कुछ अनकही बातें
कुछ अनकही बातें

कुछ अनकही बातें

(Kuch Ankahee  Baatein )

 

कुछ अनकही बातें, कुछ पुरानी यादें

कहां से आती हैं कहां चली जाती हैं

कुछ नही समझ आता क्या होता हैं

कभी कभी।

कुछ अनजान रास्ते और अनजान राहे

जाना कहां हैं समझ नही आता

बीच राह मैं खड़े खड़े मन बड़ा घबराता

रास्ते पर खड़े खड़े सोचती हूँ अक्सर क्यूँ

नही आगे बढ़ पाती मै अपनी डग़र पर

लगता है ऐसा क्या मैं

आपसी मंजिल पर पहुंच पाऊँगी

या चौराहे पर अकेली खड़ी रह जाऊँगी

क्यूँ होता है अक्सर मेरे साथ ऐसा

कि मंजिल होती है पास

लेकिन नसीब नहीं देता साथ

 

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लेखिका :- शैफाली गुप्ता

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