पाती प्रेम की | Paati Prem ki

पाती प्रेम की

( Paati prem ki )

 

हर मुमकिन कोशिश के बाद
जब पा ना सकी
मैं तुम्हारा पाक प्रेम
वफा के संग
फरेब से परे
तब
बैठ एक बगिया में
उदास
गम की चादर बिछाए
सुरज की ढलती लालिमा ओढ़े
गुलमोहर की छांव तले
और गहराती रात में
चाँदनी के सफेद पन्नों पर
महकते गुलाब की पंखुड़ियों जैसे
नाजुक एहसासों से
लिखी एक कविता
उड़ते हंसों के जोड़े की
लयबद्ध उड़ान सी पंक्तियाँ
चाँद से ठिठोली करती
और सितारों की झिलमिल रोशनी में
अपनी दीवानगी की दास्तां
बयां करती मेरी कविता…

हर शब्द को लिखा मैनें
अपने प्रेम की नदियां में डुबोकर
पर तुम कितने अभागे निकले
जो एहसासों को महसूस न कर सके
न समझ पाए कभी
कैसे पागल मन
पीड़ा छुपाने को
लिखता है एक कविता
अकेलेपन में
फिर सोचती हूँ अभागी तो मैं हूँ
जो हर मुमकिन कोशिश के बावजूद
ना पा सकी तुम्हारा प्रेम
तुम तो भाग्यशाली हो
चाँद-सितारे
पेड़-पौधें
नदियां-झरने
सांझ-सवेरे
सब तुमसे कितना प्रेम करते हैं
जो जुट जाते हैं मेरे संग
लिखने एक प्रेम कविता
तुम्हारे लिए…

 

डाॅ. शालिनी यादव

( प्रोफेसर और द्विभाषी कवयित्री )

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