De sahara poem
De sahara poem

दे सहारा जिंदगी भर इस अभागा के लिए

( De sahare jindagi bhar is bhaga ke liye )

 

 

दे सहारा जिंदगी भर इस अभागा के लिए

अब किसी को भेज दे रब इस तन्हा के लिए

 

नफ़रतों की लग रही है धूप मुझको ही बहुत

प्यार की बैठूं  जिधर मैं भी छाया के लिए

 

है ख़ुदा इसका जहाँ में सिर्फ़ लोगों देखिए

कौन है वरना यहाँ इस बेसहारा के लिए ।।

 

रोज़ मेरे पीछे मेरी करते हैं चुगली बहुत

बात करता है मगर मुझसे  दिखावा के लिए

 

मत जुदा कर ऐ सनम अपने से मुझको आज तू

है जरूरत प्यार की तेरे हमेशा के लिए

 

व़क्त कटता ही नहीं तेरे बिना भी आजकल

आ सनम मिलनें ज़रा तू एक लम्हा के लिए।।

 

अब गिला करना भी आज़म अपने दिल से छोड़ दे ।

इसलिए मैं फूल लाया हूँ  महबूबा के लिए।।

 

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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