रामांजलि

कृष्णाजी की मधुरिम वाणी,
गाती रामांजलि कल्याणी।
रामचरित अपना ले तो फिर,
धन्य हो उठे मानव प्राणी।।

आषाढ़

कभी तेज रिमझिम कभी, लगातार बरसात।
लगते ही आषाढ़ के, बरस रहा दिन-रात।।

तृप्त हुए हमको लगे, नदिया पोखर झील।
श्याम घने बादल घिरे, गए धूप को लील।।

दुखद सत्संग

जिला हाथरस में हुआ, बहुत दुखद सत्संग।
भीड़ असीमित थी वहाँ, किंतु व्यवस्था भंग।।

तुच्छ व्यक्ति ईश्वर बना, कहता ‘लो पग-धूल’।
इसीलिए भगदड़ मची, यह घटना का मूल।।

गिरकर दबकर मर गए, वहाँ बहुत से लोग।
गाँव फुलरई में हुआ, बड़ा दुखद दुर्योग।।

‘भोले बाबा’ था बना, अति साधारण व्यक्ति।
जानें क्यों कुछ मानते, उसे ईश की शक्ति।।

उसे किसी से था नहीं, रत्ती भर अनुराग।
दुर्घटना के बाद वह, गया वहाँ से भाग।।

सरल ( गीत )

सबकुछ कर लो सरल, स्वयं का,
सबसे कठिन सरल होना
पग-पग पर बाधक होता है,
मानव-मन चंचल होना

कह कर लोग पलट जाते हैं
अनुबंधों से हट जाते हैं
दिए वचन पालन होते हों,
उस धारा से कट जाते हैं
लोग बदलते रहते चोले,
और भरोसे भी तोड़ें
अपनी ही बातों पर सबको,
दुष्कर बहुत अटल होना
सबकुछ कर लो सरल, स्वयं का,
सबसे कठिन सरल होना

सुनें न ‘पर’ की करुण-कहानी
‘निज’ के नहीं नयन में पानी
निजी लाभ के लिए सदा ही,
करते रहते हैं मनमानी
लेना-देना नहीं किसी से,
जिनके मन में स्वार्थ भरा
पर पीड़ा में उनकी आँखें,
संभव नहीं सजल होना
सबकुछ कर लो सरल, स्वयं का,
सबसे कठिन सरल होना

जैसे भीतर वैसे बाहर
दिखते नहीं वही नारी-नर
कृत्य और कुछ होता उनका,
किंतु और कुछ होता मुख पर
अपने-अपने सोच सभी के,
अपने-अपने लोभ बड़े,
सदा असंभव है स्वाभाविक,
सबका मन निर्मल होना
सबकुछ कर लो सरल, स्वयं का,
सबसे कठिन सरल होना

पग-पग पर बाधक होता है,
मानव-मन चंचल होना
सबकुछ कर लो सरल, स्वयं का,
सबसे कठिन सरल होना

माँ ( सजल )

समांत- आरी
पदांत– माँ
मात्रा भार– 14

है साधारण नारी माँ।
सब नातों पर भारी माँ।।

हमें धरा पर ले आई।
देकर जन्म हमारी माँ।।

‘राम-श्याम’ ने सिखा दिया।
होती देव-दुलारी माँ।।

डर ने पथ घेरा अपना।
हमने तभी पुकारी माँ।।

दुग्ध-पान कर शिशु पलते।
सबकी पालनहारी माँ।।

बना दिया घर को मंदिर।
सबसे बड़ी पुजारी माँ।।

मैं अनाथ हो बैठा हूँ।
जबसे स्वर्ग सिधारी माँ।।

डॉ० रामप्रकाश ‘पथिक’
कासगंज( उ.प्र.)

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