निबंध : भारत एवं मानवाधिकार | Essay in Hindi on India and Human Rights
निबंध : भारत एवं मानवाधिकार
( Essay in Hindi on India and Human Rights )
मानवाधिकार की पृष्ठभूमि ( Human rights background in Hindi ) :-
हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाता है। मानवाधिकार की अवधारणा भले ही नयी लगती हैं लेकिन इसकी अवधारणा मानवजाति के लिए काफी पुरानी है।
मनुष्य प्रारंभ से ही सामाजिक प्राणी है। समाज में रहने के कारण एक ओर उसके कुछ कर्तव्य बनते हैं तो दूसरी तरफ उसे कुछ अधिकार भी मिले है।
इस प्रकार किसी भी व्यक्ति को समाज द्वारा प्राप्त अधिकार आने के लिए कर्तव्य का रूप ले लेते हैं। समाज के हर प्राणी को जीने का अधिकार है।
समाज के हर प्राणी का कर्तव्य है कि वह किसी दूसरे की जीवन में बाधा न बने। अर्थात इसे सामान्य अर्थ में आधुनिक मानवाधिकार का प्रारंभ कह सकते हैं।
मानवाधिकार की मौलिक अवधारणा यही है। आज मानवाधिकार को शोधित, परिष्कृत एवं विस्तारवादी अवधारणा के तौर पर देखा जाता है, जिसमें “जियो और जीने दो” की मूल भावना निहित थे। मानवाधिकार का सृजन समाज से होता है।
सामान्यतः मानवाधिकार से तात्पर्य लिंग, धर्म, जाति, संप्रदाय, देश, आर्थिक स्थिति जैसे भेदभाव के मूल विचारों को त्याग करके मानव को समुचित विकास संरक्षण तथा सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार प्रदान करना होता है। हमारे संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांतों तथा मौलिक अधिकारों में इस भवनों को स्थान दिया गया है।
मानवाधिकार की अवधारणा ( Concept of human rights in Hindi ) :-
मानवाधिकार की अवधारणा का विकास सत्ता के निरंकुश उद्योग पर अंकुश लगाने के लिए किया गया। मध्यकाल में 13वीं शताब्दी में राजा और सामंतों के मध्य समझौता हुआ था जिसे “मैग्नाकार्टा” के तौर पर जाना जाता है।
इसी के द्वारा मानवाधिकार की पृष्ठभूमि तैयार हुई। 1689 में ब्रिटेन में हुए क्रांति ने मानवाधिकार की अवधारणा को विस्तार दिया। इस क्रांति में ह्यूमन राइट के द्वारा मानव के मौलिक स्वतंत्रता को मान्यता प्रदान की गई, जिसको पहले हनन किया जाता था।
1776 में अमेरिका की क्रांति हुई जिसमें अमेरिका ब्रिटेन की गुलामी से मुक्त हुआ। 1789 में फ्रांस की क्रांति हुई जिसका प्रमुख नारा स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व के साथ आधुनिक मानवाधिकार को विकसित करने का आधार बना।
वर्तमान समय में मानवाधिकार संबंधी गतिविधियां वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान घटित का मानवीय घटना का विरोध करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रुजवेल्ट का भाषण दिया गया।
जिसमें उन्होंने मनुष्य के लिए 4 मूलभूत स्वतंत्रता का उल्लेख किया है। यही मानवाधिकार संबंधी घोषणा का प्रमुख आधार बने। 1946 में रुजवेल्ट की अध्यक्षता में मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया तथा दुनिया के अधिकांश देशों ने इसे अपने संविधान में मान्यता प्रदान की।
10 दिसंबर 1948 (Human Right Day) को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा की गई। यह एक संयोग ही था कि अमेरिका में मानवाधिकार पर चर्चा हो रही थी उस समय भारतीय संविधान का निर्माण किया जा रहा था।
भारत में मानवाधिकार ( Human rights in India in Hindi ) :-
हमारे संविधान निर्माताओं ने इस बात का ध्यान रखा और भारत के नागरिकों के लिए भी ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रयत्न किया।
परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान में मानवाधिकार को उच्च स्थान दिया गया और इसके रक्षा की गारंटी न्याय पालिका को सौंपी गई। भारत के संविधान में भाग 3 मे अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों का वर्णन किया गया है, जिसमें 6 प्रकार के मूल अधिकार बताए गए हैं।
पुलिस और मानवाधिकार ( Police and human rights in Hindi ) :-
पुलिस और मानवाधिकार पारस्परिक रूप से एक दूसरे से संबंध है। प्रायः मानवाधिकार उल्लंघन के सर्वाधिक मामलों में पुलिस विभाग की संयुक्त पाई जाती है।
अपराधियों से निपटने के लिए पुलिस विभाग को मारपीट और प्रताड़ना का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी स्थिति में अपराधी के मानवाधिकारों के उल्लंघन की संभावना लगातार बनी रहती है। जरा सी चूक परिस्थिति बदल देती है।
महिलाओं के मामले में पुलिस को अधिक संवेदनशील और सतर्क होना रहता है। इसलिए यह नियम बनाया गया है कि महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्यास्त के पूर्व गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
भारत में पुलिस विभाग को मानवाधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए राष्ट्रीय पुलिस अकादमी हैदराबाद तथा राज्य पुलिस अकैडमी संस्थानों के प्रक्रम में मानवाधिकार को स्थान दिया गया है।
भारत में मानवाधिकार क्रियान्वयन ( Human Rights implementation in India in Hindi ) :-
कार्यालयों घरों तथा कार्य के अन्य स्थानों पर छाया अध्ययन के घर जाते हैं। मानवाधिकार के उल्लंघन के क्षेत्र में यह मामला अति संवेदनशील होता है। अयोध्या के मानवाधिकारों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मान्यता प्राप्त है।
तथापि भारत जैसे देश में अभी इसके प्रति जागरूकता कम है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा कोई ठोस उपाय अपनाए गए हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा कानून इसके ठोस कदम है।
निष्कर्ष –
भारत में मानव अधिकारों से जुड़े मौजूदा हालात बहुत आशा जनक नहीं है। इसके बावजूद इस दिशा में लगातार प्रयास हो रहा है। पर देश को बदलने में सामाजिक पृष्ठभूमि में बदलने की जरूरत है। साथ ही लोगों को अपने खुद के अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा।
इसके लिए लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। साथ ही भारत में मानवाधिकार के संरक्षण की कोशिशें बढ़ चढ़कर हो रही हैं इसके क्रियान्वयन के समुचित प्रयास करने की आवश्यकता हैं।
लेखिका : अर्चना यादव
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