डॉक्टर दीपक गोस्वामी की कविताएं | Dr. Deepak Goswami Poetry
दर्पण में अर्पण देखा
मैं को तज कर
नेह रंग रच कर
ख़ुद से मंझ कर
नभ पर सज कर
दर्पण में अर्पण देखा है
जीवन में सब सच देखा है
खूब कमा कर
जोड़ जुटा कर
चांद मुड़ा कर
बिन ऑंसू क्रंदन देखा है
रो रो कर हँस कर देखा है
खुद से छिपकर
मेगा जिप कर
मनी की सिप कर
परछाई से खुद नप देखा है
गर्म सर्द हो तप देखा है
खुद का श्राद्ध कर
पेट पत्थर बांध कर
बिन स्वर निनाद कर
लहू को काला कर देखा है
अग्नि शिखा पर चल देखा है
खुद को खुद से जब देखा है
जारी—
मानव का स्वभाव
वेदना विरह की अहद इश्क ए मेहराब,
कैद में जकड़ी सी एक हिजाब।
गिरगिटिया जिन्नात का नकाब,
मद मस्त अलहदा सा खिजाब।
जिंदगी तिल तिल होती खराब,
अल्हड़ मस्ती सी पुरानी शराब।
रतजगों में कटे तिलिस्मी ख्बाब,
बिन ताज सत्ता होकर नवाब।
पीकर जीकर हर एक अभाव,
लश्कारा ए इश्क की चढ़ नाव।
किस्मत और कर्म का प्रभाव,
यही तो है मानव का स्वभाव।
सुगंध सुविचारों की
सुगंध सुविचारों की
सुहागन कोमल तन
यम को हराता कठोर मन
पति का सुरक्षा कबच
परिवार का जादुई जिन्न
बच्चों की ममतमयी माँ
रोज जीती है तिल तिल
पल पल खटती किस्तों में
आज भूखी प्यासी जीयेगी
एक और दिन नया अपने उनके लिए
आज करवा चौथ का दिन जीयेगी उसके लिए
कर पूजा नमन सत सत वन्दन अपनों के लिए
अपना सब कुछ सौंप देने वाले महान अबला मन
तुझे शत शत नमन वन्दन शत शत नमन
आगे बढ़
आसमान की छत पर चढ़ कर
आगे बढ़ चल डग पग नभ कर
सपने सच कर लड़कर डटकर
जिद्द से दिल से लक्ष्य पकड़ कर
संस्कारो की बगिया महका कर
खुशियों को जन जन चहका कर
शुभ नवचार घर घर पहुँचा कर
लड़ प्रतिपल खुद से कर्माकर
कर्म पथिक रात दिन एक कर
अंतिम क्षण तक शेष प्रहर कर
झुक रुक कर समय शोध कर
भेद शत लक्ष्य अभिमन्यु बन कर
अर्जुन बन षड्यंत्र भेदन कर
जीवन पथ नित नित खट कर
श्याम प्रभु का वन्दन नित कर
शतायु हो ऋद्धि सिद्धि यश पाकर
सद स्वास्थ्य मिले सद मार्ग पर जाकर
हर दिन मंगल शुभ हो प्रभु का चाकर
प्रेम नेह लुटा खुश रहो प्रभु नाम को गाकर
म से माँ
म से माँ
म से ममता
मिट्टी चढ़ उगी
काल्पनिक समता
मजबूर मजदूर
पर भाग्यशाली जरूर
वला फलाँ नही
अबला नही सबला गुरुर
नित निकलती है
जिम्मेदारी समेटे
आधी आबादी की शर्म लपेटे
डर हया तज
ईश्वर को भज
पसीने से सज
ले कर्म ध्वज
हद जिद से
गिर उठ के
बढ़ती सहज कदम से
माँ जो हूँ ना
ग्रह मणी भी
गृहणी भी
अक्ल नकल से दूर
परछाई में हूर
रोटी पेट की खातिर
धुँध में तलाश रही
अपने हिस्से का अखनूर
जिंदा हूँ तेरी खतिर ओ नन्हें मुन्नू
मजबूर मजबूत जैसा बबूर
पेट में धर महसूस कर
अपने अस्तित्व की झलक
बांध लांघ नाप हर फ़लक
चिंता छोड़ चढूँगी आसमान तलक
तेरा अप्रितम अस्तित्व और प्रेम
खिला देता मेरा रोम रोम
मेरी ताकत नन्हें हुजूर
आप अभी से हो मेरे भारत का नूर
दीवाना
मिट्टी की गठरी मांटी का
रूप रंग की काठी का
धन माया की चांटी का
गुलामी की परिपाटी का
हुक्मरानों की लाठी का
फेंकूँ छाया कदकाठी का
चाटुकारों की गांठी का
जर जोरू जमीन हांठी का
धर्म अमर बेल मन छांटी का
नशा मदमस्त गुलाटी का
भय डर के सहपाठी का
प्रभु चरणों की माटी का
राष्ट्र धर्म धर्म जाती का
मद से मंदित भांति का
चकोर को नक्षत्र स्वाति का
प्रेम प्रशंसा की ख्याति का
कोयल सुर में गाती का
दीपक को नेह वाती का
प्रभु मिलन की पाती का
डाक्टर दीपक गोस्वामी
आदर्श संस्कार शाला ।
अग्नि तप कर
अग्नि तप कर
भूख से लड़ कर
दिन रोज उपासा हो देखा है
सच में ख़ुद पर हँस देखा है
फटी ज़ेब संग
तिमिर शेष तंग
काजल से खुद रंग देखा है
सूरज में दर्पण देखा है
तानों के आशीर्वचन सह
काँटो की शूली पर नित रह
आसमान छत कर देखा है
हमने सच का फल देखा है
नयन नेह में रचकर बसकर
अश्रु के बादल से भिड़कर
गिर कर उठ कर फिर फिसल कर
भय तम का जंगल देखा है
मैंने खुद का कल देखा है
डाक्टर दीपक गोस्वामी
मथुरा ,उत्तर प्रदेश,भारत
फिर से जागा है रावण
फिर से जागा है रावण
कँहा है मेरे प्रभु श्री राम
राम तत्व को शत शत प्रणाम
अंनत शीश से पुष्ट दशानन
मुदित हँसता है नित अभिराम
कलयुग में सब खोजों तो राम
अब दशरथ से पिता विलोपित
जो थे सच्चे अंतिम जन चिंतक
ना अब कौशल्या सी माता राम
कलयुग में सब खोजों तो राम
खोये लक्ष्मण भरत शत्रुघन भ्राता
अब तो ना रिश्ता और नाता
घर घर चूल्हे मिट्टी से लड़ते
भाई भाई का दुश्मन हर गांव
कलयुग में सब खोजों तो राम
मंथरा हर गांव गली में फिरती
गौ माता कूड़े कचरे को चरती
कुत्ते बिल्ली हैं अब घर की शान
धन बल ही है नवयुग भगवान
कलयुग महा नायक है रावणराम
कँहा है मेरे प्रभु श्री राम
मर्यादाओ को तार तार कर
शर्म लाज को जुआ हार कर
स्वहित खातिर अनगिनत को मार कर
इठलाते खुद को समझ रहे हैं राम
कँहा है मेरे प्रभु श्री राम
वृदाश्रम में माँ बाप को भेजकर
भाई बहिन का हक छीनकर
झूँठ माया से जन जन को लूटकर
यौवन रूप मद के है दीवानेराम
कँहा गए मेरे प्रभु श्री रस्म
न्यांय की देवी है नयन मूँद कर
रक्षक भक्षक संग नेह गूंथकर
धर्म शास्त्रों को नित नित कोसकर
विश्व गुरु बन ज्ञान पेलते चंहु याम
कोई तो ढूंढो मेरे प्रभु श्री राम
जारी…………
चलो उठो
चलो उठो करो
कुछ अदभुत
बढ़ो
एक दिशा लक्ष्य
लड़ो
तम से दिल से
आसमान पर चढ़ो
पर इतराना मत
कभी मत डरो
डर के आगे जीत
रोज नई इबारत गढ़ो
जान लगा पूरी शिद्दत
अपनी कल्पनाओं को मढ़ो
बस अब मचलना है
अकल्पनीय संभावनाओं को तड़ो
दूरदृष्टि सुदूर वृष्टि
पतझड़ से मत झड़ो
टिके रहो लगातार
हाँ सच जीतना ही है
चाहें जाओ कितनी बार हार
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
तू मेरे मन का तार
तू मेरे जीवन का सार
तू ही सृष्टि
तू ही वृष्टि
तू ही जीवन सिंधु
तू ही प्रेम विन्दु
तू एक मर्यादा
तू जीती आधा आधा
तू मेरा मान
तू मेरा स्वाभिमान
तू है तो है परिवार
तू मत जाना कभी हार
तू तो है खुशियों का हार
लहरों से आगे करना तू नोका पार
नया सूरज करता तेरा इंतजार
ना बेटी कभी मत तू जाना हार
डर के आगे जीत है ज़िद की
चल आगे मंजिल के पार
इश्क़ बेहिसाब
अहद इश्क़ बेहिसाब
कैद में जकड़ा एक हिजाब
गिरगिटिया जिन्नात का नकाब
मद मस्त अलहदा सा खिजाब
इसके बिना जिंदगी खराब
अल्हड़ मस्ती की पुरानी शराब
रतजगों में कटे तिलिस्मी ख्बाब
बिन ताज सत्ता का नबाब
पी ले जी ले हर अभाव
लश्कारा ए इश्क चढ़ के नाव
जवानी किस्मत और शबाब
डाक्टर दीपक गोस्वामी
यादों का सफर
काँटो संग फूल हमसफर
पगडंडियों से आसमान पर
जीना बिना भय और डर
उड़ ले सपनों के पर
सावधान हो बेख़बर
मानवता हित थोड़ा रख स्वर
कमजोर नही हिम्मत हर प्रहार
खट्टा मीठा रूखा सूखा चरपर
सीख फिर चल अपने शहर
पूराने समय से सीख आएगी लहर
अपनों से मिल ले उनकी खैर ख़बर
मत्यु सत्य है बुराइयों से डर
थोड़ा नेकी खजाना तो भर
मचल सचल नई पहल तो कर
डाक्टर दीपक गोस्वामी
लड़ना मुझको
अंधकार से लड़ना मुझको
डर से आगे बढ़ना मुझको
आसमान की अंतिम हद से
चांद-सितारे लाने मुझको
जीवन, मत्यु का बिस्तर है
कर्म हमारा अभी कमतर है
दो-दो हाथ किए किस्मत से
तन-मन श्रम की खद्दर है
रोज लडूंगा रोज मिटूंगा
चढ़-चढ़ कर मैं खूब गिरूंगा
पर, जीवन की अंतिम बेला तक
पल-पल क्षण-क्षण रोज हंसूंगा।
साथ चल तो सही
दो कदम साथ चल तो सही
अंधेरे में मचल तो सही
अनकही सुन तो सही
दो दो साठ कर तो सही
बंदर बाँट कर तो सही
उल्टी खाट कर तो सही
विषबीज निगल तो सही
मोटा माल चुगल तो सही
टेड़ी चाल चल तो सही
भितरघात कर तो सही
तभी तो होगा ये सही
हम बंदर नहीं इन्सान हैं
हैवानियत से जुड़ी हमारी सही पहचान है
रोज रोज कहता हूँ यही
अब तो अपना चहेरा कर ले सही
थोड़ी जिंन्दगी निगल तो सही
दो कदम साथ चल तो सही
विश्व मुस्कान दिवस
आओ थोड़ा सा जी तो ले
एक पल खुशियों को सीं तो ले
रोना रुलाना नित खाना कमाना
रोटी बोटी लँगोटी सोटी और महखाना
दिन रात मायावी घनचक्कर और फ़साना
सिसक कसक बहक कर यूँ ही बड़बड़ाना
फिर कोसना खुद को भगवान पर उलहाना
किस्मत पर रोना और जमाने पर बड़बड़ाना
जिंदगी भर मुँह फुला रौतडू राम कहलाना
चार पैसा पद पाकर कमजोर को गरियाना
ये शरीर है प्रभु से मिला किराये का तहखाना
सेवा कर मत बहक कुछ दिन बाद है फिर जाना
मद दंभ और अकड़ से मत तन फिर होगा पछताना
हँसने के कुछ बहाने ढूंढ थोड़ा गम पी तो ले
अरे एक बार मुस्कुरा थोड़ा सा थम तो ले
अंतिम जन को खुशियों की पोटली बांट तो ले
निज स्वार्थ तज जन हित तम छांट तो ले
मुस्कान से जी निश्चल निस्वार्थ नेह प्रेम गांठ तो ले
अमन की बगिया से नफ़रत के कांटे काट तो ले
ओ मन
मत उथल पथल हो
रात कठिन है
दूर सवेरा
दीपक सूरज का
रोशन घेरा
अंधकार तम पर है तनता
जहर शम्भु के उर पर छनता
कोयल तो कूक रही है
पर बोली उसकी रुंधी हुई है
प्यार प्रेम ममता आँचल है
काली छाया की हलचल है
जुगनू सारे जग रौशन है
फिर भी सन्नाटे हरपल है
मन मेरा आतंकित क्यो है
नये सवेरे में क्या कुछ पल हैं
मैया रानी
मैया जी चढ़ पालकी आयी
चंहु खुशियां छाई
मंगल गान बजाई
बधाई बधाई
मन दरशन को भागा
नेह रोग है लागा
भक्ति भाव है जागा
सोया भाग्य है जागा
धन्य हुआ अभागा
मन प्रेम से पागा
फूलों की खुशबू
संग जोड़ समर्पण धागा
तन भवन कूँ भागा
बाजत ढप ढ़ोल नगाड़ा
दर्शन पाकर के मैया जी
तन मन धन सब हारा
मिल सब बोलो जयकारा
बोलो साँचे दरबार की जय
मैया रानी की जय
जगत जननी की जय
सुख मंगल करणी की जय
जनपथ
जनपथ पर चल
ले कर्म का हल
थोड़ा सा ढल
थोड़ा सा मचल
थोड़ा सा संभल
थोड़ा सा बहल
जल ही जल
बंजर में हल
बीज से फल
थोड़ी कोशिश चल
फिर फल ही फल
मत होना खल
तू गाता चल
गुनगुनाते चल
जन जन से मिल
ख़ुशी लुटाता चल
होकर पागल
चला रे हल
काँटो पर चल
मत कर कल
तू कर्मवीर पथिक
नही है मलमल
विश्व वृद्धजन दिवस
बूढ़ी अम्मा बूढ़ी नानी
सपनों की गुड़िया की कहानी
कहानीकारों की वो प्यारी नानी
माखन खीर सी मीठी नानी
मजहब प्रेम सिखाती नानी
दादी की वो कानी नानी
सपने गोद सुलाती नानी
मीठी डांट पिलाती नानी
ना जाने क्यों हुई पुरानी।
ना जाने कब हुयी बेगानी।
किस ने कर दी कानी नानी।
फिर लौटा दो बात पुरानी।
मेरा बचपन मेरी नानी ।
कितने काँटो के जंगल उगते
कितने काँटो के जंगल उगते
नित नए सपनों के खेत
जिद से जिंदा जो है स्वहित
जीवन सिर्फ मरुस्थल की रेत
स्वतंत्रता क्रांतिपुंज महानायक
युग शांति शक्ति ध्वज श्वेत
जन जंगल में आग लगी है
कोई तो नेह जल उपजाओ
जीवन में सहकार से जुड़ कर
अमन प्रेम भागीरथी लाओ
पढ़ना लिखना खूब समझना
धन से बढ़कर सम्बन्ध कमाओ
अपने लिए तो सब जीते हैं
अन्तिमज़न घर खुशी लुटाओ
तन मन धन से सदा स्वस्थ रहो
भारत को मिल विश्व गुरु बनाओ
कड़ी मेहनत नित डटकर सधकर
कर्मवीर तुम लक्ष्य को पाओ
जीवन के उलझे तारों को
मुस्कान लुटा कर खुद सुलझाओ
सफलता के मद में डूब तुम
ना इतराओ ना भरमाओ
जीवन की इस भूल भुलैया
प्यारे थक मत नित मुस्काओ
कौन क्या है
कौन क्या है कैसा है
उस पर कितना पैसा है
कितना रसूख और रंगबाज जैसा है
कितनों से अलहदा ऐसा वैसा है
अपुन रोटी राम के लिए सब एक जैसा है
अपने टूटे खुर्दबुर्द चश्मे से
जब एकटक देखता हूँ दूर तलक
बेनकाब दुनिया के इस हमाम में
हर इंसान नागा और हमपेशा हैं
प्रेम
प्रेम गली अति साँकरी
इत दो अंतस ना समाय
दो तन मन जब एक हों
तब प्रेम प्रीत उपजाय
काजर की कोठरी है प्रेम
ह्दय नेह पोटली है प्रेम
सहज मन में उपजे है प्रेम
निर्धन का धन है प्रेम
खुद ही हो जाता है प्रेम
खुद नेह लुटाता है प्रेम
जाति धर्म से परे प्रेम
रूप रंग देखे कभी प्रेम
नाम पता ना पूछे कभी प्रेम
तन मन धन सब हार कर जीता है प्रेम
शरीर वासना से परे प्रेम
नित नित बढ़ता है स्वयं प्रेम
ईश्वर स्वरूप है अमर प्रेम
सत्य वद
सत्य वद
धर्म चर
जीत दिल
कर्म कर
रोज मिट
सुकर्म पर
दुख हर
उपक्रम कर
हार मत
हर कर्म कर
जिंदगी एक
होम कर
प्यार बो
अमन कर
रो मत
मुट्ठियाँ गर्म कर
आँसू पोंछ
दिल मर्म कर
तू हार मत
सिर्फ कर्म कर
पहचानना है ये कौन ?
रहस्यमयी शत भुजी
दिव्यांका
रूपांका
झाड़ू वाली
पोछे वाली
चाय वाली
नाश्ते वाली
रोटी वाली
बर्तन वाली
आया
ट्यूटर
नर्स
बैंकर
ऑलवेज हेल्पर
सर्विसेज प्रोवाइडर
लाइफ स्पीड ब्रेकअप डिवाडर
वामांगी
बहु
पत्नी
मां
विन पैसा नोँकर
जिसने नही सीखा कभी ना कर
कर कर और करके मर
काकी, भाभी, चाची, दीदी
मौसी,फूफी, नानी ,दादी
टाइम मशीन टाइम पास
घरेलू सर्कस का जोकर
ताश के पत्ते का पोकर
विज्ञापन का पोस्टर
रील के हिट टोस्टर
लाफ्टर क्वीन
बच्चे बनाने की मशीन
ब्यूटी मीन
सदा चिंता महीन
जीती जगाती सोती रोती
अपने अपनो के लिए
अपने नही दूसरों के सपनों के लिए
नित मौन गम का प्याला पिये
बाजार की शान
मुस्कान की दुकान
लिए जिस्म आलीशान
पहचान मादा परेशान
थोड़ा खुशी थोड़ा दुखी
थोड़ी सी अफलूतान
थोड़ी सी महान
सदा परेशान
आज क्या बनाऊ
ऐसा क्या खिलाऊ
जिससे इनका वेट ना बढ़े
शरीर पर बुढापा ना चढ़े
हेल्दी टेस्टी और फटाफट
बच्चे भी खा जाए चटाचट
पेट में सेट भी हो जाये सफ़ाचट
और जाने क्या क्या।
हजारों हजार आंखों की वासना को झेल
अनचाहे नानसेंस टच को झेल
विन मर्जी जोड़ा बेमेल
फिर भी जीवन रेलम पेल
कंपनी स्कूल फैक्टरी ऑफिस
या अपने आसपास
कामकाजी वाकिंग मशीन को गौर से देखिए
महिला सजीव रोबोट
वर्किंग वूमेन ai सुपर शॉट
सुबह चलते चलते नाश्ता टिफिन बना
9 am to 9 pm काम कर निकल
बाजार से सामान चुन चुन भर झोली सकल
समय की चिंता प्रति पल
सवारती सजाती निहारती ह्दयतल
क्योंकि सब को खिलाना और नेह से सुलाना है
रात को देह मथ है सेज को सजाना
बिन मन खिसयानी ही सही पर है मुस्कराना
फिर सुबह है जल्दी भोर तड़के
थोड़ा सा योगा फ़ॉर फिटनेस करके
निकलना है नए कर्म पथ
कस लिए है जो अश्रु रथ
पसीने से हो लथपथ
होम होना है तन मन धन सत्य शपथ
यही है होना सदा मेरी किस्मत
क्योंकि पर्दानशीं है सदा अस्मत
कुछ बात तो कर
सुन खुद से खुद की एक मुलाकात तो कर
अपने अस्तित्व मन से कुछ बात तो कर
समझ जिंदगी इतनी परीक्षा रोज क्यों लेती है
दो पल ठहर खुद से खुद की मुलाकात तो कर
अपनी कमजोरियों और गुणों को जान
अपनी ताकत समझ सम्भावना को छान
शांत चित्त हो मन भीतर बैठे ईश्वर को पहचान
सुन सभी की पर सदा अपने मन की मान
तनावमुक्त रह कर अपनी खुशियों का गान
लक्ष्य सिद्ध कर्म पथ डट लगा दे पूरी जान
परिवार समाज से जुड़ दे सभी को सम्मान
लुटा खुशियों की पोटली छोड़ सभी अभिमान
एक बार सपनों से मिल चढ़ लक्ष्य स्वप्न यान
हार से ना डर सुनिश्चित जीतेगा रे तू पहलवान
गिर फिर उठ चल तेज लक्ष्य पथिक महान
मिट्टी से जुड़ नवाचारी कर कुछ नया सन्धान
अनुसंधान से निश्चित बनेगी तेरी नई पहचान
मुंगेरी लाल के सपनों से जाग उठ जीत जहान
चल एक बार खुद से मुलाकात तो कर
थोड़ा मुस्कुरा थोड़ा गुनगुना अपनों से बात तो कर
रे कर्मयोद्धा विषमताओं से दो दो हाथ तो कर
किस्मत जगा डर से मुक्का लात तो कर
जारी…
श्राद्ध
श्रद्धा से
विनम्रता से
भाव से
विश्वास से
रिश्ते खास से
अपनों को
अपने सुरक्षित सपनों को
अपने कुल मान को
समाज सम्मान को
पितरों को
भूले बिसरे मित्रों को
सन्यासी करे खुद का
अपनी जड़ चेतन सुध बुध का
नवाचार को
सद विचार को
वैदिक ब्यवहार को
सुरक्षित घर संसार को
डर से
संस्कृति के घर से
काल्पनिक पर से
क्योंकि श्राद्ध
सदैव समपर्ण है
तन मन धन अर्पण है
नेह का तर्पण है
कृतज्ञता का दर्पण है
अंनत अंनत तक हदयतल से श्रद्धा नेह भावांजलि समपर्ण है
पितृ पक्ष
सोलह दिन है श्रद्धा दिवस
नमन वन्दन हिय नेह कलश
देह प्रदाता ज्ञान गुण सरस
सत्यपथिक कुल भूषण परस
गृह लोक पधारें पितृ देव
पूजन वन्दन है पितृ देव
ह्दय सिंघासन अर्पित पितृ देव
नेह भोजन अर्पित है पितृ देव
शत शत वन्दन नित पितृ देव
नेह कृपा बुहारों पितृ देव
सब काज समारों पितृ देव
संकट सब टारो पितृ देव
काक कूकर गौमातः संग आए पितृ देव
श्रद्धा से भोग लगाओ जय पितृ देव
मिल सभी आरती उतारो जय पितृ देव
होय पूरन सब काजा कृपा पितृ देव
सब कष्ट निवारण कृपा पितृ देव
सब देव दुलारे जय पितृ देव
संकट दुख हारे जय पितृ देव
बढ़ी कुल फुलवाड़ी जय पितृ देव
चहुँ कीर्ति संपदा बाढ़ी जय पितृ देव
होय सब पूरन काजा जय पित्त देव
सब मिल नवाओ माथा जय पितृ देव
पितृ देव की कृपा सरस
नित अंतर्मन में छाय
पितृ देव सत्यप्रेम दर्श
पाय मन अंतर हर्षाय
डाक्टर दीपक गोस्वामी मथुरा
उत्तरप्रदेश , भारत
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