धुँधले ख़्याल | Dhundhale Khayal
धुँधले ख़्याल
( Dhundhale Khayal )
ये लम्बी रातें यूँ कट जाती आँखों आँखों में,
जब रेत बनकर भर जाती हैं यादें आँखों में,
तमाम तर कोशिशें की है हाल में जीने की,
ये ज़िंदगी बीतती जाती है धुँधले ख़्यालों में,
सोचा यह दुनियावी मोहब्बतें सुकूं देगी हमें,
मगर वो तो मिलती है बस मौत की बाँहों में,
माज़ी के ख़्याल अक्सर बेचैनियां दे जाती है,
पर किसी का नाम न होता दर्द-ओ-आहों में,
इस धुँधले ख़्याल में खोके चंद लम्हे जी लेते,
वरना कुछ नहीं रखा दहर के बाग़ो-बहारों में!
आश हम्द
पटना ( बिहार )