दादी की जादुई सीख
दादी की जादुई सीख
दादी ने पोती को गोद में बिठाया,
चश्मे से झांककर प्यार से मुस्कुराया
“सुनो बिटिया, तीन मंत्र मेरे,
जीवन को बनाएंगे रंग-बिरंगे तेरे!”
ज़िंदगी में तीन चीज़ें न छोड़ना,
हर पल को सुंदरता से जोड़ना।
पहला, पहनना सबसे सुंदर वस्त्र,
हर दिन लगे जैसे कोई उत्सव मस्त।”
चुनरी में तेरी चमकते सितारे हो बुनें,
जूतों में बजें जिंगल-जंगल के झुनझुने!”
पोती बोली,
“पर दादी, मैं तो सिंपल ही पहनूं सोते-जागे,
न ग्लिटर, न स्पार्कल, न ही रेशम के धागे!”
दादी ने मुस्कुराकर समझाया,
स्नेह भरे शब्दों में यह बताया—
“मैजिक यह याद रखो, बन जाएगी पहचान,
आत्मविश्वास से ओढ़ो तुम अपना हर परिधान।”
“दूसरा, घूमो दुनिया की अद्भुत गलियों को,
एडवेंचर से बढ़ाओ तुम अपनी शक्तियों को।”
पोती ने प्रश्न किया, थी दबी जुबान,
“पर दादी, नहीं है धन, फिर कैसी उड़ान?”
दादी ने बालों को सहलाया,
और फिर प्यार से यूं समझाया—
“हर नक्शे को मान के जादुई तू बेटी,
कल्पना कर, हर सेकंड देगा नई दृष्टि।
देखना है दुनिया को ले यह संकल्प,
चाहे ना हो फ्लाइट, मिल जाएगा विकल्प।”
“तीसरा, संभालना अपने खजाने को ऐसी हो हुनरी,
जिन्हें चुरा सके ना कभी कोई जिन्न या परी!”
पोती ने पूछा,
“पर कहाँ है पास हमारे इतना धन?
न हीरे, न मोती, ना सोने का उपवन!”
दादी ने फिर बाहों में भरा,
आँखों में ममता का सागर झरा।
“तेरे रिश्ते, तेरी यादों का है जो संसार,
सबसे अनमोल दुनिया में है यही उपहार।
माँ का प्यार, पापा का गुदगुदी वाला गीत,
दोस्तों की हँसी, और दादी की ये सीख!”
पोती की आँखें चमकीं फ़ायरफ़्लाई सी,
“समझ गई! ये सब हैं सुपरपावर सी!”
दादी ने दिया चॉकलेट कहा गले से लगाकर,
“अब जाओ, बनो दुनिया की क्वीन ऑफ़ एडवेंचर!”

चंद्रेश कुमार छ्तलानी
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