दिसंबर गुज़रा
दिसंबर गुज़रा
तेरे वादे पे कहें क्या ऐ-सितमगर गुज़रा
राह तकते ही फ़कत अपना दिसम्बर गुज़रा
जनवरी से ये नवम्बर का महीना है अब
इतनी मुद्दत में इधर से न वो होकर गुज़रा
काश वैसा ही गुज़र जाये महीना यह भी
जितना रंगीन तेरे साथ सितम्बर गुज़रा
शायरी करते हैं कहने को हज़ारों शायर
मीर ग़ालिब सा न कोई भी सुख़नवर गुज़रा
हम जिसे देख के दो चार ग़ज़ल कह लेते
तेरे जैसा न कोई दूसरा पैकर गुज़रा
इसलिए लोग मुझे शौक से पढ़ते हैं यहाँ
मेरी ग़ज़लों से तेरा अक्स बराबर गुज़रा
जिस पे लिख्खा था मेरा नाम किसी ने साग़र
मेरे सर के ही बराबर से वो पत्थर गुज़रा
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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