दिल हमारा जलाते गये
राज उनको बताते गये।
और वो आजमाते गये।।
रोशनी चाहिए थी उन्हें,
दिल हमारा जलाते गये।।
मंजिलें ले गया कोई और,
हम तो बस आते जाते गये।।
भूल कर अपनी औकात को,
चांद से दिल लगाते गये।।
जैसे ही बात रुख़शत की की,
आंसुओं से नहाते गये।।
वो मेरा खून पीते रहे,
और हम मुश्कराते गये।।
दीप जलता रहा रातभर,
शेष हम गुनगुनाते गये।।
लेखक: शेषमणि शर्मा”इलाहाबादी”
जमुआ,मेजा , प्रयागराज
( उत्तरप्रदेश )
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