आज बस्ती के चौराहे में बहुत चहल पहल थी, शहर के कोई न्यूज रिपोर्टर आए थे, कैमरे के सामने हाथों में माइक पकड़े हुए वो वहां के लोगों से आगामी चुनाव के बारे में सवाल पूछ रहे थे।

रामप्रसाद जो अपने काम पर जाने को निकला था उसे रोकते हुए रिपोर्टर ने पूछा….एक मिनट जरा रुकिए क्या आप हमारे कुछ सवालों के जवाब देंगे, इस पर रामप्रसाद रुक गया और कैमरा ऑन कराके रिपोर्टर ने पूछा कि कुछ दिनों बाद चुनाव होने हैं तो इससे उन्हें क्या उम्मीदें हैं।

रामप्रसाद बोला साहब उम्मीदें हमें क्या होंगी, हमारा तो जीवन वैसे ही गुजरना है रोज सुबह काम पर जाओ जी तोड़ मेहनत करके अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम करो, ये चुनाव से उम्मीदें तो नेताओं को होंगी उनकी रोजी रोटी का सवाल जो है, ऐसा कहकर रामप्रसाद अपने काम पर जाने निकल गया।

सामने से आ रही एक औरत को देखकर रिपोर्टर ने कैमरामैन को फिर तैयार रहने को कहा, फिर उन्होंने मैले कुचैले फटेहाल कपड़ों में लिपटी और गोद में एक मासूम बच्चे को संभाली हुई उस औरत को रोककर पूछा…… आपके क्षेत्र में चुनाव की घोषणा हुई है आप आने वाले चुनावों को किस नजरिए से देखती हैं।

इस पर वो औरत बोल पड़ी….देखना क्या है साहब बस इन्तजार कर रहे हैं कि कब चुनाव नजदीक आए तो हमें भरपेट खाना मिले पहनने को नए कपड़े मिलें आखिर पांच साल में एक बार ही तो लोगों को हम गरीबों पर दया आती है।

बाद में तो हमें अपने हाल पर जीना ही है, कहते हुए वो आंखों में आंसू लिए अपने बच्चे को संभालती हुई अपनी झोपड़ी की ओर चल पड़ी।

अब रिपोर्टर ने चौराहे के चारों ओर नजरें दौड़ाई वहां बस्ती में उसे चारों ओर झुग्गी झोपड़ी, गरीबी लाचारी और भुखमरी के जो दृश्य दिखे तो अब उसने किसी से और कुछ पूछना उचित नहीं समझा और कैमरामैन को वापस चलने का इशारा किया।

 

रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

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