ईश्वर से शिकायत
सत्संग चल रहा था। गुरुजी अपने भक्तों के प्रश्नों के उत्तर बारी बारी से दे रहे थे। 15 साल की एक छोटी बच्ची ने गुरुजी से सवाल किया:-
“गुरु जी, मुझे भगवान से शिकायत है कि ईश्वर(भगवान) अच्छे लोगों को हमेशा इतने कष्ट क्यों देते हैं? अच्छे लोग व उनके परिवार वाले हमेशा कष्ट में रहते हैं, ऐसा क्यों? मेरे पिताजी भी 2 साल पहले हमें छोड़कर भगवान के पास चले गए, ऐसा क्यों किया ईश्वर ने? कृपया मुझे जवाब दें।”
यह एक बहुत ही गहरा और जटिल प्रश्न है, जिसका उत्तर अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। लेकिन मैं आपको कुछ विचार देने की कोशिश करूंगा जो इस प्रश्न का उत्तर देने में मदद कर सकते हैं।
गुरुजी बच्ची को समझाते हुए बोले:-
“बेटा, पहली बात यह है कि ईश्वर की कृपा और कष्ट दोनों ही हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ईश्वर हमें कष्ट देता है ताकि हम अपनी ताकत और साहस को पहचान सकें, और हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। दूसरी बात यह है कि अच्छे लोगों को कष्ट देने का मतलब यह नहीं है कि ईश्वर उनसे नाराज है।
बल्कि, यह एक परीक्षा हो सकती है जो उन्हें अपनी विश्वास और धैर्य को मजबूत बनाने में मदद करती है। तीसरी बात यह है कि हमारे जीवन में कष्ट और चुनौतियां आना स्वाभाविक है।
यह हमारे जीवन का एक हिस्सा है, और हमें इसका सामना करना होता है। लेकिन अच्छे लोगों को यह समझना चाहिए कि कष्ट और चुनौतियां उन्हें मजबूत बनाने में मदद करती हैं, और उन्हें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करती हैं।”
गुरुजी, विस्तार से समझाते हुए आगे बोले-
“आज के कलियुगी संसार को देखते हुए बेटा एक बात और कहना चाहूँगा…यह बात बिल्कुल सच है कि हमारा दयालु रवैया तथा लोगों को पहचान न पाने का हमारा हुनर भी हमारे दुःख का कारण बन सकता है।
जब हम दूसरों के प्रति दयालु और सहानुभूतिपूर्ण होते हैं, तो हम अक्सर अपने हितों और जरूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे में लोग हमारी अच्छाइयों का फायदा उठाने लगते हैं। वे हमारी दयालुता और सहानुभूति को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं।
यह हमारे लिए दुःखदायी हो सकता है, क्योंकि हम अपने आप के साथ इसे धोखा सा महसूस कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अपने दोस्त की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, लेकिन वह आपकी जरूरतों को नजरअंदाज करता है, तो यह आपके लिए दुःखदायी हो सकता है।
आप महसूस कर सकते हैं कि आपकी दयालुता का फायदा उठाया जा रहा है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी दयालुता और सहानुभूति को संतुलित रखें। हमें अपने हितों और जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए, साथ ही साथ दूसरों की मदद करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
बहुत बार लोग अपनी गलतियों, अपनी बुरी आदतों, अज्ञानता व महत्वकांक्षी सोच के कारण भी इस पूरी जिंदगी में कष्ट उठाते रहते हैं, परेशान रहते हैं और दोष ईश्वर को देते हैं। दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं।
होशमंद और बेहोश लोग। अगर आप होशमंद हो तो आपको हर चीज की पूरी जानकारी होनी चाहिए, आपका होश में होना जरूरी है। हमें पता होना चाहिए कि अगर हम अच्छा कर रहे हैं या किसी के साथ अच्छाई कर रहे हैं तो… किसके साथ कर रहे हैं?
यह देखना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अच्छाई यदि बेहोशी में करेंगे तो दुःख, तकलीफ झेलने के लिए फिर हमें तैयार रहना चाहिए।
उम्मीद है, आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।”
“जी गुरुजी, मैं बहुत दिनों से अपने पिता की मृत्यु के कारण से परेशान थी। जबकि उनकी उम्र मात्र 40 वर्ष ही थी। आज मुझे पता चल गया है कि मेरे पिता का जरूरत से ज्यादा दयालु होना गलत था, सही लोगों की पहचान न कर पाने के कारण उन्होंने हमेशा कष्ट उठाये और परिवार को दिक्कत में डाला, आर्थिक दिक्कतों का सामना किया।
एक दिन उनके पक्के दोस्त ने ही उनको धोखा देकर रूपयों का गबन कर लिया, फलस्वरूप वे बीमार रहने लगे और एक दिन उनकी हार्ट अटैक पड़ जाने से मृत्यु हो गई।
मैं आपकी बातों, सलाह पर अमल करूँगी। आज मुझे अपने सवाल का सही जवाब मिल गया है। मार्गदर्शन करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार गुरु जी।” यह कहकर, अपने प्रश्न का उत्तर पाकर बच्ची इत्मीनान से बैठ गई।
लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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