धन्य त्रयोदशी
धन्य त्रयोदशी
सबसे निस्पृह महावीर प्रभु अनंत चतुष्टय रत रहते,
समवसरण की बाह्य लक्ष्मी पर भी चौ अंगुल स्थित रहते,
कार्तिक मास की त्रयोदशी पर तीर्थंकर पुण्य भी त्याग दिया,
सारा वैभव पीछे छूटा प्रभु एकल विहार रत रहते !!
धन्य हुई कार्तिक त्रयोदशी आपने योग निरोध किया,
मन वच काय साध आपने आत्म तत्व को शोध लिया ,
योग रोध की महा प्रक्रिया अद्भुत विस्मयकारी है,
धन संबंधी मिथ का गुरू से धर्मीजन ने बोध लिया !
नहीं संबंध धन वैभव का त्रयोदशी पर जैन दर्शन में,
अंतिम बार तीर्थंकर वाणी खिरी थी समोशरण में,
गूंज उठी ये दसों दिशाएं धन्य धन्य के जयकारों से,
अंतर्ध्यान हो गए वर्द्धमान आत्म तत्त्व के शोधन में !
आप समान योग को नाश हमें कर्मास्रव को रोकना है,
तड तड कर टूट जाएं कर्म ऐसी निर्जरा करना है,
आत्म लीन हों छोड़ ममत्व देह से अंतिम क्षण में,
मोक्ष कल्याण कर हमको अपना मुक्ति रमा को वरना है!
विरेन्द्र जैन
( नागपुर )
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