दिल लगाने की यहां सबको सजा मिलती है
दिल लगाने की यहां सबको सजा मिलती है

दिल लगाने की यहां सबको सजा मिलती है

 

 

दिल लगाने की यहां सबको सजा मिलती  है।

दिल लरज़ता है कभी रूह भी यहां तङफती है ।।

 

कौन रूसवा ना हुआ आकर यहां गलियों में।

पंक में ही तो मुहब्बत की कली खिलती है।।

 

नाम थकने का न लेती है ज़माने में ये।

ये शमा वो है कभी बुझती है फिर जलती है।।

 

प्यार की ख़ातिर भटकती है ये वीरानों  में।

ठोकरें खाती है गिर-गिर रोज संभलती है।।

 

कब मिला इकबाल किस को ईश्क में ए”कुमार”।

अश्क बनती है कभी ये ग़ज़ल में ढलती है।।

 

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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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