एक रंग मेरा भी
एक रंग मेरा भी
हवााओं में गुलाल एंव अबीर की खुशबु थी l
सर पर भी होली की मस्ती खुमारथी ll
सड़कों के उत्साह में हरा और केसरी कहाँ था l
लगता है , यह भारत का नया दौर था ll
महीनों से हो रही थी , होली की तैयारी l
हर घर की चर्चा थी , अब गुजिया पापड़ की बारी ll
अमीर – गरीब के लिए बनी होली प्यारी l
घृणा , द्वेष , पीड़ा जल कर अब मिलन की आई बारी ll
अदृश्य होगई सूर्य की किरणे होली के रंगों में l
पिचकारी की धार में भी और बौछार में ll
झोली न रही खाली रंगों के भरसक में l
सच कहो ,सज़ गयी ना उषा – निशा भी रंगों की आड़ में ll
बुराई पर अच्छाई की जीत l
यह रंग बी रंग त्योहार की रीत ll
घर से मैदान तक होगी रंग की बात l
तैयारी में सोया नहीं मै पिछली रात ll
होली के दिन बने रंग – राग के l
गुलाल लगाने आई बहाने फ़ाग के ll
चले भी आओ शिखवे भुला के l
अब , आकाश और पृथ्वी भी गुण गाएहोली के ll
रंगों के ऋतु ने आनंद की वर्षा दी l
मन की खटास को मीठी दिशा दी ll

वाहिद खान पेंडारी
( हिंदी : प्राध्यापक ) उपनाम : जय हिंद
Tungal School of Basic & Applied Sciences , Jamkhandi
Karnataka
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