Kahani Prem ka Pyasa Bhediya
Kahani Prem ka Pyasa Bhediya

यह संसार प्रेम का भूखा है। दुनिया में दुख इसीलिए बढ़ गए हैं कि कोई किसी को सच्चा प्रेम नहीं करता। प्रेम के नाम पर बस वासना पूर्ति रह गई है।

तोता, मैना, बंदर छोटे-छोटे सौम्य स्वभाव के जीव की कौन कहे प्रेम की प्यास तो भयंकर खूंखार जानवरों के हृदयों में भी पायी जाती है। भेड़िया जैसा खूंखार जीव भी प्रेम के आगे अपने को नतमस्तक कर देता है।

समाज में आज शराब की नदियां इसलिए बह रही हैं क्योंकि कोई सच्चा प्रेमी नहीं मिला। प्रेम से जब खूंखार जीवो की प्रकृति को बदला जा सकता है तो मनुष्य की प्रकृति क्यों नहीं बदली जा सकतीं हैं ? संपूर्ण मानवता के सामने यह एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है?

कहा जाता है एक व्यक्ति को भेड़िया पालने की सूझी। कहीं से उसे एक भेड़िए का बच्चा मिल गया। उसे वह अपने साथ लेकर रहने लगा। भेड़िया कुछ दिनों में उनसे ऐसा घुल मिल गया मानो उनकी मैत्री कई जन्मों की हो।

एक बार उस व्यक्ति को कहीं जाना पड़ा । वह व्यक्ति भेड़िए को एक चिड़ियाघर में दे दिया। भेड़िया चिड़ियाघर तो आ गया परंतु अपने मित्र की याद में दुखित रहने लगा। मनुष्य का जन्मजात बैरी मनुष्य के प्रेम के लिए पीड़ित हो यह देखकर चिड़ियाघर के सभी कर्मचारी बड़े अचंभित हुए।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य कहते हैं कि -“प्रेम संसार की ज्योति है और सब उसी के लिए संघर्ष करते रहते हैं । सच्चा समर्पण भी प्रेम के लिए होता है। इसीलिए जान पड़ता है कि विश्व की मूल रचनात्मक शक्ति यदि कुछ होगी तो वह प्रेम ही होगी। और जो प्रेम करना नहीं सीखता उसे ईश्वर की अनुभूति कभी नहीं हो सकती।

परमेश्वर की सच्ची अभिव्यक्ति ही प्रेम है और प्रेम भावनाओं का विकास कर मनुष्य परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। प्रेम से बढ़कर जोड़ने वाली वाली योग शक्ति संसार में और कुछ भी नहीं है।”

लगता है भेड़िए ने प्रेम की वास्तविक शक्ति को पहचान लिया था। यही कारण है कि भेड़िया अब अपने आत्मा की भूख शांत करने के लिए दूसरे जीवों की ओर दृष्टि डाली। कुत्ता भेड़िए का एक नंबर का शत्रु होता है । भेड़िया कुत्ते को प्रेम करने लगा।

आचार्य श्री कहते हैं -“यदि इस सत्य को संसार जान जाए तो फिर क्यों लोगों में झगड़ा हो, क्यों मनमुटाव दंगे -फसाद , भेदभाव उत्पीड़न और दूसरे से घृणा हो।”

वह खूंखार भेड़िया अब कुत्ते का सच्चा प्रेमी बन गया। उसके बीमार जीवन में भी एक नई चेतना पैदा हो गई।
2 वर्षों बाद मालिक लौटा। घर आकर जब वह चिड़ियाघर गया तो अभी वह मालिक से बातचीत ही कर रहा था कि उसका स्वर सुनकर भेड़िया भागा चला आया और उसके शरीर से खूब प्यार जताने लगा। कुछ दिन इसी प्रकार मैत्रीपूर्ण जीवन बीता।

कुछ दिनों बाद मलिक को फिर जाना पड़ा । भेड़िया के जीवन में लगता है भटकाव ही लिखा था। फिर उसने कुत्ते के पास जाकर उससे अपनी पीड़ा शांत किया ।इस बार मालिक थोड़ा जल्दी आ गया।

भेड़िया इस बार उससे दूने उत्साह से मिला परंतु उसका स्वर शिकायत भरा था। बेचारे को क्या पता था कि मनुष्य ने अपनी जिंदगी ऐसी व्यस्त जटिल सांसारिकता से जकड़ दी है कि उसे आत्मिक भावनाओं की ओर दृष्टिपात करने की सोचता ही नहीं। मनुष्य की यह कमजोरी दूर हो गई होती तो आज संसार कितना सुखी और संतुष्ट दिखाई देता।

कुछ दिन दोनों बहुत प्रेम ‌ पूर्वक साथ-साथ रहे । एक दूसरे को चाहते । हिलते मिलते खाते पीते रहे और इसी बीच एक दिन उसके मालिक को फिर बाहर जाना पड़ा । इस बार भेड़िए ने किसी से ना दोस्ती की ना कुछ खाया पिया । उसी दिन से बीमार पड़ गए और प्रेम के लिए तड़प तड़प कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लिया।

उसके आसपास रहने वाले लोग भेड़ियों का यह दिव्य प्रेम देखकर भाव विह्वल हो गए ।काश मनुष्य इन खूंखार भेडियों से कुछ सीख पाता तो उसकी जिंदगी कितनी सुंदर हो सकती थी।

वर्तमान समय में मनुष्य अपने को और उलझा दे रहा है । उसे अपने लिए समय नहीं बच रहा काम काम काम के दबाव में वह दूसरे की भावनाओं को समझ नहीं पा रहा है। जिसके कारण उसका जीवन नरक बनकर रह गया है। प्रेम की जगह अब वासना पूर्ति रह गयी हैं।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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