चिट्ठी और संदेश
चिट्ठी और संदेश
तेरी यादें, हवाओं में सजी हैं,
हर आहट में तेरी कोई कड़ी बसी है।
चिट्ठी न कोई, न ही कोई पैगाम,
तेरे बिना वीरान लगे ये सारा जहां तमाम।
तेरे जाने का दर्द, अब भी दिल से उतरता नहीं,
हर रास्ता तेरा पता पूछता है, कहीं पर भी रुकता नहीं।
जाने वो कौन सा देश है, जहाँ तेरा बसेरा है,
तूने क्यों छुड़ाया हाथ, तेरे जाने से ये जीवन अंधेरा है।
आंसुओं की धारा है, हर गली का किनारा है,
तेरे नाम की गूंज है, हर बात में तेरा सहारा है।
क्या कोई संदेश छोड़ कर गई थी तुम,
जो अब भी मेरे हर ख्वाब में गूंजती हो तुम।
अगर कोई छोर हो, तो बतला,
मैं पहुंच जाऊंगा वहां,
तेरे बिना अधूरी हर राह, हर दुआ यहाँ।
लौट आ मेरे दर्द को सुकून देने,
तेरे बिन ये दिल में दर्द की धूम मची है।
तेरी यादें, हवाओं में सजी हैं,
हर आहट में तेरी कोई कड़ी बसी है।
कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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