मां के आंगन की मिट्टी

मां के आंगन की मिट्टी

( Maan ke aangan ki mitti ) 

 

दो पल के लिए मेरे मन
उस रास्ते से गुजर जाऊं
मां के आंगन की मिट्टी
अपने आंचल में भर लाउ

मां के आंचल की खुशबू
अपनी सांसों में भर लाऊं
आम के पेड़ और झूला
धमाचौकड़ी का मंजर
अपनी आंखों में भर लाऊं

बहनों की खट्टी मीठी
बहस और तकरार
एक थाली में हम सब का
मिलकर खाना बरकरार
सहेलियों की आवाजें
मनके कोने में बसा लाऊं

पिता की डांट फटकार
उनकी आंखो में उमड़ा प्यार
दिल में छुपा कर लेआउ

बैठ कभी किसी कोने में
होले होले सुबक कर
यादें अपनी ताजा बनाऊं

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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