्किल कर जाती
कहां से क्यों कब आ जाती ,भरी वेदना की आंधी
टूट बिखर उड़ जाते प्रबल,पल भर में हर सुख शांति
जीवन है गर प्रेम, रीति नीति विधि का बंधन
चिंता भी है अंग एक,मन में करने का चिंतन
चिंता सिखाता सीख,सभल कर चल अपने पथ
पहले दे तु त्याग,बसाये इच्छा का हठ
चलते रहोगे संग, जब तलक इच्छाओं के
होगा ना सुख चैन,सदा मन में भावों के
चिंता चित का चोर,चुराता चतुराई को
तन मन लेता छीन, छीनता मधुराई को
लोभ मोह मद छोड़ मनुष्य, चिंता त्याग रहो सुख से
समय से पहले मिलता क्या? घबड़ाना है ना दुःख से
समय से पहले होता क्या? क्यों घबड़ता है इतना?