डॉक्टर दीपक गोस्वामी की कविताएं | Dr. Deepak Goswami Poetry
बबुआ ओ रे बबुआ

बबुआ ओ रे बबुआ
सुन, रे
अच्छे हैं हमारे दिन
कम से कम सुरक्षित तो हैं हम
तीन दिन से दूध नहीं मिला तुझे
तो क्या जिंदा हैं हम
अरे पगले मजदूर का बेटा
भूख से थोड़े ही मरता है
वह पत्थर ईट सरिया का
मजबूत मिश्रण होता है
जीवन के हर पल का सहता है घर्षण
रोटी और छत के सपने
और शहर की कमाई का आकर्षण
पल-पल श्रम साधना
तन-मन का बेमोल समर्पण
बेटा, जिंदगी नहीं है खेल
यह तो है एक जंग
तुम न होना कभी भी इससे तंग
जिद हो जीतने की
तो पसीना दिखाता है रंग
न हरा सकेगा कोई जब
सीख लोगे जिंदगी जीने का ढंग
इसलिए बबुआ,
आज नहीं कल सुनहरे दिन फिर आएंगे
खुशहाली प्रेम और सद स्वास्थ्य के तारे फिर टिमटिमाएँगे
दूर होगा अंधेरा भागेगा डर
कोई नहीं फिर नया बसाएंगे
अपना नया घर।
शब्द
शब्द
कड़वे
तीखे
विषैले
कैसे
भी
पर दोगले
तोबा कभी नही
ज्यादा मिठास
बीमारी की
शब्द हीनता
खुमारी की
एक छोटी सी
पहचान है
तुम थे मैं था
तुम थे मैं था
दो थके थे
दो कदम मिल चले
जीवित होकर
शव से शैव
शैव से शावक
पाकर देह हुए थे धावक
अंतर शून्य प्रत्यंतर पावक
तुम ना थे ना मैं था
एक हुए जल और प्रापक
भ्रमर गीत और मधुकर साधक
सत्य राह के भ्रम रंग नाहक
एक रंग रूप के धारक
आओ गिरगिटिया रंग खेलें
होली हैं लहू रंग पार्क
फायल
एक बदनाम अकविता
ऑफिस बाजार घर
हर जगह नवयौवन फाइलों का कहर
ऊपर नीचे टेबिल सड़क होटलों में
फड़कती घूमती तनती मचलती
ईमानदारी के कचड़े में सड़ती मरती
बदनाम स्याही के बदनुमा दाग के संग ब्याही
लाल फीताशाही के बोझ तले सुबकते
मुँह चिढ़ाती कोसती मुस्कराहट के साथ
अपने तन धन और बल पर इठलाती
ऊंची पहुँच एकांत कमरे की गुप्त यारी
दैहिक समीकरणों की अय्यारी
वाह री फायल तूने मौके पर ठोका चौका
लक्ष्मी के हर रूप पर गिनती पूरा खोका
अगर है तू तो काला पीला नीला सब सच
सुपाच्य सुपच दूर हो जाये सभी अपच
हो शांति सुख समृद्धि ना कोई मच मच
सब नियमित विधि सम्मत और सुनहरा सच
हस्ताक्षर सम्पन्न।कार्य सफल ।खुशियों से नच
जाने कितनी चौकी है
जाने कितनी चौकी है
पर चौकीदार गायब है
हर चौकी के अंदर बाहर
चौका की चौकी काबिज है
कितने चौकीदार बदल गए
कितने आकर चले गये
चौकी तिल तिल रोती रह गयी
वो दिल बहला कर निकल गये
चौकीदार कुछ सो कर गायब
मन की मन गा कर निकल गये
चौकी के रक्षक चौका पोते
और मौका पाकर निकल गये
चौकी किसकी किसके हित हों
यह बिना बुझाये निकल गये
उम्मीदों के वादे सपनों पर
जन मन को बहला कर निकल गए
चौकी अब फिर प्रश्न पूछती
मुझ पर मिटने बाले किधर गये
चौकी और जन मन बाट जोह रहे
उनके अपने चौकीदार किधर गये
होली रंग गुलाल और मिठाई
होली रंग गुलाल और मिठाई
दूर कर देना दिल से खटाई
दिल के अंधेरे कोनों की कटुता
ढूंढ कर कर करना सबकी सफाई
नन्हें बच्चे से सीख सच्चा विश्वास
रंग चढ़ा प्यार प्रीत ईमानदारी
इस होली को मनायें ख़ास
मेहनत परिश्रम से दुनिया हारी
गुलाल लगा खिलाना मीठी मिठाई
ना हो कड़वा तीखा और खटाई
दिल के अंदर उपजे प्रेम समप्रभुता
कर सलाम जिन्होंने देश पर जान लुटाई
होरी के होरा मत मटके
होरी के होरा मत मटके
जे ब्रज की ठेठ गुजरिया ए
घूंघट ते ये शर्मीली है
ये पूरी नैन मट्टका है
तेरी तो बिसात कहाँ
जो होरी पर तू छेड़ेगो
जाके हाथ प्रेम पगी लाठी
जो अब कैसे तू झेलेगो
जाते पार नाय पायो गिरधारी
तू कैसे होरी खेलेगों
ये श्याम सखी है मतबारी
होरी के मद में भरी भई
तू होरा रस रंग मत डारे
पिट पिट के नानी टेरेगो
ये होरी है
तू होरा है
रसिया बन रस कूँ हेरेगो
प्यारे कूँ शीश नवा के तू
जब प्यारी कूँ टेरेगो
ये श्याम सखी
तू श्याम सखा
रस रंग सखी
रसिक राज सखा
अग्नि के सात फेरे
अग्नि के सात फेरे ।
शादी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा
कोर्ट में रची सादी कागज वाली शादी।
प्यार कागज में। प्यार रिश्तों में
पर आँख बंद कर हर विषमता के साथ।
हर हाल हर मुश्किल हर हद तक गिरकर।
टूट टूट कर मरकर। फिर नया पुनर्जन्म हैं प्यार।
ये सागर हैं झरना है ये नमक है चीनी हैं ।
ये प्यार का नशा है थोड़ा सर चढ़कर बोलेगा
संघर्ष की हद तक मढ़ कर
संघर्ष की हद तक मढ़ कर
रोज टूटकर रोज बिखर कर
जीते जी खुद कफ़न जोड़कर
कांटो पर चल कर देखा है
हमने खुद पर हँस देखा है
खेतों की मेढ़ों पर पढ़कर
आसमान की छत पर चढ़ कर
भूखा नंगा कल देखा है
मिट्टी की मिट्टी देखा है
रात रात रतजगा कर कर
सपनों में राजाजी बनकर
भूखे पेट हल जुत के देखा है
गाली दे जग हम पे हँसता हैं
संबंधों की शूली चढ़ कर
अपनों के नित छल से छल कर
सपनों को मरते देखा है
दर्पण प्रेम अर्पण देखा है
हमने खुद का कल देखा है
आलसी तन
आलसी तन
निष्ठुर जन मन
लूटते धन
दोगलापन
विष रिसते मन
बगुलापन
गिरगिटी अपनापन
कुंठित मन
खोते बचपन
रोता पचपन
सोता यौवन
जीता जन जन
हाँ सच
हाँ सच। आसमान में नाच रहा था
जीवन का सच हांस रहा था
सपनों की पाती बांच रहा था
मुंगेरीलाल को चांप रहा था
अपने रिश्तों को नाप रहा था
तन लिहाजों को ढाँप रहा था
मन में सोया साँप रहा था
पुण्य से बढ़ता पाप रहा था
मैं तो थर थर कांप रहा था
तभी।
एकदम से हुआ धड़ाम
मुँह से निकली हाय राम
मज गई लुटिया हो गया काम
बज गई बंसी बेसुरे राम
वेभाव लुट गए सपनों के आम
आम खास और खास थे आम
चापलूसी का मिले ईनाम
वरना हीरा धूल समान
दुनिया में अगर करना नाम
मेहनत सच्ची झूँठा काम
बगल छुरी और मुँह पे राम
नही तो होगा काम तमाम
मनुआ कैसे भजे राधेश्याम
जलता जंगल बनबासी राम
किसान सो रहा रोते गांव
दाना इस अन्न का
दाना इस अन्न का
कितना नशीला सरचढ़ा
उगते उगाते हाथ देह
श्रम मेरा पूरा मढ़ा
बेमोल समझा आपने
मैं आज भी हूँ लड़खड़ा
गरीबों के नेताओं का धन
तिजोरियों में हरदिन बढ़ा
हाथ पैरों की हर विभाई को
लगता सदा हर मौसम कड़ा
मैं मूरख तो राह ना जानू
मैं मूरख तो राह ना जानू
आप तो बड़े धमाकू जी
साहित्य धर्म ज्ञान ना जानू
मैं तो ज्ञान पिपासु जी
मैं चेला एकलव्य के जैसा
आप तो बड़े दयालु जी
राह कठिन पर मुझे मर मिटना
हिम्मत पर है काबू जी
मैं छोटा सा प्रेम पथिक हूँ
आप बड़े सूरमा बाबूजी
मिथकों को तोड़ देगें
मिथकों को तोड़ देगें
एक पल तो साथ दो
रिश्तों को जोड़ लेंगे
थोड़ा तो पास हो
सरगम बजेगी प्यार की
थोड़ी खुशबू उधार दो
तू मैं होंगे हम अगर
आंखों दो चार हो
जहरीला दर्प
मधुमक्खी
बिच्छू
विषधर सर्प
तीनों रखते जहरीला दर्प
पर मनुष्य के मन अंदर अंधकार का विष और दर्प
कितना बड़ा जहरीला सर्प
कब इन तीनों के विष से हजार लाख गुना जहरीला हो जाये
एक से लेकर करोड़ तक यानी पूरी मानबता को अपने जहर से लील कर समूल नष्ट कर जाये
या अपने जहर का नशेडी बना कब अपना गुलाम बना जाये
इसलिए साबधान हम सब जहरीले समाज की गिरफ्त में है होंगे या हो सकते है
इससे बचने का एक ही उपाय है प्रेम जिससे हम सुखी हो सकते है
प्यार प्रेम समरसता का बृक्ष अखिल विश्व में बो सकते है
हर जहर को दूर कर ला सकते है खुशियां
इसलिये खुद भी मुस्कराये और दूसरों को भी मुस्कराने के लिए लुटाएंगे खुशियां
ये संदेश कर दो जनहित में जारी
प्रेम से फलता खुशियों का बृक्ष नही डर किसी जहर का ना होती कोई बीमारी
-0-
मेरे जीवन का पहला और अंतिम लक्ष्य है नित नए सम्मान पाना ।किसी भी तरह से कोई भी जतन कर।
खुद पर एक व्यंग्य चित्र
मेरा सम्मान करो। मैं सम्मान का भूखा हूँ।
मुझे रोज एक नया सम्मान चाहिये
एक अकविता
नित नए सम्मान ओढ़ पहिन कर
मैडल ट्राफी से झोला भरकर
वी वी आई पी संग सेल्फी लेकर
न्यूज शो टाइमलाइन बनकर
प्रशंसा सुन मद मस्त ना होना
खाली रखना दिल एक कोना
ओ सोना पीतल ना होना
अहं वहं का शिकार ना होना
वट वृक्ष हो नित नव अंकुर बोना
ओ सोना पीतल ना होना
आसमान चढ़ बढ़ नव सपने संजोना
नई मदहोशी में होश ना खोना
सज धज खूब रूप रंग सलोना
अंतिम जनहित नित रंग सँजोना
तारीफों पर गिरगिट ना होना
ये तो सब क्षण भंगुर है
ईश्वर की माया का ज्वर हैं
इतना ना ज्यादा खुश होना
वरना अंतिम दिन फिर तुम रोना
मानवता के सेवा पथ पर
नित निस्वार्थ स्वयं समर्पित होना
ओ सोना तुम पीतल ना होना
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा
विशेष: सच्चा सच तो ये है कि हमने वर्ष 2007 के बाद कोई सम्मान ना लेने की सौगंध ले रखी है। जिस पर आज भी अक्षरशः कायम हैं । ये एक व्यंग चित्र है। खुद पर हंसना भी एक कला हैं
एलोबीरा के बीच
एलोबीरा के बीच
केक्टस उगा रखा है
मैंने तो चेहरे पर कई अदृश्य
मुखोटों का सेट लगा रखा है
क्या हैरान हो सूरत ए नुमायश से
हमने तो गिरगिटों का पूरा गांव बसा रखा है
एक दिन जुबान ने सच का स्वाद चखा भर था
उसी दिन से शहद की मुहार ने अम्बार लगा रखा है
एक दिन जाना मुक्करर है शर्तिया
हमने तो कफन में भी जेब का जुगाड़ बना रखा है
मुस्कान कातिल है रसूख है भारी
हुजूर दिल को तख्ते ताज जो बना रखा है
कोई मुझे ना जाने पहचाने
कोई मुझे ना जाने पहचाने
हो खूब तनातनी फाकामस्ती
ना हो जेब में एक छदाम चने भुनाने
या खूब कोसों दो गालियां बिन मेहनताने
सच मुझे कोई गम ना होगा
मेरा पराये अपनो का गांव
पीड़ित अंतिम जन झोपडी
मेरा अंतिम सहन होगा
मिल जाऊँ हो खाक
ब्रज रज में हो मिट्टी
मिट्टी का ये तन मन
काम अगर आये काम
किसी मुरझाए चेहरे पर मुस्कान लाने में
मेरे माता पिता गुरु परिवार को
निसन्देह एक पल के लिए तो फ़क्र होगा
मौत के आगोश में तो एक दिन जाते सभी
मुसकराते खुशियों की पोटली लुटाते अगर गया
ये मेरा मानव जीवन लेना सफल होगा
महिला दिवस
पीना ।अरे गलत मत समझ।
आंसू
सीना । फिर गलत मत समझ।
संबंधों को
मर्यादाओं को
दूरियों को
हसीना। फिर गलत समझे ना
हँसी तो फंसी
जीना। तिल तिल पल पल
अरे आज तो महिला दिवस है
जी ले एक दिन की खुशियाँ
प्रकृति की अनमोल कृति जो कि ममत्व , श्रद्धा ,समर्पण, सेवा ,कर्म,त्याग, रचनात्मकता, विश्वास, असम्भव को संभव करने की क्षमता रख तिल तिल पल पल को जीवंत कर इस संसार को गतिमान रख फिर भी आधी कहलाती है।ऐसी नारी शक्ति को मेरा पूरा कोटि कोटि प्रणाम नमन वन्दन।
अगर कविता का सही भाव समझ आये तो कृपया कमेंट अवश्य करें
महिला दिवस विशेष
तू मैं मैं तू
तू तू मैं मैं फिर भी तू
सब टोंके रोकें फिर भी तू
झगड़े टंटे फिर भी तू
मेरे घर की इज्ज़त तू ही तू
बिन पैसा नोकर फिर भी तू
ममता की मूरत फिर भी तू
आंखों की कांटा फिर भी तू
मेरे दिल ठंडक तू ही तू
कोई कुछ भी बोले है मेरी तू
जीवन गाड़ी पहिया तू ही तू
रस आनंद प्याली हैं मेरी तू
एक पोस्ट रोटी के नाम
किस किस ने खायी है रोटियां
किस किस के हिस्से की रोटियां
किस किस के गम की रोटियां
पेड़ों पर फंदों में मरती रोटियां
कर्जों में लिपटी रोटियां
तिल तिल कर मरती रोटियां
कुर्सी पर चिपकी रोटियां
फाइलों में उलझी रोटियां
खेतों में सड़ती रोटियां
तिल तिल कर सिसकती रोटियां
अन्नदाता की सस्ती रोटियां
सियासी गोटियां कब तक पकाएंगी रोटियां
कब तक मौत से सस्ती रोटियां
भारत की आत्मा की रोटियां
अन्न उगाते परिश्रम की रोटियां
सच में बड़ी मजबूर ये रोटियां
हिम्मत ताकत और गम की रोटियां
कब मिलेगी रोटी उगाने बाले हाथों को भरपेट रोटियां
( आप सब से सादर अनुरोध अपनी राय जरूर लिखें। अन्नदाता के सच को साहस और सही आदर कैसे मिले। )
साईकिल पर हाथी
साईकिल पर हाथी
हाथी माँगे पकोड़ा
पप्पू पीछे दौड़ा दौड़ा
हैडपंप में पानी थोड़ा थोड़ा
चाय बाला हनुमान अब तले पकोड़ा
बाबा बोले मत हो इतना चौड़ा
जल्दी मत कर ठंडा कर खाना पकोड़ा
तेरी यादों के सिरहाने
तेरी यादों के सिरहाने
सिमटा लिपटा मैं और मेरा अस्तित्व
ऑफ सीजन सेल के मानिंद लुटा पिटा अधमरा व्यक्तिव
संरक्षण और पुनरोद्धार के इंतजार में अटकी पुरातत्व संपत्ति की तरह हरदम
तेरी गैर मौजूदगी में भी हर पल महकती खनकती तेरी साँसों की सरगम
क्या पता फिर से कब सजीव होगा अपना संगम
तू आज भी है मेरी जिंदगी की जख्मी सिंघम
तू हर पल की डायरी और रोबोट
तू मेरी लाइफ लाईन और बेस सपोर्ट
तू मेरी खुशियों की जैकपॉट
सपनों के राजमंदिर में रखे खुशियों के खज़ाने का आखरी नोट
साईकिल पर टप्पू
साईकिल पर टप्पू
सात पांच का चप्पू
खुजली करता अप्पू
बुलडोजर बाबा झप्पू
नादान पप्पू कम गप्पू
बुआजी बजाये नगाड़ा
भतीजे पर हाथी चिंघाड़ा
चिल्ल पौ करे पाजामे का नाडा
आयी होली सरा रारा
होली पर चढ़ेगा अबके रंग गाढ़ा
बज गया होली का नगाड़ा
सबका बल दिख जाएगा
दल से दल दल मिल जाएगा
मन का मैल छुड़ाएगा
क्या साइकिल पंचर हो जाएगा
क्या हाथ मेंहदी रच पायेगा
क्या झाड़ू शोर मचाएगा
क्या हाथी कमल चढ़ायेगा
क्या होली भगवा रंग रंग जाएगा
क्या अच्छे दिन दिल भायेगा
किस जादू मन भरमायेगा
इस होली फिर कसे जुगत खटारा
खुशियों का होगा नाच चढ़ेगा मन का पारा
होली का रंग है करारा
सपनो का कटोरा
मन की बात सुनो थोड़ा थोड़ा
चटोरी जीभ और ये तिलिस्मी पकोड़ा
पप्पू को पड़ गया खड़े खड़े दौड़ा
हैडपंप में सूखा ना निकला पानी थोड़ा थोड़ा
चाय बाला हनुमान अब तले पकोड़ा
अरे सुन अभी मत हो इतना चौड़ा
जल्दी मत कर ठंडा कर खाना ये पकोड़ा
होली है आ ठुमका लगा थोड़ा थोड़ा
इस होली चढ़े अमन प्रेम रंग गाढ़ा
बजे विश्व बंधुत्व शांति का नगाड़ा
टेर कर ताकती
टेर कर ताकती
मन ही मन हुलासती
जमाने से छुप छुपाती
देख रही हूँ राह तेरी
जल्दी सेआ सही सलामत
आग से खेलकर
सीना चौड़ा कर मेरा
कपाल भेद शत्रु का
मै खून से तिलक करूँ
भेद चक्र नीच का
माँ भारती दुलारती
मन के द्वार खोल कर
नयन से नज़र उतारू
लाल के मुख चंद्र की
भूख की कसक
पेट सिखाता है
भूख की कसक
दिमाग़ उम्मीदों का सर्कस
जब रहना है जिंदा
मूर्ख अब उठा तरकस
भय से भाग्य कराहता
आगे श्रम के वह भी हारता
लड़ अभी तो बाकी है ठसक
लहू अस्थि मज्जा की बांध कर मशक
जिंदा रह जिद कर दिखा तो मचक
अंकुर तेरी बगिया में उगेगा बस अचक
हरपल होली
प्रीत स्नेह भर झोली
छोड़ गाली और गोली
बोल प्रेम की बोली
बचपन जैसी होली
मन मनुहार रंगोली
गुजिया पूरनपोली
भाभी लगे मझोली
रंग रंगी सब टोली
आयी मेरी होली
इसलिये जीता हूँ मैं
उन चेहरों पर आ सके सदा मुस्कान
इसलिये जीता हूँ मैं
एक पेड़ लगा सकूँ खुशियों का
इसलिए गम पीता हूँ मैं
जब तलक अंधेरा है उनकी दिवाली में
दीपक हूँ बुझ बुझ कर जलता हूँ मैं
होली के रंग में चढ़ ना जाये कोई रंग ए गिरगिटी इस गुलिस्तां पर
सिर्फ इसलिये शहीदों की माटी के रंग से चोला रंगता हूँ मैं
सुनो दोस्तो
सुनो दोस्तो प्यारे प्यारे
प्रतियोगिता के नियम निराले
दम है आ जाओ सारे
मिलकर खेल दिखायें सारे
दुनिया को हम गोल बनायें
आओ नया संसार बसायें
मिलझुल कर हम गाना गायें
जीत हार खेल भूल कर
मातृ भूमि की जय बोलकर
मन प्रेम का बीज रोपकर
अपना तन मन धन तोलकर
आओ नया इतिहास रचायें
सपनों का संसार बसायें
1 से 1 लाख बनायें
चलो देश हम आप बसायें
अब लौट नही पाऊँगा
अब लौट नही पाऊँगा
कोई नया रास्ता पता नही
जिंदगी भर रहा परजीवी
स्वयं के अस्तित्व का पता नही
बेकार बेरोजगार अधम फालतू
पर रहा स्वतंत्र कभी पालतू नही
एक समय कृपा से मिल जाती रोटी
कृष्ण राधा बस कोई और नही
अगर गुम कँही हो गया एक बार
दुबारा मिल पाएंगे कोई पता नही
सीख ना पाया माया के चक्रव्यूह
कूटनीति रणनीति का पता नही
ना मिलूं फिर से कभी लौट कर
तो याद कभी मत करना मुझे
कोसना गरियाना लानत देना
पर याद कभी मत करना मुझे
मुझे कुछ भी नया पता नही
बंधन
बंधन
तेरे ठाम
ना कोई हो मुश्किल
ना बहकते मेरे पाँव
दरार हरकत और हिम्मत
तू है पास तो काम से काम
ना हो कोई रिश्ता ना नाम
ना चिकनी देह ना दहकता चाम
जब से पिया है तेरे इश्क़ दा जाम
जीना पल पल हुआ बेचेंन
भूल गया गांव राम नाम
व्यंग धपंग
व्यंग धपंग
एक अनोखी जंग
वसंती फागुन है साहब
गिरगिट दंग
कैसे बदले रंग
चुनाबी चंग
नेता तंग
नाचते लफंग
होकर नंग
कुम्भ
नहा कर संग
जनता पर चढ़ी
प्रेम रंग
होरी
तरंग
गिरगिट जैसा तन का धन है
गिरगिट जैसा तन का धन है
मन मेरा फिर भी निर्मल है
मोटे थुलथुल तन के अंदर
आज भी पुराना नंदनवन है
जीवन के कच्चे धागे है
फिर भी बसता घर आँगन है
मीठे बेर की कच्ची बगिया है
नीम करेला का भोजन है
नेह आपका अमृत की वर्षा है
कैक्टस का सा चिर आलिंगन है
तन है भारी मन हल्का है
नयनों के बीच बसा मोहन है
नित नई नई कमियां गिनाने वाले
नित नई नई कमियां गिनाने वाले
पानी पी पी कोसने वाले
जी भर गाली देने वाले
मन भर बिष बमनने वाले
द्वेष स्नेह दर्शाने वाले
कोटि नमन वंदन है सबको
जीवन उर्जा तप पूज्य पुंज को
हदयतल से आभार प्रदर्शन
कृपा आपकी नेह दिगदर्शन
आप है सच्चे अच्छे शुभ चिंतक जी
जीवन नैया पथ प्रदर्शक जी
शतायु हों सब कोप कृपा बनाना
नित नई नई कमी बताना
अनपढ़ अधम अशिष्ट इस द्विज पर
अपनी तीखी नज़र गड़ाना
जीवन भर रोक टोक लगाना
आप हमारे संरक्षक है जी
कर्म सुलेख के परीक्षक हैं जी
ईश्वर मात पिता सम रूपा
करता नमन है ये बहुरूपा
तुनक तुनक तुन टुन्ना

तुनक तुनक तुन टुन्ना
होरी को मचो कुदन्ना
जवान है गयी गोरी
पीछे पड़ो बाबू धन्ना
कोने में दुबकी छुप के
कच्ची कली बसंती चुन्ना
लौट लोट फूक जावे
घूँघट में करिया फुंना
फूफा की धोवती फट गई
बूढ़ी पोपली पे चढ़यो फगन्ना
तुनक तुनक तुन टुन्ना
मत घूरे मोय ओ खुन्ना
मद की मारी मस्तानी
फाग रँगयो है रंगा
जेठ कह रहयो भाभी
जीजा बोले चल संग ना
मोसे मीठा मिठो बतरावे
यसुदा मैया को मुन्ना
नेह भांग पी रहे सिगरे
ब्रज रसिक बावरे खन्ना
रस रास भूल के ठाकुर
चाट रहयो लपसन्ना
होरी में मद में पागल
सब नाचे ता ता धींना
रंग रच गरियावे अधन्ना
मत छेड़ ओ छलिया मोकू
फट गयो तेरो पज्जमा
डोकरा दारी को घूरे
पनहारी ते कह रहयो अम्मा
तुनक तुनक तुन टुन्ना
होरी को मच्यो कुदन्ना
सुनो कब तक लौट कर आओगे?
सुनो कब तक लौट कर आओगे?
या जँहा गए हो उधर ही बस जाओगे
कोई नही एक दिन तो वापिस जरूर आओगे
सुनो फलां काम कर दिया क्या?
हिसाब किताब कर लिया क्या?
इतनी देर से फोन क्यों नही उठा रहे थे?
किससे इतनी देर से बतरा रहे थे
कमाल है समय देखा है क्या?
मुझे कभी इतने गौर से देखा है क्या
क्या आज घर नही आना?
क्यों आज फिर से नया बहाना
क्या ऐसे ही निभता है रिश्ता?
घर में बनते हैवान और समाज फरिश्ता
ना रहूंगी तो कोई नही कहेगा
कोई तुम्हारी बकवास नही सुनेगा
चाहें रात भर घर ना आना?
रात को 2 बजे कोई नही देगा गर्म खाना
कोई नही पूछेगा तुम्हें जरा सा
चाहें कितने बजाना ढ़ोल ताशा
सुनो आज क्या खाना है बनाना
रोज चार बजे सुबह उठ नहा कर
परिवार की सेवा में मुझे तो जुट जाना
सोते रहते हो देर तक लेकर नित नया बहाना
घूमने निकल जाते हैं बिना काम बेकार याराना
सुनो कभी तो हमसे कुछ बात चर्चा कर लिया करो
कभी समय निकाल कर हमारी भी सुन लिया करो
कंही जाना कुछ भी करना?
पर अपने से दूर कभी ना करना
मैं हूं तभी तक चेक आउट ,बंधन है
आज वसंती वेलेंटाइन है
जिंदगी में साथ तुम्हारा मेरा खुशियों का चंदन है
थोड़ा सा हँस मुस्कुरा लो
वाकई जीवन में नित क्रंदन है
आज तक कुछ नही मांगा सिर्फ इतना है कहना
अगले सात जन्म तक हर पल सिर्फ मेरे होकर रहना
मैं तुम
मैं तुम
तुम से हम
जीना मरना एक ही संग
तू धड़कन
सुर पंचम
तू है तो
गुलशन गुलशन
प्रेम पुंज
प्रेम दर्पण
तुम हद
तुम हद
मैं हूदुदुदु
तुम हया
मैं फया
तुम बदरी
मैं खुला आसमान
तुम मछली
मैं जलयान
तुम आज
मैं कल
तुम फसल
मेँ हल
तुम कलम
मैं कोरा फरमान
तुम प्रेम पत्र
मैं निशब्द अरमान
रात थी मंद
रात थी मंद
नींद थी अंध
सुबह होने पर
होने लगी चुलबुली
थोड़ी ठंड रजाई
गर्मी की अंगड़ाई
सपनों की पढ़ाई
रात का पनीर ए कढ़ाई
स्वाद रंगीला ग़ज़ब शाही
देख सितारों की पेशवाई
लक्ष्मी पुत्रों पुत्री
चकाचौंध विस्मय
सजी महफ़िल
वेलेंटाइन की ऋतु आई
सपनों पर भी मस्ती छाई
आधा संगीन बुढ़ापा
जाग उठी अबोध तरुणाई
आंख थी ग़ाफ़िल
सो थोड़ा सा आज
सुबह देर से खुली
चिरपरिचित सुरीली आवाज से
स्वर लहरी थी जड़ी
क्यों जी आज उठना नही है क्या
कुछ काम धाम करना नही है क्या
कुंभ स्नान तो सोशल मीडिया पर
फोटो दिखा कर करा दिया
खूब ईलाहाबाद संगम अयोध्या
काशी का दर्शन गङ्गा स्नान करा दिया
अब तो चल रहा वेलेंटाइन वीक है
साथ फाल्गुनी फगुआ नीक है
हर बार कोई बहाना हैं बना दिया
ख़ुद अकेले घूमे फिरे मस्त आनन्दित
हमें तो हर बार बातों बातों में उल्लू बना दिया
अब ना चलेगा कोई नया बहाना
मौसम है ऋतु है समय भी
छोड़ समाज के फालतू काम
पड़ेगा रिश्तों को जिम्मेदारी से निभाना
किस मिस
किस मिस
किसमिश
मीठी खट्टी
अधर चुम्बक
जीवन घुट्टी
बचपन
स्कूल की
विधाधन
कोरी पट्टी
तुम हो मेरी
महकती
कच्ची मि
मजबूत
वायदा
मजबूत
इरादा
मजबूत
दोस्ती
ना मांगे कोई सबूत
जिंदा मत रख
कोई भूत
मुँह मत खोलो
मुँह मत खोलो
कलम संभालो
शब्दों को तुम ताला मारो
मन की सुन कर जयकारे बोलो
तू प्रेम पथिक है सब तेरी चाह है
तू प्रेम प्रदर्शन कर प्रेम माह है
प्रेम गली की कब सीधी राह है
आह ना सुनना , हाँ ही सुनना
ना तो सिर्फ शह की शाह है
जीना है तो समझौता कर लो
उनकी ही शह और उनकी ही मात है
पेट की आग

जिंदगी भागम भाग
अपनी अपनी ढपली
अपना अपना राग
मैं भी जागा
तू भी तो जाग
चल रे चल स्कूल
जागगे सोये भाग
ना होगा कोई द्वेष राग
सच का स्कूल
सपनों का स्कूल
सरकारी स्कूल
ना कोइ चिंता
भूल कर टेंशन
सुन हो जा कूल
सरकारी ड्रेस किताब
मुफ्त भोजन बेहिसाब
मुफ्त की है सरकारीपढ़ाई
दोस्त खेल खिलौने
थोड़ा खेल थोड़ी पढ़ाई
थोड़ी शैतानी थोड़ी लड़ाई
सच तो यही है मेरे भाई
स्कूल में नई जिंदगी समाई
जीवन भर तो करनी है कमाई
सच मुझे जाना तो था स्कूल
पर रास्ता गया हूँ भूल
इधर , नमक, तेल ,लकड़ी
और खाली पेट मे भूख के शूल
कमाना ही होगा मुझे हर हाल
अपने और अपने अपनों के लिए
सपनों को गिरबी रख
मेहनत से गिर उठ कर
बिना रुके थके
चलकर पथ कंटक शूल
क्योंकि अंतिम जन होना
है मेरी सबसे बड़ी भूल
रोटी बोटी लंगोटी में
उलझा हूँ मैं
और मेरे सपनों का स्कूल
आज नही तो कल
निश्चित एक तो जरूर
मैं भी एक दिन
जाऊंगा अपने सपनों के स्कूल
गुलाब
गुलाबी सुर्ख गुलाब
क्या सिर्फ एक फूल
ना कांटे ना भूल
गुलाबी मन तन
या जीवन
खुशी खुशबू खुमार
जवानी का धुमार
ना जीत ना हार
रोक भावनाओं का अंबार
गिन अपनी धड़कन
चाहें बचपन या पचपन
बसंत की बहार आई है
बसंत की बहार आई है,
फूलों की खुशबू ने नन्ही कली खिलाई है,
प्रकृति की सुंदरता अदभुत पड़ी दिखाई है,
बसंत की यह रंगीन परछाई है।
बसंत की धूप में खिले फूलों की बारात,
हरियाली की चादर ओढ़ लुटी खुशियों की सौगात,
पेड़ों की डालियों पर गीत गाए जाते,
बसंत में सभी सुंदर दिखाए जाते।
बसंत की रात में तारों की बारात निकलती,
चाँद की चांदनी में खुशियों का साथ मिलता,
बसंत की यह रात सुहानी हो जाती,
बसंत में बस नेह की मूरत दिखाए जाती।
बसंत की बहार में खुशियों की बौछार होती,
खुशबू और काँटो पर प्यार की बौछार होती,
बसंत में यह सुंदरता सदा दिखाए जाती,
बसंत की यह रंगीन परछाईं है।
प्यार की पाती
अब तक है सताती
जो भेजी थी तूने
जो जी ली थी मैंने
कुछ साल पहले
तब से अब तक नहले पे दहले
हर हर्फ़ रूबरू
अब तू मेरी आबरू
तू है तो मैं शुरू
न कोई चेला ना कोई गुरु
तू मेरी साँस
तू अब मेरा विश्वास
तू सनसनाती छुरी
तू मेरे जीवन की धुरी
आ तू और में अब छुप जायें आकाश
आज का दिन भी तो है खास
जब मैं और तू हुए थे एक
दो देह हुए थे समेटे प्राण एक
तूने मुझे बनाया छोड़ सब कुछ अपना
तू है तो आज है पूरा अपना सपना
मुनिया चुनिया
पप्पी, छोटू, मुनिया चुनिया
आजा जल्दी देखें दुनिया
खुशियों के पैकेट को खोलो
जल्दी जल्दी चीज़ तुम बोलो
फ़ोटोग्राफ़र तैयार खड़ा है
खुशियों का अंबार सजा है
तुम सब एक मुस्कान जोड़ लो
अमीरों की सी सेल्फी खींच लो
अपनी हो फोटो खुशियों बाली
यादगार हम बच्चों बाली
भूल भूख प्यास और दर दर की गाली
अब तो एक मुस्कान जगा लो
सपनों का सम्मान बढ़ा लो
सेल्फी में छोड़ो सब सेल्फिशपन
आदर्श बनाओ सब का बचपन
दो दिनों खूब सोचा
नादान मन को लग रहा क्यों इतना लोचा
किसान का माल डेढ़ गुना
गरीबों की विमारियों पर 10 हजार करोड़ ख़र्चे का मन बना
तब आया याद ये तो है संकल्प यात्रा दो हजार बाइस
अभी तो 2014 के संकल्प पूर्ती की है ख्वाइश
चुनाब होंगें 2019 तभी तो रोडमेंप पर हो रही है अजमाइश
जनता भोली भाली खोज रही है अच्छे दिन कब आयेंगे
दो वक़्त ना सही हुजूर एक वक़्त भर पेट रोटी कब खायेंगे
जिस दिन तुम और मैं
जिस दिन तुम और मैं एक हुऐ थे
हमारे सब सपने नेक हुए थे
देश की सरहद पर अकेले थोड़ा लड़े थे तुम
अर्धांगनी के हिस्से के तन से भी तो लड़े थे तुम
तव जाने कितने दुश्मन के शव टेक हुए थे
नेक नीयत राष्ट्र हित युद्ध में साथी मैं थी हूँ रहूंगी सदा
आपके हिस्से का युद्ध अर्धांगनी करेगी हक अदा
हम मिलकर कर लड़े और जीवन भर लड़ेंगे सदा
आज के दिन चलो थोड़ा और नजदीक होना
सच को सदा लोहे के चने चबाने पड़े थे
कर्म के सुलेख कर
कर्म के सुलेख कर
टूटे दिलों को एक कर
काम रोज नेक कर
एक कर अनेक कर
जीत ले विशेष कर
काम पूर्ण शेष कर
प्रीत कर एक केश कर
प्राण स्वांस एक कर
विशेष तू विशेष कर
विषमता अवशेष कर
आदर्श तू समवेष धर
मौन छोड़ कर
मौन छोड़ कर
बर्फ तोड़ कर
कर्म युध्द कर
राह मोड़ कर
उड़ ले तू आकाश
जिद्द जीत कर
सपने सें कर
अब खुद पर कर विश्वास
सिध्द कर नया क़यास
शक्ति जोड़ कर
तन मन जुट कर
हर पल कर कुछ खास
उड़ ले तू आकाश
जारी————
ये तन
ये तन तो है था रहेगा कच्ची मिट्टी
आपका स्नेह प्रेम ताप भट्टी
और आशीष मात पित गुरु का
उपकृत किया और दीपक बना दिया
किसी ने दिया तेल। रुई।बाती।
जोड़ दिया अग्नि पथ से सीधे
और दिए जलने के हुनर।
पल पल की नई खोज अंधेरे तले
रोशनी से आगे और अंधेरे से लड़ने
टिमटिमाती उम्मीद है मेरी
एक दिन जरूर होगी
अंधेरे और उजाले के मध्य अमर प्रेम संधि
आज नही तो कल उजाला महकेगा
सुवासित नई सुबह होगी
मन के आंगन खिलकर सजेगी
प्रेम सदभाव और वसुधैव कुटुम्बकम
दीपक हूँ जलता रहूँगा
आखिरी सांस तक
दो दो हाथ कर
कंटीली फिजा और तूफानों से
तेरे चहरे की एक मुस्कान के लिए
दीपक हूँ
जल सकता हूँ
रोशन होना धर्म कर्म हैं मेरा
अंतिम जन सेवा हित मिट सकता हूँ
दीपक हूँ
अंधरे से लड़ सकता हूँ
तिल तिल पल पल बढ़ सकता हूँ
सत्य मार्ग अड़ सकता हूं
दीपक हूँ
जकड़ सकता हूँ
जारी………
बसंती प्रेम
आसान है वेलेंटाइन प्रेम
भूमिका लक्ष्य नवाचारअत्यंत
चुम्बकीय आकर्षक भोग भाग प्रत्यंत
प्रेम ज्वालामुखी दधके दो पल फिर शांत तुरंत
होकर मन देह दैहिक अंत
फिर नया मिलन नया जुगन्त
प्रेम नही खिलौना खेला टूटा अंत
अरे ओ प्रेमी मन हो जा तू श्री संत
प्रेम सच या झूठ नही
प्रेम आलख अंनत
प्रेम पा मन हुआ बाबरा
फूंका घर तन मन श्रीयंत्र
प्रेम गली में दो ना सुझाते
प्रेम एक अमिट शून्य अनंत
प्रेम निराला प्रेम मद प्याला
नागा निराकार नितंत
प्रेम अंधेरा प्रेम रोशनी
प्रेम शुष्क खतंत
प्रेम कसैला प्रेम तीखता
प्रेम अमावस नव बसंत
प्रेम से प्रारंभ नभ बसुंधरा
प्रेम पंच तत्व घनन्त
प्रेम सयाना प्रेम दीवाना
प्रेम पगला श्री संत
प्रेम दीवानी दुनिया सारी
राजा जोगी श्रीसंत
जारी………………..
आप मैं और तू
तूफान आँधी और लू
क्या क्यों और कौन
प्रश्न शेष उत्तर मौन
सत्य मगर खोजें कौन
मिलता नही पता सब सहज मौन
जीवन का निर्माण शून्य
जीवन का प्रारंभ शून्य
जीने का आनंद शून्य
जीवन का अंत नाम शून्य
शून्य आगे बने अनंत
जँहा नही होता कोई अंत
आदि शून्य मध्य गंत
शून्य अंत
कहें ग्रंथ साधू संत
अब तो कुछ करले तुरंत
पिता दिवस को समर्पित
पापा जग रखवारे
पापा प्राण प्यारे
पापा सपनों के रखवारे
पापा जग से बड़े न्यारे
पापा पप्पू प्यारे
पापा गुस्से वाले
पापा डांटने वाले
पापा मारने वाले
पापा मेलें वाले
पाप खिलौनें वाले
रात को संग में जगने वाले
मुँह का कौर खिलाने वाले
मेरे संग रेस लगाने वाले
मुझे रोज हँसाने वाले
कोहळू बन पैसा कमाने वाले
टूटी चप्पलें को फिर फिर सिल पहनने वाले
सपनों को पंख लगाने वाले
सत्य की राह दिखाने वाले
सही गलत का फर्क बताने वाले
मेरी शादी पर खुद पर इतराने वाले
मेरे बच्चों की घोड़ागाड़ी वाले
अब खुल्ल खुल्ल खाँसी वाले
कब हो गए घर के एकान्त कौने वाले
पेंशनर बूढ़े ठस्स दिमाग वाले
जर्र बक्क बकने वाले
कब कँहा खो गए पापा मेरे अपने वाले
मेरे बचपन के सपनों वाले
कब किस रोज खुलेंगे मौन के ताले
पापा पापा पापा मेरे पापा हंसने वाले
दीपक हूँ
दीपक हूँ
जल सकता हूँ
रोशन होना धर्म कर्म हैं मेरा
अंतिम जन सेवा हित मिट सकता हूँ
दीपक हूँ
अंधरे से लड़ सकता हूँ
तिल तिल पल पल बढ़ सकता हूँ
सत्य मार्ग अड़ सकता हूं
दीपक हूँ
जकड़ सकता हूँ
जारी………
बसंती प्रेम
बसंती प्रेम
आसान है वेलेंटाइन प्रेम
भूमिका लक्ष्य नवाचारअत्यंत
चुम्बकीय आकर्षक भोग भाग प्रत्यंत
प्रेम ज्वालामुखी दधके दो पल फिर शांत तुरंत
होकर मन देह दैहिक अंत
फिर नया मिलन नया जुगन्त
प्रेम नही खिलौना खेला टूटा अंत
अरे ओ प्रेमी मन हो जा तू श्री संत
प्रेम सच या झूठ नही
प्रेम आलख अंनत
प्रेम पा मन हुआ बाबरा
फूंका घर तन मन श्रीयंत्र
प्रेम गली में दो ना सुझाते
प्रेम एक अमिट शून्य अनंत
प्रेम निराला प्रेम मद प्याला
नागा निराकार नितंत
प्रेम अंधेरा प्रेम रोशनी
प्रेम शुष्क खतंत
प्रेम कसैला प्रेम तीखता
प्रेम अमावस नव बसंत
प्रेम से प्रारंभ नभ बसुंधरा
प्रेम पंच तत्व घनन्त
प्रेम सयाना प्रेम दीवाना
प्रेम पगला श्री संत
प्रेम दीवानी दुनिया सारी
राजा जोगी श्रीसंत
जारी………………..
जान हमारी
जान हमारी
सच की क्यारी
उगता बगिया अमन
सच का खिलता चमन
हम सब का गण
जन जन का तंत्र
राष्ट्र भक्ति मंत्र
विकास का यंत्र
भारत हिंदुस्तान इंडिया
मेरी तेरी पहचान इंडिया
मुबारक आज का दिवस
जन मंगल गणतंत्र दिवस
अमर शहीदों के त्याग का हर्ष
भारत माता अस्तिव पहचान का हर्ष
जन मंगलकारी
बड़ा सुखकारी
राष्ट्र प्रेम जग बलिहारी
विश्व वन्धुत्व से जग यारी
अब मेरी तेरी सब की बारी
हो एक सभी छोड़ अहंकारी
बालिका दिवस
बालपन मेरा क्या सुरक्षित है कभी ?
क्या कहूँ कब टूटे मेरे अपने सपने सभी
नोंचती बेशर्म निग़ाहों पर शिकंजा कोई
आह ही आह मिली रोईं जीवन खोई
चलता छल का सिलसिला बदस्तूर यूँही
गर्भ के नर्क के दर्द ना समझे यूँही
माँ क्यो नोचा मुझे क्यों काटा मुझे
मैं तेरी अंश थी क्यों मारा मुझे
मैं तेरा गर्व थी तेरा मान थी
मैं बिल्कुल नयी तेरी पहचान थी
तू मुझे जान न पायी ओ माँ
पापा अम्मा और दादा हँसे पर तू तो छुप कर रोईं थी ना
कोई कुछ कहे तू मेरी है माँ
अगली बार जब आये मेरी बहन
तू करना नही अबके उस पर जुल्म
मैं सच्ची कहूँ प्यार करेगी बहुत
दुनिया कुछ भी कहे सेवा करेगी बहुत
तेरे नाम बन तेरी पहचान बन
देश दुनिया की मुस्कान बन
प्यार बांटेगी बो
प्यार बोयेगी बो
प्यार के नाम पर खुशियों के खेत में
परिवार समाज और रिश्तों के खेल में
सच जीयेगी बो जंग जीतेगी बो
भूख भूख पैदा कर
भूख भूख पैदा कर
पेट के गेट को लॉक कर
साँसों को रोककर
आसमान पर रॉक कर
ये गड्ढे खड्डे पत्थर कंकर
फांद कूद सर्कस कर
मुसीबत कितनी भी। हो तरकस भर
ना टूट ना ड़र
ज्ञान गंगा से अंजुली भर
चींटी बन पहाड़ तर
संस्कारों की पोटली भर
ओ निड़र
चल हाँ चल स्कूल की डगर
खुशियों के मोती होंगे झर झर
राष्ट्रीय बालिका दिवस
लड़की हूँ
समझ सकती हूँ
एवरेस्ट चोटियां चढ़ सकती हूँ
मूक शब्द लिपियाँ पढ़ सकती हूँ
सबकी आँखों से तड़ सकती हूँ
लड़की हूँ
घुमड़ सकती हूँ
परजीवी बेल लटक सकती हूँ
विष कन्या रूप झटक सकती हूँ
विज्ञापन बन मटक सकती हूँ
लड़की हूँ
रोज बिक सकती हूँ
छल छदम चक्रव्यूह लड़ सकती हूँ
ममता नव कृतियाँ गढ़ सकती हूँ
तिल तिल मर सिसक सकती हूँ
लड़कीं हूँ
महक सकती हूँ
निज अस्तित्व मसक सकती हूँ
हर पीड़ा चसक सकती हूँ
फैशन पर ठसक सकती हूँ
लड़कीं हूँ
भटक सकती हूँ
पिट मिट चूल्हा जल सकती हूँ
सब पापों को मल सकती हूँ
देह मन अंतर घुन सकती हूँ
लड़की हूँ
लकड़ी सी चटक सकती हूँ
कमजोर कड़ी पटक सकती हूँ
हर आँख खटक सकती हूँ
रिश्तों को फटक सकती हूँ
लड़की हूँ
गूँगी कठपुतली नच सकती हूँ
ज्वाला बन मचल सकती हूँ
देवी बन अचल सकती हूँ
जीवन पथ सचल सकती हूँ
लड़कीं हूँ
सहन सकती हूँ
सात समुंदर लाँघ सकती हूँ
मशीनों को मात सकती हूँ
गिर गिर कर पुनः उठ सकती हूँ
हैवानों को पटक सकती हूँ
लड़की हूँ
सभल सकती हूँ
मुंबई
एक समय मुझे भी मुंबई ने था अपनाया।
माया नगरी की फिल्मी चमक ने खूब घुमाया ।
कुछ नया कर पाने के जुनून ने खूब भरमाया
मिली थी छोटी सी पहचान बिना किसी सरमाया
पर मंजूर तो कुछ ही था क़िस्मत को लिखी थी चंदगी
गगनचुंबी अट्टालिका चकमक सरपट जी भर जिंदगी।
दिखावा पैसा गुरुर और मन भीतर भरी गंदगी
पर सबक और सनक की रोज नई हुंकार बंदगी
सब कुछ छूटा सपने टूटे लौट कर बुद्ध घर का आया
गांव गली की छानी खाक और कुछ विशेष ना कर पाया
रोटी के ज्वालामुखी पर दहक कर्तव्यों पथ भाया
अल्प बुद्धि अधम मैं मजदूर भी ना बन पाया
लेकर वहम जीकर अहं खुद पर रोज बड़ा इतराया
नमक तेल लकड़ी जिम्मेदारी पर भी खरा ना उत्तर पाया
बामन का बैल बेकार अनुप्रयोगी ठेंगा पाया
फिर भी खुद पर खूब हर्षाया
जीवन का सही मर्म समझ ना पाया
जीवन गणित का एक सूत्र भी समझ ना पाया
दुनिया को बदलने की धुन में पागल भरमाया
खाली जेब तंगहाल मस्त मलंग यही रोज गाया
लुटा कर खुद को तंगे नक़ब पहनते हैं
हम तो रोज खुद को होम करते हैं
हंसते हैं खुद पर खुद पर वहम करते हैं
अन्तिमजन खुशियों की खातिर खुद बेशर्म रहते हैं
आप मैं और हम
आप
मैं
और
हम
वर्फ़ीली ठंड के। दर्दीले ।नश्तर
बीच में फंसी नोन तेल लकड़ी
और बेचारा आटे का कनस्तर
तन्हाई
रुसवाई
बेरुखी
सुन तो हरजाई
दूर से ही सही
जी लेने दे अपनी गर्मी
आंखों के दरिया
रूबरू
तन मन की कर लेने दे
भरपाई
मत रूठ
सपनोँ में आया करो
आप
मैं
और
हम
और अनजान परछाई
मिल
मत
तू तो सदा याद थी है और
धड़कती रहेगी
हर धड़कन
कर्जदार मेरा तिल तिल
पाई पाई
सुन हरजाई
तूने प्रीत क्यों बनाई
अगर बनाई तो फिर क्यों भुलाई
रिश्ते नाते मकड़ी के जाले
तू मैं हम
रुबाई भरमाई हर परछाई
मेरा राम झोपड़ी वाला
मेरा राम झोपड़ी वाला
जंगल जंगल फिरता रहता
पीता है नित नित विष प्याला
राम नाम में सुधि वुध खोकर
प्रेमी पीते राम प्रेम की हाला
मेरा राम झोपड़ी वाला
राजा राम सर्वहितकारी
राम नाम की महिमा भारी
राम नाम रटते नर नारी
जीवन हो सफल सुखकारी
राम हमारा प्रकृति पूजक
राम है खल दल सूजक
नाम राम है दुख का मोचक
रामनाम जन हदय लोचक
राम रक्षक खेत खलिहाना
कंटक शठ का हरता माना
सज्जन जन का सेवक होकर
प्रेम लुटाता अंतिम जन प्राना
राम ने काटा है वनवासा
जन जन के जीवन का फाँसा
रावण दंभी बना सुबासा
उस रावण की लंका में हुआ
अंधेरे भूत जिंद का वासा
ऋषि मुनि संतन पापन हर
बन्दर भालू संग रामजंगल का वासा
मानवता की खुली आंख का
मेरा तेरा जन जन का राम
प्रेम प्रीत विश्व बंधुत्व हित
सदा प्रेम समर्पित राम
जारी………
जिधर देखों उधर
जिधर देखों उधर स्वच्छता की रणभेरी
श्वेत वस्त्र धारी समाजसेवीयों ने झाड़ू फेरी
नेता अभिनेता और अधिकारी सब ने झाडू फेरी
लाइट कैमरा एक्शन सेल्फी ले ले न यार झाड़ू वाली मेरी
झाडू माई अब तेरी खूब नाम कमाई
हर कोई मन मचले सेल्फीज विथ झाडू माई
ना कोई रिश्ता ना कोई भाई
स्वस्थता दूत बनने की ऋतू आयी
पहले जोड़ो कूड़ा फिर करो सफाई
लेनी जो है सेल्फी विथ झाड़ू माई
नगर पालिका निगम और टाउन एरिया
दफ्तर होटल अस्पताल या इंडस्ट्री एरिया
जँहा देखिए हर जगह चल रहा स्वच्छ भारत अभियान
सेल्फी विथ झाडू से ही तो बनेगा मेरा भारत महान
वादे गया भूल
वादे गया भूल
दिखता कूल कूल
याद नही मूल
रोज नई भूल
कीला गाढ़ा धूल
हमको समझे फूल
घूमे बर्ड पूल
पहिने महंगी वूल
भक्तों का बड़ा पूल
मन की बातें कूल
याद कर अब मूल
न ज्यादा चले भूल
अब फूल नही कूल
अभिमान मिले धूल
फूल संग शूल
फूल मूल शूल
फूल गया भूल
फूल मेरी भूल
अब नही बनेंगे टूल
काम कर मूल
नही हिलेगी चूल
हम नही अब फूल
सपने गए भूल
मैं दीपक हूँ
मैं कोई सरकारी या गैर सरकारी शिक्षक नही हूँ
मैं दीपक हूँ अंधेरे का तक्षक हूँ
ना ही कोई सरकारी इमदाद मुझे मिलती है
सदैव खुशियों को बांटता हूँ इसलिए कुछ की जलती है
अंतिम जन सेवा संकल्प और जन जागरण में जुटा हूँ
हर मुरझाये चेहरे पर मुस्कान लाने को बेमोल लुटा हूँ
अनपढ़ अज्ञानी अधम अशिष्ट असहज अवशिष्ट हूँ
खुद की नजरों में समाज का अंतिम विशिष्ट हूँ
खेत के बाहर टंगा बिजूका हूँ
स्वभाव से कटु खरखरा और रूखा हूँ
एक पागल जोकर विदूषक हूँ
परजीवी सत्यपथी प्रदूषक हूँ
जिस पर रोज रोज हँसते है लोग
प्रसाद में रोज मिलती गालिया और कटुभोग
मुझे तो लगा है अंतिम जन सेवा का रोग
नही चिंता है कि क्या कहेंगे लोग
समाज और धरती पर सदा एक बोझ
जो रोज खोजने निकलता है एक नई खोज
बस जिंदगी गुजर रही है हंसते हंसाते
भटके हुये अनभिज्ञ अंतिम जन को रास्ता सुझाते
कहते हैं लोग कामचोर बेकार बेरोजगार चंदा चोर
अंतिम जन के आंगन नाचता एक बहुरूपिया मोर
कोई नही खूब हंस लो मुझ पर मजाक बनाकर
इसी बहाने भूल जाओ अपने गम ठहाके लगाकर
खुशी होगी मुझे बेहद अभूतपूर्व अपरंपार
काम तो आ सका यह अधम तन जो लाया मुस्कान अपार
इसलिए मित्रों खूब हँसो और मुस्कान लुटाइये
जिंदगी चार दिन की है गमों को भूल सदैव मुस्कराइये
जारी है –
वादे गया भूल
वादे गया भूल
दिखता कूल कूल
याद नही मूल
रोज नई भूल
कीला गाढ़ा धूल
हमको समझे फूल
घूमे बर्ड पूल
पहिने महंगी वूल
भक्तों का बड़ा पूल
मन की बातें कूल
याद कर अब मूल
न ज्यादा चले भूल
अब फूल नही कूल
अभिमान मिले धूल
फूल संग शूल
फूल मूल शूल
फूल गया भूल
फूल मेरी भूल
अब नही बनेंगे टूल
काम कर मूल
नही हिलेगी चूल
हम नही अब फूल
सपने गए भूल
अरे तुम तो हो
अरे तुम तो हो
दुर्गा लक्ष्मी भवानी
दुर्गावती औऱ लक्ष्मी बाई
तुम सरस्वती तुम गंगा
तुम नई रोशनी हो
जुडो समझो एक हो
अपने कल की खातिर
तुम कल की नई किरण
उन्नति के पथ पर
चलो दोड़ो
और समय की मुट्ठी को खोल
अपने भाग्य की सुनहरी चिट्ठी को
पढ़ने के लिये सीखो 1 और 1 ग्यारह
अब ना हो अन्याय की पौ बार
स्वयं पर एक व्यंग चित्र
झेल बेरोजगारी का दंश
जिंदा होने का अपभ्रंश
जीवित अर्द्ध शिक्षित होने का श्राप
कर हर किसी को सहज सुलभ होने का पाप
आरक्षण से अछूता
रोज निकलता खाली जेब, फटा जूता
सिर से गायब हो गए बाल
भ्रमित समझता ख़ुद को कमाल
ओढ़ कर गिरगिटिया खाल
चला दिखावटी अकड़ी चाल
लगभग पचास की उम्र
जीवन भर रखा सब्र
पाँव लटक चुके अब कब्र
पेट का ज्वालामुखी
कभी नहीं रहा सुखी
ढूंढ रहा है जो रोजगार
मंहगाई है सोच के बाहर
बच्चों की स्कूल फीस
जरूरत और भी है दस बीस
समाज हित का बना ठेकेदार
पिट चुका कई बार होकर लाचार
रोज सुनता जली कटी और ताना
कब तक यूँ ही करेगा बेकारी का बहाना
देखो फलां फलां ने कितना माल कमाया
पर तू तो खेत से एक मूली भी ना उखाड़ पाया
तेरे जीवन पर किस का अधिकार
तू बदकार, बेकार, मक्कार
तूने आज तक सिर्फ गाल बजाया
कहीं टिक कर कुछ भी न कर पाया
स्वयं पर तू है इतराता
तू तो फूटी आंख किसी को न सुहाता
अरे अधम अशिष्ट धरती के बोझ
अब तो संभल जा नहीं तो रोयेगा रोज
कुछ नहीं रखा समाजसेवा और संस्कार में
अब तो डूब जा अपने घर परिवार में
खोज ले नई नोकरी या कोई व्यापार
छोड़ दे ये सभी फालतू जन सेवा का कार्य
तू था बेकार, है बेकार
अभी भी कर ले पुनः विचार
मान जिंदगी की जंग तू गया है हार
कर स्वीकार जमाने की शह अपनी मात
नही होती हाथ में उंगली सात
ये जंग छिड़ा है
ये जंग छिड़ा है
चंग बजा है
तो रंग चढ़ेगा
हल आज नही
तो कल निकलेगा
बंजर जर से भी
जल निकलेगा
तंग ना होगा
रुक ना जाना
एक रेख हो
सब भिड़ जाना
बादल हो कितना भी ऊंचा
नीचे आकर जल उगलेगा
बस थोड़ा थम लो
तपकर दम दो
नकली मेकअप
सच में पिघलेगा
गम को कम कर
मम कर जमकर
रोज जतन कर
बस एक पल लड़
प्रतिफल निकलेगा
सत्य थका है
थोड़ा थका है
सपनो के नवाचार कर
फिर से ये सरपट दौड़ेगा
रोटियाँ
भूख मिटाती
भूख बढ़ाती
भेद मिटाती
भेद बढ़ाती
खेत से पेट को जोड़ती
पेट से बेट को जोड़ती
गरीबी और अमीरी दोनों की
बनती दा ग्रेट वाल ईलाही
किसानों की हाड़ तोड़ कमाई
अमीरो की फैशन वाली झूठन
दुबारा से फिर गरीबों के पेट की मिटाती ऐंठन
वाह री रोटी तेरे रूप कितने
तू है तो जिंदा है सब सपने
रोटी राम बुद्घ जीसस अल्लाह वाहे गुरु
रोटी है तभी तक सब तमाशा शुरू
रोटी गीता कुरान गुरुग्रंथ बाईबल
रोटी है तो लग रहा सारा बल
रोटी आज कल परसों
रोटी है तभी तो इंसानियत जिंदा बरसों
रोटी रंग रूप अभिमान
रोटी जिंदगी का अभियान
रोटी माँ बाप और परिवार
रोटी एक परमेश्वर साकार
शब्द शबद
शब्द शबद
शब्द ब्रम्ह
शब्द अहं
शब्द बहम
शब्द प्रेम
शब्द गेम
शब्द ईस्तुति
शब्द प्रस्तुति
शब्द रोग
शब्द भोग
शब्द शक
शब्द हक
शब्द तर्क
शब्द अर्क
शब्द अनंत
शब्द अंत
शब्द एक
रूप अनेक
बिन्यास एक
शब्द मारक
शब्द तारक
मारक टेक
अर्थ अनेक
कितने नेक
क से कृष्ण
क से कृष्ण
क से कंस
क से किसान
क से कचहरी
क से कर्ज
कर्ज से किसान
कंस से जूझता कृष्ण
उलझती कचहरी
कराहता किसान
कचहरी कर्ज और किसान
क से कृषि
क से कुदाल
क से केस
क से कैश
किसानों के मसीहा
किसानों के भगवान
किसानों के नेता
किसानों के दलाल
रोज कर रहे कमाल
किसानों की रोटी बेटी और खेत
उन्हें इंतजार था है और रहेगा
परिवर्तन के नए सूयोदय की पहली किरणों का
देश के सबसे बड़े पंचायत घर और न्याय के मंदिर
कब मिलेंगी भर पेट रोटी सपनों वाली
पूरी ना हो तो कोई बात नही आधी
कर्ज मर्ज और मौत के फंदे से आजादी
ये सब हो चुका है अब अनुवांशिक
कब कोई नया मसीहा अवतार लेगा
किसान का सच्चा चोला
किसानों का मुहबोला
किसानी के डर दबाव और सच्चाई के साथ
जय किसान जय अन्न भगवान
क से कर्ज
कर्ज से दोहरा मरता किसान
जंग लगी सब जंग
जंग लगी सब जंग
क्यों होता अब दंग
इंसान था तन नंग
अब हुआ मन नंग
पहले भी तो था बेढंग
चढ़ा गिरगिट का रंग
बदनीयती का संग
रोज नहाये गंग
ढंके अब कैसे लंग
खूब हुआ बेरंग
गप्पी हाँके धपंग
चिठ्ठी आये बैरंग
सिस्टम हुआ पंग
भ्रष्टाचार की तरंग
गहरी होती सुरंग
नाचे खूब मलंग
महामहिम जाते बंग
मानें खुद को अलंग
हारी जीती जंग
नही कोई अब संग
सोचो अब तो यंग
इंडिया को बना दो यंग
सिस्टम में भर दो रंग
बोलों मीठी टंग
चलो ज़माने संग
ना कोई हो तंग
आयेगी खुशहाली भी संग
अब तो आयी नयी उमंग
अब यंग छुड़ाए जंग
अब हम जीतेंगे सब जंग
तेरे इश्क़ दा हुक्का
आज नशा है बड़ा धुमार
तेरे इश्क़ दा हुक्का
मुझे देता बड़ा खुमार
तेरे इश्क़ दा हुक्का
बंद नैना करू दीदार
तेरे इश्क़ दा हुक्का
सीधे चौका छक्का चार
तेरे इश्क़ दा हुक्का
अब तो बस है दिल के पार
तेरे इश्क़ दा हुक्का
दो जिस्म
दो जिस्म
दो जान
दो नयन
तीर कमान
लक्ष्य साध
भेद वाण
दो जिस्म
एक प्राण
प्रारंभ अंत
तन मन प्रयाण
दाह देह
अंत ज्ञान
रोज भोग
आनंद मान
फिर नया तीर
फिर नई कमान
दो जिस्म नये
फिर एक प्राण
आनंद नया
नया प्रयाण
दो देह मिले
पर दूर प्राण
प्रतिदिन का सुख
अनंत ज्ञान
जिसने जिसकी शर्म ओढ़ ली
जिसने जिसकी शर्म ओढ़ ली
उसको उसकी मर्याद चढ़ी
आखों ही आंखों में चढ़कर
जीवन नव दिन रात हुई
ना रुकना ना डर कर जीना
जिद्द से लड़ कर सब कुछ पाना
एक लक्ष्य हो एक रेख हो
फिर श्रम से है बीज उगाना
मेहनत कर के जुगत लगा कर
नित नित तुम नव स्वप्न सजाना
ठोकर खाकर शून्य समाकर
जिद्दी तुम गिर कर उठ जाना
खून नया है पीर सहा है
हर हद्द लड़ना ना शर्माना
रोज फिसलना रोज संभलना
टूट लूट से मत डर जाना
एक मार्ग चल हलधर हलचल
पिट कर पुनः फिर लड़ जाना
योद्धा तुम तरकश भरा है
नभ में ध्रुव तारा जड़ा है
बांध लो फेंटा बनकर चेंटा
वीर शिवाजी से डट जाना
तुम तो इस भारत की आशा
नव युग यौवन की परिभाषा
अहम वहम में मत फस जाना
पाश्चात्य रंग ढंग से दूर रहना
बह्मचर्य को यूँ ही ना गवाना
संस्कार पथ कभी ना छोड़ना
झुक तन कर मिट्टी को सजाना
अपने सपने लक्ष्य से बढ़कर
राष्ट्र धर्म पर मर मिट जाना
सच्चे अच्छे मन तन धन से
जन जन तक खुशियों को।लुटाना
अपने प्रियजन अपने स्वजन
परिवार मित्रों पर नेह लुटाना
नेह प्रेम के पथिक लाड़ले
मानवता पर मर मिट जाना
ठंड
ठंड
मुझे जी नही
बिल्कुल सच
नही फटकती
मेरे आस पास
ये तो कब की मर गयी
मेरे मन तन और अस्तित्व
को मार कर
अब तो जिंदा है गर्मी
कर्म भूख स्वाभिमान की
नकली ठंड से लड़ने के लिये
मत निकालो मगरमच्छ के आँसू
मेरे तन की ठंड के बहाने लेकर
मैं तो धधक रहा हूँ अतिरिक्त
अपने खुद के ताप और
आपके श्राप से
आप है मेरे सपनों की प्रेरणा
जिद्द और लड़ने की गर्मी
अरे माँ सुन
अरे माँ सुन।
तू आज बहुत याद आई
तारे को जब माँ आज देखा
तेरी साकार सूरत नजर आयी
माँ तू ऐसी थी वैसी थी
ये तो बहुत सुना था मैंने
माँ इस चूल्हे की अद्भुत गर्मी ने
आज तेरी वाली लोरी गायी
तेरे पास होने का अहसास
कराती ये मेरी प्यारी कुतिया रानी
जिसने बड़ी मुश्किल जुगाड़ी
अपनी झूठन में सदा की हिस्सा बटाई
माँ तेरे आशीष से
ना कभी टूटा था हारा
ना कभी हिम्मत गवाई
रोटी को सपने में देखकर
चंदा मामा में लगे तेरी परछाई
डली मिसरी की सी
डली मिसरी की सी
बात पहले प्यार की सी
जीत हारी बाजी मार सी
आंखों में उपजे दुलार सी
उत्छल उमंग की सी
होली के रंग की सी
मोहनी रूप के भ्रम सी
तू कविता तू कहानी
बधाई बड़े दिन की
खुला निमंत्रण
तोहफे
खुशियाँ
छुट्टी
और
लाल टोपी धवल दाड़ी
आज की विशेष मुस्कान
मुबारक बधाई बड़े दिन की
मेरे पापा
रोज बने तुम मेरे सेंटा
और घुमाते रहे चंदा मामा तक
धरती पर जीने की नियम कायदे
पेट भरने और संस्कारों की बात
सिखाते हुए बूढ़े कदम
आज भी उम्मीद के सूरज
वट वृक्ष या कल्पतरु
माँ मेरी तुलसी का विरवा
कामधेनु परिवार की
बधाई आज से अंनत तक
आने वाली खुशियों की
आप को परिवार सहित
कल धूप जरूर उगेगी
आज गलन है तो कल धूप जरूर उगेगी
पेट में आग है अभी जिंदा तो
रोटी से जद्दोजहद तो होंगी
जमीर मर कर जम गया
तिलिस्मी बर्फीले सच के जंगल में
कांटो से दोस्ती जो की है अगर
,खुली छत के नीचे जादुई शानदार हवेली तो होगी
क से
क से कृष्ण
क से कंस
क से किसान
क से कचहरी
क से कर्ज
कर्ज से किसान
कंस से जूझता कृष्ण
उलझती कचहरी
कराहता किसान
कचहरी कर्ज और किसान
क से कृषि
क से कुदाल
क से केस
क से कैश
किसानों के मसीहा
किसानों के भगवान
किसानों के नेता
किसानों के दलाल
रोज कर रहे कमाल
किसानों की रोटी बेटी और खेत
उन्हें इंतजार था है और रहेगा
परिवर्तन के नए सूयोदय की पहली किरणों का
देश के सबसे बड़े पंचायत घर और न्याय के मंदिर
कब मिलेंगी भर पेट रोटी सपनों वाली
पूरी ना हो तो कोई बात नही आधी
कर्ज मर्ज और मौत के फंदे से आजादी
ये सब हो चुका है अब अनुवांशिक
कब कोई नया मसीहा अवतार लेगा
किसान का सच्चा चोला
किसानों का मुहबोला
किसानी के डर दबाव और सच्चाई के साथ
जय किसान जय अन्न भगवान
क से कर्ज
कर्ज से दोहरा मरता किसान
आज अरसे के अंतर
आज अरसे के अंतर
बंद खिड़की से
चाँद का दीदार हुआ
चांद दिखता तो था
पर रील में
रियल फील में
सेल्फी
इमोजी
और चैटिंग
सेटिंग्स में
व्यस्त था
खुद को
वाट्स एप
ट्विटर
फेसबुक
इंस्टाग्राम
और ना जाने
कँहा कँहा
लाइक्स कमेंट
जुटाने में
खुद की टी आर पी
बढ़ाने में
फैन फॉलोइंग 100 k करने में
नए नए आइडियाज को
क्रिएट करने में
क्योंकि आज है
समय सिर्फ
सोशल मार्केटिंग का
अन काउंटेड डेटिंग का
आखिर 2023 की
इंटरनेशनल बेस्ट परफॉर्मर
लिस्ट में टॉप टेन
में जो आना है
ख़ुद की महानता पर फिर नया इठलाना है
जयकारों को सुनने के कान जो आदी है
फैंन फ़ॉलोअर्स ही सच्ची मुनादी हैं
तभी तो लगता है
हम सर्वश्रेष्ठ है
वेट लॉस करने को
हम खाली पेट है
हम अंतिम जन के
सच्चे हितैषी है
हम सर्वश्रेष्ठ है
मल्टीटास्किंग बेस्ट है
तभी एक मैसेज ने
दिया झंकझोर
आपका ध्यान है
किस ओर
इस बार का इंटरनेशनल
बेस्ट परफॉर्मर एवार्ड
का वोट मुझे ही देना
अगर चाहते हो
खुश रहना तो
मेरे चैनल को
लाईक सब्सक्राइब
जरूर करना
चाट
चटपटी चाट
156 मसालों से भरपूर
उसके लिए तरस रही है
स्वर्ग की सभी नूर
चाट अनोखी निराली
उसके बिना खुश नही घरवाली
और बाहर वाली
चाट के विभिन्न आयाम
चाट चाटते रहिये चारों याम
चाट चाटे राजा रंक अघोरी योगी
चाट बिना सब फीका कहते गुरु भोगी
चाट का दौना
छैल रंगीला रससिद्ध लौना
मुख मंडल आत्मा परमात्मा
पर कर देता अदभुत टोना
चाट है गजब की चटोरी
इसे खाये हर काली या गोरी
इस चाट को जो ना खाये
उसकी जिंदगी नरक हो जाये
चाटवीर चटोरे है बड़े महान
पहले चाटे दौना
उसके बाद चलाते कर्म यान
बिना चाट के सुर नही सजता
बिना चाट श्रृंगार नही सजता
चाट बिना फीकी हैं लाली
चाट बिना ना भाए थाली
दुनिया लगती खाली खाली
तारीफ भी लगती है गाली
आओ हम सब मिलकर
खाएं चाट चटपटी नखरे वाली
चाट चटपटी चुटिया वाली
चाट चुलबुली आंसू वाली
चाट रँगीली धांसू वाली
चाट चुरमुरी चालू वाली
जीवन में छा जाएं खुशियां
स्वाद रंगीला झूमे हम प्याली
गोल गोल गोलगप्पे
तीखा मीठा पानी
टिक्की दही भल्ला
खस्ता भटूरा खाकर जगी सोती जवानी
मोमोज बर्गर पेटिस रगड़ा बड़ा पाव
जो खाये जिंदगी में मचाये भागम भाग
चाट खाये कहे किस्मत वाला
चाट बेच कर खुल गया कई लाखों की
किस्मत का ताला
आओ हम सभी चटोरे चाट जी की जय बोलें
अपनी अपनी बंद किस्मत का ताला खोलें
प्राणियों को दुखड़ा दिखाने बाले
प्राणियों को दुखड़ा दिखाने बाले
सबके दुख दूर करो अब आप
दूसरों के सुख से बहुत दुखी है
सबके दुख दूर करो जग के बाप
आ कर अपना जगत निहारों
सुख दुख का अब करो हिसाब
दुख के मारे ढूढ़ रहे सब
खोलों अब तो न्याय की किताब
सपने बड़े हैं
आँख है छोटी
सपने बड़े हैं
कदम मद से लड़खड़
मंजिल पर नपने खड़े हैं
रिश्ते-नाते प्रेम के धागे
कमजोर हैं पर जड़ से जुड़े हैं
एक चेहरे पर अनगिनत चेहरे
गिरगिट की तरह
सफेद खद्दर में लिपटे पड़े हैं
मौत का खोफ है
साथ धर्म का नश्तर तेज
हम हैं तुम हो,पर
आज सब अकेले खड़े हैं
शब्द हैं कलम है दवात है खूँ से भरी
कागज है हाथ हैं पर
गुलामी में जकड़े पड़े हैं
वक़्त कभी तो होगा मुनासिब
मेरे हिस्से की धूप का
मैं तू को हम में बदलने के ज़िद्द में
जहाँ थे अभी भी सदियों से खड़े हैं।
ओ ठंड
ओ ठंड
हो जा गर्म
चाय
रजाई
सुबह की दवाई
अखबार
मोबाइल
फिर गपशप
नये विचार
दुनिया करे हाहाकार
खेत
किसान
सीमा पर फौजी
रसोई में भौजी
मंदिर मेँ भगवान
अखाड़े में पहलवान
संबंधों की रसोई में तू
हाँ
माँ बहिन बेटी
रिश्तों मर्यादाओं में लपेटी
चूल्हे की आग
मन की आग
नव वर्ष की सुगबुगाहट
ठंड
मत नाच बर्बरड़
थोड़ी रख ठंड
अभी नही जमा है खूं
और आँखों मे पानी
दिल है जबां
होठो पर रबानी
नये दौर की शुरुआत
एक नई कहानी
जिंदगी का सफर
जिंदगी का सफर
खुशनुमा सी खबर
पेंसिल होती छोटी
रबड़ बेखबर
कांटों का असर
कागज के फूल
खुशबू बेकदर
बदनामी का डर
अब दिखता किधर
नीलाम जिंदगी
बाजारों के घर
बुलबुलों का कहर
तितलियों का शहर
जिस्म बिकते रहे
रूह है बेखबर
ठंड
ठंड
मौसम
मन
तन
सभी सुकड़ते
किटकिटाते
गरमाई की तलाश
गर्म चाय के उड़ते धुंध
जारी है
मन की भट्टी पर
पक रहा है
एक खयाली पुलाब
अबकी बार ख़रीद कर
लाना है रामू के पापा को
एक बंद गले का कोट
रामू और लाली के स्वेटर्स
माजी की शाल
ससुर जी को गर्म मोज़े
मेरा क्या है
सब कुछ तो है मेरे पास
अबकी बार अच्छी फसल
और खुशनुमा जिंदगी की आस
जीजी की गुड़िया की शादी
और भात
पडोस की कुसमा भाभी को
दिया हुआ वचन
कुंभ मेले की दर्शन आस
तभी अचानक ससुर जी का खांसी का दौरा
रामू की आबाज
मम्मी स्कूल की चार महीने से रुकी फीस
तभी पति देव की आवाज
खेत पर पानी चलना है
डीजल को पैसे चाहिए
अभी आई
थोड़ा धुंध है
जल्दी छटेगा
अच्छे दिन जल्दी आएंगे
आ रहा है राम राज्य
सुरमयी सुराज्य
हल और बीज
हल और बीज
निराशा और खीज
नेह बारिश में भीज
एक हो जाते रीझ
बदली और जल
परसों आज और कल
झोपड़पट्टी और महल
रंगीन तितलियों की चहल पहल
कलह षड्यंत्र और समझौता हल
मधुमेह में मिठाई चुहल
शगुन लिफ़ाफ़ा शगल
भ्रम सपने खट्टी मीठी दहल
छोटी जूती में बड़े पैर की नहल
चल पार उठ बहक चहक टहल
मानवता के पथिक मत रहल
प्रेम कर प्रेम जी प्रेम उगा सतरँगी फसल
खुशियों की कर कलकल चहल पहल
कट जाएगा सफ़र
कट जाएगा सफ़र
पर तुमारी याद
सफर की ठंडी हवा
जमते कुड़कड़ाते तन
नशीले नस्तर
ट्रैन के भीतर के छोटे भारत की
गालियां, चिल्ल पौ
पुराने मोजों की सड़न
उलझते सुलझते रिश्तों के बीच
राजधानी का सफ़र
अस्पताल की लम्बी लाइन
डॉक्टर के केबिन तक
आने बाली धीमी अंतिम आहट
अगले सफ़र की अंतिम सफारी
जिंदा रखे हैं मुझे
अब तक कब तक
तुझे मालूम
या अजन्मे को
भूल जाना मुझे
पर अंत की अंतिम सांसो तक
रहोगें मेरे अपने
सिर्फ तुम।हा सिर्फ तुम
देना मुझे उम्मीद
देना मुझे उम्मीद
ए जिंदगी तेरा आशिक़ हूँ अभी
तेरा शुक्रिया
तेरी रहमत
अब तक हूँ सलामत
अपने सपनों के घरोंदा की हद में
अपने इस बड़ी दुनिया के छोटे से परिवार में
अभी रहम कर
अगर हो जरूरी तो रोक देना
वक़्त की घड़ी की सुइयों को
मान मुझे मोहलत दे थोड़ी
मेरे परिवार और समाज को
दे वक्त जरूरत भर के लिए
मैं आवाज बन कर मुनादी करूंगा रोज
तेरे नाम से पूजा अर्चना और प्राथनाएं
अभी जोड़ना है मुझे दिल मन और विश्वास
जाती धर्म बर्ग भाषा पंथ
विभेदी माला तोड़ कर
विश्व बन्धु हो सभी
एक साथ एक सूत्र
एक रंग एक माला
अपनों के सपनों के लिये
मुझे और जीने दे ना।
प्रेम सच्चाई का वास्ता
हो गया जब दंभ जिसको
हो गया जब दंभ जिसको
हर हाल हद तक अकड़न सभी
रावण के ज्ञान और बल पर
भारी रहा है विभीषण कभी
जब ज्ञान बल और शीलता से
होता बड़ा कद दंभ का
सद्गुणों को भूल जुड़ता नया रावण तभी
गर्व था संज्ञान था
इस बात का अभिमान था
माँ भारती की सेवा प्रधान
सेवक का यही काम था
बस यही ही ज्ञान था
बस कर्म का ही ध्यान था
ना जाने कब इसकदर
मिथ्या दंभ से भर गये
मन का जादूगर था
मन दिलों पर राज है
हर एक फैसलें पर जन जन को नाज है
मुजसा कोई दूजा ना था
ना है कोई विकल्प न होगा
आसमान से बड़ा हूँ कयामत तक
अब मुजसा और कोई ना होगा
किसी एक का अधिपत्य ना था
ना कभी आगे भी होगा
कुदरत की सीख सीखों
प्यार भरोसा जीत लो
माँ भारती के सभी दुलारे
सेवा नेक कर दिल जीत लो
जीवन एक दर्पण
जीवन एक दर्पण
तन मन धन सब अर्पण
सत्य या प्रतिबिंब
कर्क का बिंब
पानी का बुलबुला
चाशनी भरा रसगुल्ला
बड़ा ही चुलबुला
बदनीयत का गुलगुला
नीम सा कड़वा
खजूर सा अकड़ा
बुढ़ापे की लकड़ी
नोन तेल लकडी
तितली गयी पकड़ी
जंजीरो से जकड़ी
सुहागिन का सुहाग
मुश्किल बड़ी खराब
पापी पेट का सबाल
करती रोज हलाल
प्रेमिका सी रंगीली
मुश्किल नयी पहेली
श्याम की बासुरी
सोच यहाँ आसुरी
सत्य पथ का सपना
यँहा कौन अपना
रोज पड़ेगा नपना
जिंदगी एक जंग
क्यों होते हो दंग
जीवन वहता पानी
कहानी कहती नानी
मदिरा सी नशीली
पहाड़ सी हठीली
जीवन एक आँसू
कहानी बड़ी धांसू
जीवन एक समर्पण
प्रभु को कर तू अर्पण
सुन ओ मर्द
सुन ओ मर्द
मौसम सर्द
जीवन गर्द
ओढ़ अब फर्द
मत सह दर्द
पी कर हर्द
साफ कर गर्द
छुड़ा दे सर्द
बन कर मर्द
लोड़ ओवरलोड
लोड़ ओवरलोड बेजोड
जुगाड़ जुगत अब छोड़
नाटक करना छोड़
सच्चाई को मोड़
असुरक्षित जीवन छोड़
अधिकार बड़े बेजोड
नया नही है मोड़
अन्याय का मुँह तोड़
न्याय सरल अनमोल
अंतिम वज्र का झोल
मानवता के दरबाजे खोल
मानवाधिकार कानून अनमोल
सच्चाई का मोल
न्याय सहज अब रोल
न्याय की जय बोल
तेल तरल
तेल तरल
मेल सरल
खेल चल
झेल चल
जिंदगी बेमेल चल
आज तू पेल चल
रेल से तू टेल चल
रोज नया खेल चल
सेल चल झेल चल
सच बोल जेल चल
छोड़ अपना मेल चल
ढेल चल पेल चल
जिंदगी की रेल चल
लगा खुद की सेल चल
सच की गुलेल चल
एक कदम तेज चल
परहेज कर सुलेल चल
मत रोक अब तेज चल
आग से अब खेल चल
आ चल एक बार
आ चल एक बार
लेकर चल
धुंध के उस पार
एक हो छोटा शुभ परिवार
तू हो जग हो पर मैं ना हो
ना जाति पाती
ना वर्ग
ना ईर्ष्या
ना घृणा
ना सौतेलापन
पानी पीने आयें शेर गाय और बकरी
एक घाट एक साथ
चूहा बिल्ली कुत्ते एक साथ हो
रोटी रिश्ता चौपाल
इंसान को इंसान कहलाने को
ना छिड़कना पड़े शराफत का इत्र
ऊपर नीचे के संपर्क संबंध
ना हो बिचित्र
तू गाये मैं सुनू
देशप्रेम की लोरी
चहरे पर ना कोई मुखोटा
एक समान हो छोरा छोरी
ना दुअर्थी बोली
ना चमड़ी की गोली
एक समान हक अधिकार
खाली ना हो गरीब की झोली
एक छत एक रोटी
ना हो खूनी होली
भीड़
भीड़ में गया सो भाड़ में गया
सुना, देखा पर समझ नहीं आया
युग युगांतर से अब तक कोई पहचान नहीं पाया
झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने
तिनको को पहाड़ सा महिमा मंडित करने
तो कभी आक्रोश सिद्ध कर परिवर्तन करने
अपने सपनीले हक मांगने और चिरौरी करने
जुटती है भीड़ दूसरी आँखों के सपनों को पूरा करने
आये दिन भीड़ कभी किराए पर
तो कभी खुद से जुटी निर्भर पराये पर
कभी सही सच से हटी या होकर हठी
कोई मेला,तमाशा ,धर्म समाज की मनाने छठी
क्या भीड़ है सच का आईना
क्या भीड़ आंदोलन का मायना
क्या भीड़ एक राजनीति है
क्या भीड़ ठोस कूटनीति है
क्या भीड़ सत्ता की सीधी सीढ़ी है
क्या भीड़ पानी का एक बुलबुला है
क्या भीड़ सपनों का रसगुल्ला है
क्या भीड़ लाठियों ,गोलियों और बोलियों का तंत्र है
क्या भीड़ सत्ता पाने का षड्यंत्र है
क्या भीड़ महामहिम तक पहुँचने का महामंत्र है
क्या भीड़ है तो कारगार लक्ष्मी सत्ता सुख सफल मंत्र है
पर एक सच यह भी है भीड़ है तो सुरक्षित है रोटियां
गुम हुई अंतिम घर जन्मे अभिमन्यु की सभी गोटियां
भीड़ तय करती है कद, सुरक्षा और सम्मान
भीड़ है अधनंगी, भूखी और बेईमान
भीड़ है गुरु की गुरुता, भीड़ है नई भगवान
भीड़ के हिस्से सदा आधा सच, जो करे साबित उसे महान
उसके भाग्य में लिखा है लाठी, जूता और कल्पना-पुराण
सर्द मौसम
मन तन और अमन का
लो जी प्रगट हो गयी धूप
हाँ सर्दियों की गुनगुनी सी
माँ के आंचल सी
बचपन की प्रांजल सी
कुछ अलबेली सी
सखी सहेली दी
कुछ चंचल अनमनी सी धूप
जो देती निखार रूप और स्वरूप
गपशप खट्टी मीठी साथ नेह अनूप
एक साथ जोड़ती रँक और भूप
धूप सर्दी की कुछ नटखट सी
थोड़ी खटपट सी
अल्हड़ पतझड़ सी
थोड़ी मनगढ़ सी
आरर रे परछाई हुई बड़ी
ओह्ह गायब हुई धूप
फिर उगी तेज ठंडक
लापता हुई धूप
हॉ जी मैं दिव्यांग हूँ
हॉ जी मैं दिव्यांग हूँ
मैं आपसा तो नहीं
उनकी अनुपम कृति हूँ
जिसने आपको रचा।सजाया।गोरवशाली बनाया
आभारी हूँ1आपका ।प्रभु का।
उन सब परम सम्मानित शुभचिंतको का
जिन महानुभावो ने रोज दिया मुझे उपहार
उपहास और तानों का
आपके ये उपहार
बनते हैं मेरी ताकत,ज़िद और स्वावलंबन
रोज आपकी गालियां
खोलती है मेरी किस्मत की नई गलियों को
आभार परम पिता का जो मुझे
बनाता है आपसे विशेष
दिव्यांग।जी हाँ मैं हूँ दिव्यांग
नैना चौ लुटे बीच बाजार
नैना चौ लुटे बीच बाजार,
नैनन ते नैना बतियाते ।
करें आर की पार नैना चौ लड़े बीच बाजार,
हिय भीतर हिचकोले लेके पिया को चढ़यो बुखार।
अब पड़ेगी कैसे पार,
नैना बतरामे क्यों यार,
सब नाते थोथे अब लगते भोजन रुखो बेकार।
पिया की लपसी ऐसी चाटी,
सुधि बुधि गई सब हार,
नैया मुद गए बीच बाजार।
पिया मेरे सतहेज ना जाने,
बतरामे गूजरी रस नार,
मैं मद बाबरी लुट गई पगली,
पिया पे दियो सब हार।
नैना चौ करबामे रार,
लड़त लड़त दिन रैना कट गए,
पिया को चढ़यो खुमार,
रंग चढ़यो मो पे रंग रसिया पिया की मैं बजमार।
नैना अब मत करवाओ रार,
यार मेरो अलवेला छलिया,
खावे छप्पन ठार,
जब मैं मांगू नेह प्रसादी,
मोय परोसे छार।
सुनो मेरे सतहैजिया सदगुरू
मेरी टपक रही है लार
मोय जानो पल्लीपर
टेड़ी टांग पे रास रच रहे मेरे प्रीतम भरतार
नैना छल गए बीच बाजार
मो तो चौ रूठ गए सरकार
मैं तो कारे तेरी दासी
मोय ले चल वैतरणी पार
अब मोय इन नैनन की नाय दरकार
एक हतो हिय श्याम रंग रगयो
अब तो होएगी आरमपार
मैं तो जाऊँगी भरतार के द्वार
नित नित मैं बुहारी दूंगी
रोज कलेवा माखन लूँगी
चरण चाप अपने प्रियतम के
हो जाऊँगी बलिहार
नैना चो लड़े बीच बाजार
जारी….
गौपूजन दिवस
गाय हमारी माता है
सदियों से ये नाता है
गौमाता भूखी मरती है
उसको खत्ता भाता है
बहुत लोग गौपालक बनते हैं
गाय के नाम पर ठगते है
गाय तिल तिल झेलती है
नित नित कष्टों को सहती हैं
गुरु घंटाल मलाई खाते हैं
गौमाता का दूध लजाते है
सरकार गौ सेवक बनती है
50 रुपये में गौ पेट भरती है
गौ भक्त नित रोज दुहाई देते है
गौ माता से प्रतिपल छल करते हैं
किसान जोर लट्ठ दिखाता है
गौ माता को खेत से भगाता है
नित रोज गोष्ठी होती है
गौ माता पूजित होती है
गौसेवा व्यापार अनोखा है
माया का चक्कर धोखा है
गौ माता को कूड़ा घर छोड़
गौ अष्टमी पर खुर धोते है
गौ माता तिल तिल मरती है
गोपाल नंद घर सोते है
दर्पण में अर्पण देखा
मैं को तज कर
नेह रंग रच कर
ख़ुद से मंझ कर
नभ पर सज कर
दर्पण में अर्पण देखा है
जीवन में सब सच देखा है
खूब कमा कर
जोड़ जुटा कर
चांद मुड़ा कर
बिन ऑंसू क्रंदन देखा है
रो रो कर हँस कर देखा है
खुद से छिपकर
मेगा जिप कर
मनी की सिप कर
परछाई से खुद नप देखा है
गर्म सर्द हो तप देखा है
खुद का श्राद्ध कर
पेट पत्थर बांध कर
बिन स्वर निनाद कर
लहू को काला कर देखा है
अग्नि शिखा पर चल देखा है
खुद को खुद से जब देखा है
जारी—
मानव का स्वभाव
वेदना विरह की अहद इश्क ए मेहराब,
कैद में जकड़ी सी एक हिजाब।
गिरगिटिया जिन्नात का नकाब,
मद मस्त अलहदा सा खिजाब।
जिंदगी तिल तिल होती खराब,
अल्हड़ मस्ती सी पुरानी शराब।
रतजगों में कटे तिलिस्मी ख्बाब,
बिन ताज सत्ता होकर नवाब।
पीकर जीकर हर एक अभाव,
लश्कारा ए इश्क की चढ़ नाव।
किस्मत और कर्म का प्रभाव,
यही तो है मानव का स्वभाव।
सुगंध सुविचारों की
सुगंध सुविचारों की
सुहागन कोमल तन
यम को हराता कठोर मन
पति का सुरक्षा कबच
परिवार का जादुई जिन्न
बच्चों की ममतमयी माँ
रोज जीती है तिल तिल
पल पल खटती किस्तों में
आज भूखी प्यासी जीयेगी
एक और दिन नया अपने उनके लिए
आज करवा चौथ का दिन जीयेगी उसके लिए
कर पूजा नमन सत सत वन्दन अपनों के लिए
अपना सब कुछ सौंप देने वाले महान अबला मन
तुझे शत शत नमन वन्दन शत शत नमन
आगे बढ़
आसमान की छत पर चढ़ कर
आगे बढ़ चल डग पग नभ कर
सपने सच कर लड़कर डटकर
जिद्द से दिल से लक्ष्य पकड़ कर
संस्कारो की बगिया महका कर
खुशियों को जन जन चहका कर
शुभ नवचार घर घर पहुँचा कर
लड़ प्रतिपल खुद से कर्माकर
कर्म पथिक रात दिन एक कर
अंतिम क्षण तक शेष प्रहर कर
झुक रुक कर समय शोध कर
भेद शत लक्ष्य अभिमन्यु बन कर
अर्जुन बन षड्यंत्र भेदन कर
जीवन पथ नित नित खट कर
श्याम प्रभु का वन्दन नित कर
शतायु हो ऋद्धि सिद्धि यश पाकर
सद स्वास्थ्य मिले सद मार्ग पर जाकर
हर दिन मंगल शुभ हो प्रभु का चाकर
प्रेम नेह लुटा खुश रहो प्रभु नाम को गाकर
म से माँ
म से माँ
म से ममता
मिट्टी चढ़ उगी
काल्पनिक समता
मजबूर मजदूर
पर भाग्यशाली जरूर
वला फलाँ नही
अबला नही सबला गुरुर
नित निकलती है
जिम्मेदारी समेटे
आधी आबादी की शर्म लपेटे
डर हया तज
ईश्वर को भज
पसीने से सज
ले कर्म ध्वज
हद जिद से
गिर उठ के
बढ़ती सहज कदम से
माँ जो हूँ ना
ग्रह मणी भी
गृहणी भी
अक्ल नकल से दूर
परछाई में हूर
रोटी पेट की खातिर
धुँध में तलाश रही
अपने हिस्से का अखनूर
जिंदा हूँ तेरी खतिर ओ नन्हें मुन्नू
मजबूर मजबूत जैसा बबूर
पेट में धर महसूस कर
अपने अस्तित्व की झलक
बांध लांघ नाप हर फ़लक
चिंता छोड़ चढूँगी आसमान तलक
तेरा अप्रितम अस्तित्व और प्रेम
खिला देता मेरा रोम रोम
मेरी ताकत नन्हें हुजूर
आप अभी से हो मेरे भारत का नूर
दीवाना
मिट्टी की गठरी मांटी का
रूप रंग की काठी का
धन माया की चांटी का
गुलामी की परिपाटी का
हुक्मरानों की लाठी का
फेंकूँ छाया कदकाठी का
चाटुकारों की गांठी का
जर जोरू जमीन हांठी का
धर्म अमर बेल मन छांटी का
नशा मदमस्त गुलाटी का
भय डर के सहपाठी का
प्रभु चरणों की माटी का
राष्ट्र धर्म धर्म जाती का
मद से मंदित भांति का
चकोर को नक्षत्र स्वाति का
प्रेम प्रशंसा की ख्याति का
कोयल सुर में गाती का
दीपक को नेह वाती का
प्रभु मिलन की पाती का
डाक्टर दीपक गोस्वामी
आदर्श संस्कार शाला ।
अग्नि तप कर
अग्नि तप कर
भूख से लड़ कर
दिन रोज उपासा हो देखा है
सच में ख़ुद पर हँस देखा है
फटी ज़ेब संग
तिमिर शेष तंग
काजल से खुद रंग देखा है
सूरज में दर्पण देखा है
तानों के आशीर्वचन सह
काँटो की शूली पर नित रह
आसमान छत कर देखा है
हमने सच का फल देखा है
नयन नेह में रचकर बसकर
अश्रु के बादल से भिड़कर
गिर कर उठ कर फिर फिसल कर
भय तम का जंगल देखा है
मैंने खुद का कल देखा है
डाक्टर दीपक गोस्वामी
मथुरा ,उत्तर प्रदेश,भारत
फिर से जागा है रावण
फिर से जागा है रावण
कँहा है मेरे प्रभु श्री राम
राम तत्व को शत शत प्रणाम
अंनत शीश से पुष्ट दशानन
मुदित हँसता है नित अभिराम
कलयुग में सब खोजों तो राम
अब दशरथ से पिता विलोपित
जो थे सच्चे अंतिम जन चिंतक
ना अब कौशल्या सी माता राम
कलयुग में सब खोजों तो राम
खोये लक्ष्मण भरत शत्रुघन भ्राता
अब तो ना रिश्ता और नाता
घर घर चूल्हे मिट्टी से लड़ते
भाई भाई का दुश्मन हर गांव
कलयुग में सब खोजों तो राम
मंथरा हर गांव गली में फिरती
गौ माता कूड़े कचरे को चरती
कुत्ते बिल्ली हैं अब घर की शान
धन बल ही है नवयुग भगवान
कलयुग महा नायक है रावणराम
कँहा है मेरे प्रभु श्री राम
मर्यादाओ को तार तार कर
शर्म लाज को जुआ हार कर
स्वहित खातिर अनगिनत को मार कर
इठलाते खुद को समझ रहे हैं राम
कँहा है मेरे प्रभु श्री राम
वृदाश्रम में माँ बाप को भेजकर
भाई बहिन का हक छीनकर
झूँठ माया से जन जन को लूटकर
यौवन रूप मद के है दीवानेराम
कँहा गए मेरे प्रभु श्री रस्म
न्यांय की देवी है नयन मूँद कर
रक्षक भक्षक संग नेह गूंथकर
धर्म शास्त्रों को नित नित कोसकर
विश्व गुरु बन ज्ञान पेलते चंहु याम
कोई तो ढूंढो मेरे प्रभु श्री राम
जारी…………
चलो उठो
चलो उठो करो
कुछ अदभुत
बढ़ो
एक दिशा लक्ष्य
लड़ो
तम से दिल से
आसमान पर चढ़ो
पर इतराना मत
कभी मत डरो
डर के आगे जीत
रोज नई इबारत गढ़ो
जान लगा पूरी शिद्दत
अपनी कल्पनाओं को मढ़ो
बस अब मचलना है
अकल्पनीय संभावनाओं को तड़ो
दूरदृष्टि सुदूर वृष्टि
पतझड़ से मत झड़ो
टिके रहो लगातार
हाँ सच जीतना ही है
चाहें जाओ कितनी बार हार
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
तू मेरे मन का तार
तू मेरे जीवन का सार
तू ही सृष्टि
तू ही वृष्टि
तू ही जीवन सिंधु
तू ही प्रेम विन्दु
तू एक मर्यादा
तू जीती आधा आधा
तू मेरा मान
तू मेरा स्वाभिमान
तू है तो है परिवार
तू मत जाना कभी हार
तू तो है खुशियों का हार
लहरों से आगे करना तू नोका पार
नया सूरज करता तेरा इंतजार
ना बेटी कभी मत तू जाना हार
डर के आगे जीत है ज़िद की
चल आगे मंजिल के पार
इश्क़ बेहिसाब
अहद इश्क़ बेहिसाब
कैद में जकड़ा एक हिजाब
गिरगिटिया जिन्नात का नकाब
मद मस्त अलहदा सा खिजाब
इसके बिना जिंदगी खराब
अल्हड़ मस्ती की पुरानी शराब
रतजगों में कटे तिलिस्मी ख्बाब
बिन ताज सत्ता का नबाब
पी ले जी ले हर अभाव
लश्कारा ए इश्क चढ़ के नाव
जवानी किस्मत और शबाब
डाक्टर दीपक गोस्वामी
यादों का सफर
काँटो संग फूल हमसफर
पगडंडियों से आसमान पर
जीना बिना भय और डर
उड़ ले सपनों के पर
सावधान हो बेख़बर
मानवता हित थोड़ा रख स्वर
कमजोर नही हिम्मत हर प्रहार
खट्टा मीठा रूखा सूखा चरपर
सीख फिर चल अपने शहर
पूराने समय से सीख आएगी लहर
अपनों से मिल ले उनकी खैर ख़बर
मत्यु सत्य है बुराइयों से डर
थोड़ा नेकी खजाना तो भर
मचल सचल नई पहल तो कर
डाक्टर दीपक गोस्वामी
लड़ना मुझको
अंधकार से लड़ना मुझको
डर से आगे बढ़ना मुझको
आसमान की अंतिम हद से
चांद-सितारे लाने मुझको
जीवन, मत्यु का बिस्तर है
कर्म हमारा अभी कमतर है
दो-दो हाथ किए किस्मत से
तन-मन श्रम की खद्दर है
रोज लडूंगा रोज मिटूंगा
चढ़-चढ़ कर मैं खूब गिरूंगा
पर, जीवन की अंतिम बेला तक
पल-पल क्षण-क्षण रोज हंसूंगा।
साथ चल तो सही
दो कदम साथ चल तो सही
अंधेरे में मचल तो सही
अनकही सुन तो सही
दो दो साठ कर तो सही
बंदर बाँट कर तो सही
उल्टी खाट कर तो सही
विषबीज निगल तो सही
मोटा माल चुगल तो सही
टेड़ी चाल चल तो सही
भितरघात कर तो सही
तभी तो होगा ये सही
हम बंदर नहीं इन्सान हैं
हैवानियत से जुड़ी हमारी सही पहचान है
रोज रोज कहता हूँ यही
अब तो अपना चहेरा कर ले सही
थोड़ी जिंन्दगी निगल तो सही
दो कदम साथ चल तो सही
विश्व मुस्कान दिवस
आओ थोड़ा सा जी तो ले
एक पल खुशियों को सीं तो ले
रोना रुलाना नित खाना कमाना
रोटी बोटी लँगोटी सोटी और महखाना
दिन रात मायावी घनचक्कर और फ़साना
सिसक कसक बहक कर यूँ ही बड़बड़ाना
फिर कोसना खुद को भगवान पर उलहाना
किस्मत पर रोना और जमाने पर बड़बड़ाना
जिंदगी भर मुँह फुला रौतडू राम कहलाना
चार पैसा पद पाकर कमजोर को गरियाना
ये शरीर है प्रभु से मिला किराये का तहखाना
सेवा कर मत बहक कुछ दिन बाद है फिर जाना
मद दंभ और अकड़ से मत तन फिर होगा पछताना
हँसने के कुछ बहाने ढूंढ थोड़ा गम पी तो ले
अरे एक बार मुस्कुरा थोड़ा सा थम तो ले
अंतिम जन को खुशियों की पोटली बांट तो ले
निज स्वार्थ तज जन हित तम छांट तो ले
मुस्कान से जी निश्चल निस्वार्थ नेह प्रेम गांठ तो ले
अमन की बगिया से नफ़रत के कांटे काट तो ले
ओ मन
मत उथल पथल हो
रात कठिन है
दूर सवेरा
दीपक सूरज का
रोशन घेरा
अंधकार तम पर है तनता
जहर शम्भु के उर पर छनता
कोयल तो कूक रही है
पर बोली उसकी रुंधी हुई है
प्यार प्रेम ममता आँचल है
काली छाया की हलचल है
जुगनू सारे जग रौशन है
फिर भी सन्नाटे हरपल है
मन मेरा आतंकित क्यो है
नये सवेरे में क्या कुछ पल हैं
मैया रानी
मैया जी चढ़ पालकी आयी
चंहु खुशियां छाई
मंगल गान बजाई
बधाई बधाई
मन दरशन को भागा
नेह रोग है लागा
भक्ति भाव है जागा
सोया भाग्य है जागा
धन्य हुआ अभागा
मन प्रेम से पागा
फूलों की खुशबू
संग जोड़ समर्पण धागा
तन भवन कूँ भागा
बाजत ढप ढ़ोल नगाड़ा
दर्शन पाकर के मैया जी
तन मन धन सब हारा
मिल सब बोलो जयकारा
बोलो साँचे दरबार की जय
मैया रानी की जय
जगत जननी की जय
सुख मंगल करणी की जय
जनपथ
जनपथ पर चल
ले कर्म का हल
थोड़ा सा ढल
थोड़ा सा मचल
थोड़ा सा संभल
थोड़ा सा बहल
जल ही जल
बंजर में हल
बीज से फल
थोड़ी कोशिश चल
फिर फल ही फल
मत होना खल
तू गाता चल
गुनगुनाते चल
जन जन से मिल
ख़ुशी लुटाता चल
होकर पागल
चला रे हल
काँटो पर चल
मत कर कल
तू कर्मवीर पथिक
नही है मलमल
विश्व वृद्धजन दिवस
बूढ़ी अम्मा बूढ़ी नानी
सपनों की गुड़िया की कहानी
कहानीकारों की वो प्यारी नानी
माखन खीर सी मीठी नानी
मजहब प्रेम सिखाती नानी
दादी की वो कानी नानी
सपने गोद सुलाती नानी
मीठी डांट पिलाती नानी
ना जाने क्यों हुई पुरानी।
ना जाने कब हुयी बेगानी।
किस ने कर दी कानी नानी।
फिर लौटा दो बात पुरानी।
मेरा बचपन मेरी नानी ।
कितने काँटो के जंगल उगते
कितने काँटो के जंगल उगते
नित नए सपनों के खेत
जिद से जिंदा जो है स्वहित
जीवन सिर्फ मरुस्थल की रेत
स्वतंत्रता क्रांतिपुंज महानायक
युग शांति शक्ति ध्वज श्वेत
जन जंगल में आग लगी है
कोई तो नेह जल उपजाओ
जीवन में सहकार से जुड़ कर
अमन प्रेम भागीरथी लाओ
पढ़ना लिखना खूब समझना
धन से बढ़कर सम्बन्ध कमाओ
अपने लिए तो सब जीते हैं
अन्तिमज़न घर खुशी लुटाओ
तन मन धन से सदा स्वस्थ रहो
भारत को मिल विश्व गुरु बनाओ
कड़ी मेहनत नित डटकर सधकर
कर्मवीर तुम लक्ष्य को पाओ
जीवन के उलझे तारों को
मुस्कान लुटा कर खुद सुलझाओ
सफलता के मद में डूब तुम
ना इतराओ ना भरमाओ
जीवन की इस भूल भुलैया
प्यारे थक मत नित मुस्काओ
कौन क्या है
कौन क्या है कैसा है
उस पर कितना पैसा है
कितना रसूख और रंगबाज जैसा है
कितनों से अलहदा ऐसा वैसा है
अपुन रोटी राम के लिए सब एक जैसा है
अपने टूटे खुर्दबुर्द चश्मे से
जब एकटक देखता हूँ दूर तलक
बेनकाब दुनिया के इस हमाम में
हर इंसान नागा और हमपेशा हैं
प्रेम
प्रेम गली अति साँकरी
इत दो अंतस ना समाय
दो तन मन जब एक हों
तब प्रेम प्रीत उपजाय
काजर की कोठरी है प्रेम
ह्दय नेह पोटली है प्रेम
सहज मन में उपजे है प्रेम
निर्धन का धन है प्रेम
खुद ही हो जाता है प्रेम
खुद नेह लुटाता है प्रेम
जाति धर्म से परे प्रेम
रूप रंग देखे कभी प्रेम
नाम पता ना पूछे कभी प्रेम
तन मन धन सब हार कर जीता है प्रेम
शरीर वासना से परे प्रेम
नित नित बढ़ता है स्वयं प्रेम
ईश्वर स्वरूप है अमर प्रेम
सत्य वद
सत्य वद
धर्म चर
जीत दिल
कर्म कर
रोज मिट
सुकर्म पर
दुख हर
उपक्रम कर
हार मत
हर कर्म कर
जिंदगी एक
होम कर
प्यार बो
अमन कर
रो मत
मुट्ठियाँ गर्म कर
आँसू पोंछ
दिल मर्म कर
तू हार मत
सिर्फ कर्म कर
पहचानना है ये कौन ?
रहस्यमयी शत भुजी
दिव्यांका
रूपांका
झाड़ू वाली
पोछे वाली
चाय वाली
नाश्ते वाली
रोटी वाली
बर्तन वाली
आया
ट्यूटर
नर्स
बैंकर
ऑलवेज हेल्पर
सर्विसेज प्रोवाइडर
लाइफ स्पीड ब्रेकअप डिवाडर
वामांगी
बहु
पत्नी
मां
विन पैसा नोँकर
जिसने नही सीखा कभी ना कर
कर कर और करके मर
काकी, भाभी, चाची, दीदी
मौसी,फूफी, नानी ,दादी
टाइम मशीन टाइम पास
घरेलू सर्कस का जोकर
ताश के पत्ते का पोकर
विज्ञापन का पोस्टर
रील के हिट टोस्टर
लाफ्टर क्वीन
बच्चे बनाने की मशीन
ब्यूटी मीन
सदा चिंता महीन
जीती जगाती सोती रोती
अपने अपनो के लिए
अपने नही दूसरों के सपनों के लिए
नित मौन गम का प्याला पिये
बाजार की शान
मुस्कान की दुकान
लिए जिस्म आलीशान
पहचान मादा परेशान
थोड़ा खुशी थोड़ा दुखी
थोड़ी सी अफलूतान
थोड़ी सी महान
सदा परेशान
आज क्या बनाऊ
ऐसा क्या खिलाऊ
जिससे इनका वेट ना बढ़े
शरीर पर बुढापा ना चढ़े
हेल्दी टेस्टी और फटाफट
बच्चे भी खा जाए चटाचट
पेट में सेट भी हो जाये सफ़ाचट
और जाने क्या क्या।
हजारों हजार आंखों की वासना को झेल
अनचाहे नानसेंस टच को झेल
विन मर्जी जोड़ा बेमेल
फिर भी जीवन रेलम पेल
कंपनी स्कूल फैक्टरी ऑफिस
या अपने आसपास
कामकाजी वाकिंग मशीन को गौर से देखिए
महिला सजीव रोबोट
वर्किंग वूमेन ai सुपर शॉट
सुबह चलते चलते नाश्ता टिफिन बना
9 am to 9 pm काम कर निकल
बाजार से सामान चुन चुन भर झोली सकल
समय की चिंता प्रति पल
सवारती सजाती निहारती ह्दयतल
क्योंकि सब को खिलाना और नेह से सुलाना है
रात को देह मथ है सेज को सजाना
बिन मन खिसयानी ही सही पर है मुस्कराना
फिर सुबह है जल्दी भोर तड़के
थोड़ा सा योगा फ़ॉर फिटनेस करके
निकलना है नए कर्म पथ
कस लिए है जो अश्रु रथ
पसीने से हो लथपथ
होम होना है तन मन धन सत्य शपथ
यही है होना सदा मेरी किस्मत
क्योंकि पर्दानशीं है सदा अस्मत
कुछ बात तो कर
सुन खुद से खुद की एक मुलाकात तो कर
अपने अस्तित्व मन से कुछ बात तो कर
समझ जिंदगी इतनी परीक्षा रोज क्यों लेती है
दो पल ठहर खुद से खुद की मुलाकात तो कर
अपनी कमजोरियों और गुणों को जान
अपनी ताकत समझ सम्भावना को छान
शांत चित्त हो मन भीतर बैठे ईश्वर को पहचान
सुन सभी की पर सदा अपने मन की मान
तनावमुक्त रह कर अपनी खुशियों का गान
लक्ष्य सिद्ध कर्म पथ डट लगा दे पूरी जान
परिवार समाज से जुड़ दे सभी को सम्मान
लुटा खुशियों की पोटली छोड़ सभी अभिमान
एक बार सपनों से मिल चढ़ लक्ष्य स्वप्न यान
हार से ना डर सुनिश्चित जीतेगा रे तू पहलवान
गिर फिर उठ चल तेज लक्ष्य पथिक महान
मिट्टी से जुड़ नवाचारी कर कुछ नया सन्धान
अनुसंधान से निश्चित बनेगी तेरी नई पहचान
मुंगेरी लाल के सपनों से जाग उठ जीत जहान
चल एक बार खुद से मुलाकात तो कर
थोड़ा मुस्कुरा थोड़ा गुनगुना अपनों से बात तो कर
रे कर्मयोद्धा विषमताओं से दो दो हाथ तो कर
किस्मत जगा डर से मुक्का लात तो कर
जारी…
श्राद्ध
श्रद्धा से
विनम्रता से
भाव से
विश्वास से
रिश्ते खास से
अपनों को
अपने सुरक्षित सपनों को
अपने कुल मान को
समाज सम्मान को
पितरों को
भूले बिसरे मित्रों को
सन्यासी करे खुद का
अपनी जड़ चेतन सुध बुध का
नवाचार को
सद विचार को
वैदिक ब्यवहार को
सुरक्षित घर संसार को
डर से
संस्कृति के घर से
काल्पनिक पर से
क्योंकि श्राद्ध
सदैव समपर्ण है
तन मन धन अर्पण है
नेह का तर्पण है
कृतज्ञता का दर्पण है
अंनत अंनत तक हदयतल से श्रद्धा नेह भावांजलि समपर्ण है
पितृ पक्ष
सोलह दिन है श्रद्धा दिवस
नमन वन्दन हिय नेह कलश
देह प्रदाता ज्ञान गुण सरस
सत्यपथिक कुल भूषण परस
गृह लोक पधारें पितृ देव
पूजन वन्दन है पितृ देव
ह्दय सिंघासन अर्पित पितृ देव
नेह भोजन अर्पित है पितृ देव
शत शत वन्दन नित पितृ देव
नेह कृपा बुहारों पितृ देव
सब काज समारों पितृ देव
संकट सब टारो पितृ देव
काक कूकर गौमातः संग आए पितृ देव
श्रद्धा से भोग लगाओ जय पितृ देव
मिल सभी आरती उतारो जय पितृ देव
होय पूरन सब काजा कृपा पितृ देव
सब कष्ट निवारण कृपा पितृ देव
सब देव दुलारे जय पितृ देव
संकट दुख हारे जय पितृ देव
बढ़ी कुल फुलवाड़ी जय पितृ देव
चहुँ कीर्ति संपदा बाढ़ी जय पितृ देव
होय सब पूरन काजा जय पित्त देव
सब मिल नवाओ माथा जय पितृ देव
पितृ देव की कृपा सरस
नित अंतर्मन में छाय
पितृ देव सत्यप्रेम दर्श
पाय मन अंतर हर्षाय

डाक्टर दीपक गोस्वामी मथुरा
उत्तरप्रदेश , भारत
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