
कोरोना काल का पक्ष एक और!
( Corona Kal Ka Pach Ek Or )
जरा सोचें समझें कैसा है यह दौर?
भविष्य हमारा किधर जा रहा है?
देखो कोई चांद पर मंगल पर बस्तियां-
बसा रहा है!
उधर हम देख सोच भी नहीं पा रहे हैं
हम अनजाने डर से डरे जा रहे हैं
भय के मारे मरे जा रहे हैं।
मास्क भी पहने हैं
हैण्ड वाश और सैनिटाईज्ड भी किया है
कमोबेश एहतियात उनके सारे फाॅलो किया है!
फिर जाने क्यों डराया जा रहा है
सताया जा रहा है
ठेलियां पलट गरीबों को रूलाया जा रहा है।
डर इतना घर कर गया है मन में-
निकलने से कतरा रहे हैं।
पहले देते थे उदाहरण-
देखो निडर वो अभागन-
पीठ पर बच्चे को बांध,
बिल्डरों की सीढ़ियां रही है फांद!
वो देखो कैसे पैंतालीस डिग्री तापमान में,
बच्चे को बांध पेड़ की डाल में!
तोड़े जा रही है पत्थर,
जाने कैसी है वो निष्ठुर?
उनमें प्रकृति से लड़ने की क्षमता ज्यादा होगी या कम?
पहले यही कथन कहते थे न हम?
हृदय पर हाथ रख कर सोचो ,
हो अगर दम।
हमारे बच्चों की प्रकृति से लड़ने की क्षमता हो रही है कम,
बिना जरूरत विटामिन की गोलियां ले रहे हैं हम।
टीवी पर विज्ञापन रोज आता है
“डर के आगे जीत है”
पल में भूल जाते हैं?
सबक कोई सीख नहीं पाते हैं!
जब बच्चों की प्रकृति से लड़ने की क्षमता होगी कम,
तो निश्चय ही इस धरती विलुप्त होंगे हम?