दुनिया के
दुनिया के
भाग फूटे पड़े हैं दुनिया के।
पांव उखड़े पड़े हैं दुनिया के।
खेल बिगड़े पड़े हैं दुनिया के।
दाम उतरे पड़े हैं दुनिया के।
दौर कैसा है यह तरक़्क़ी का।
काम सिमटे पड़े हैं दुनिया के।
जिस तरफ़ देखिए धमाके हैं।
ह़ाल बिगड़े पड़े हैं दुनिया के।
बन्दिशों के अ़जब झमेले हैं।
हाथ जकड़े पड़े हैं दुनिया के।
ऐसी मंहगाई है के मत पूछो।
रंग फीके पड़े हैं दुनिया के।
क़ह़्त ऐसा पड़ा है नग़मों का।
साज़ सूने पड़े हैं दुनिया के।
हम तो कब के फ़राज़ लुट जाते।
दांव उल्टे पड़े हैं दुनिया के।

पीपलसानवी
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