दोहरा चरित्र | Dohra Charitra
दोहरा चरित्र
( Dohra charitra )
दोहरा चरित्र अपनाता है चीन,
बाहरी लोगों को सताता है चीन।
है खोट नीयत उसकी विस्तारवादी,
दादागिरी अपनी दिखाता है चीन।
मारती है लात उसकी इज्जत को दुनिया,
चेहरे पे चेहरा लगाता है चीन।
अम्न का है दुश्मन देखो जहां का,
दोगली चाल से न बाज आता है चीन।
नापाक हरकतें डुबाएँगी उसको,
औरों के मजहब को आँख दिखाता है चीन।
दो पैसे कमाने जो भी गए वहाँ,
नहीं सिसकियाँ लेने देता है चीन।
देखो,बनता है दुनिया का शहंशाह वो,
गैरवाजिब तरीके से हक़ जताता है चीन।
दुपट्टों में वो सूख जाते हैं आँसू,
इज्जत की पगड़ी उछालता है चीन।
ख़ुफ़िया सुरंगें बनाना उसकी फितरत,
हीरे जैसी जमीं को छीनता है चीन।
हँसना-खिलखिलाना भूल चुके अपने,
बेडौल स्वभाव अपना छिपाता है चीन।
बन्दरगाह हथियाना उसके बाँएँ हाथ का खेल,
लीज का जाल बिछाता है चीन।
रफ्ता-रफ्ता आर्थिक निर्भरता बढ़ाता,
खाल संप्रभुता की तब उतारता है चीन।
दे करके ऋण मचाता है भारी तबाही,
अपने चंगुल में उन्हें फँसाता है चीन।
अफ़्रीकी देशों ने भी लिया है उससे कर्जा,
बारी -बारी से गला दबाता है चीन।
इस तरह सबको फँसाया मकड़जाल में,
बाद में उन्हें मोहताज बनाता है चीन।
चीख,चीत्कार उनकी न सुनता यूएनओ,
मौत के आँगन में सुलाता है चीन।
सजदा करने से भी लोग वहाँ डरते,
बुलडोजर दीन पर चलाता है चीन।
रौंदता है बेखौफ़ होकर लाचारों को,
ऊबड़खाबड़ दिमाग़ से उन्हें नापता है चीन।
भूटान, ताइवान, जापान, इंडोनेशिया,
सभी को आँख दिखाता है चीन।
आँख है उसकी छोटी वैसे दिमाग़ भी है छोटा,
दूसरों का पसीना चाटता है चीन।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )