Essay in Hindi on Indian working women
Essay in Hindi on Indian working women

घर और नौकरी : क्या भारतीय कामकाजी महिलाओं के साथ उचित है?

( Home and Job: Is it fair to Indian working women? : Essay in Hindi )

 

भारत में महिलाओं का स्थान कुछ साल पहले तक घर परिवार की चहारदीवारी तक ही सीमित माना जाता था। शिक्षा के प्रचार और प्रसार से देश में शिक्षित महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ने लगी।

महिलाएं परिश्रम नौकरी करने लगी और इस प्रकार कामकाजी महिलाओं का एक नया वर्ग उभर कर सामने आया।

कई अध्ययनों से यह प्रमाणित होता है कि कार्यरत महिलाओं के सामने मुख्य समस्या भूमिका संघर्ष की है। वे अपने आपको परिवार और कार्यालय के अनुसार खुद को चुनौतीपूर्ण रूप से समायोजित करती हैं।

दोहरी भूमिकाएं कामकाजी महिलाओं के लिए संघर्ष पैदा करती है। जिसका प्रभाव परिवारिक संबंधों के अपेक्षाकृत भूमिका पर पड़ता है। व्यवसायिक भूमिका और परंपरागत भूमिका की एक साथ निभाना एक महिला के लिए प्रकृति और कृत्रिम रूप से बेहद कठिन है।

आज भी परिवार के अनेक कार्य और भूमिका ऐसी हैं जिनके निर्वाह की पूरी जिम्मेदारी एक महिला की ही मानी जाती है। इस प्रकार एक कार्यरत महिला के लिए दोनों क्षेत्र में समायोजन करना एक बड़ी चुनौती उत्पन्न करता है।

आधुनिक काल में नारी के लिये अंग्रेजों के आगमन के साथ कुछ अन्य शिक्षा दीक्षा की नीतियां चलाई गई। जिससे अनेक प्रकार के शैक्षणिक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के प्रभाव के फल स्वरुप भारतीय नारी को घर परिवार से बाहर कदम रखने का अवसर प्राप्त हुआ।

आज नारी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व बना रही है, चाहे वह राजनीतिक और राजनयिक हो, विधि बेत्ता हो, न्यायाधीश हो, प्रशासक हो,  चिकित्सा हो। आज हर स्वरूप में आधुनिक महिला अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है

कामकाजी महिलाओं की समस्या ( Working women problem in Hindi ) :- 

अभाव और महंगाई से दो-चार होने के लिए महिलाओं को कुछ मात्रा में स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और अधिकतर स्वतंत्रता प्राप्त के बाद कई तरह के कामकाज मे हाथ बढ़ाना पड़ा। पुरुष एवं महिलाओं का एक वर्ग यह समझता है कि कामकाजी नारी की समस्त समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

नौकरी मिलते ही नारी, नारी के अभिशाप से मुक्त हो जाती है। परंतु वास्तविक यथार्थ इससे भिन्न है। जैसे नारी कामकाजी महिला बनने का निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं होती। विवाह से पहले माता पिता और बाद में ससुराल जनों की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कामकाजी बनी रहे अथवा नहीं।

कामकाजी होने पर भी महिला आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र नहीं हो पाती। उसकी अपनी कमाई का हिसाब घरवालों को देना पड़ता है। कई बार यह भी देखा जाता है कि ससुराल वाले विवाह से पूर्व की जाने वाली उसकी कमाई का भी हिसाब मांगते हैं।

कामकाजी महिलाओं की प्रमुख समस्याएं इस प्रकार से है:

 दोहरी जिम्मेदारी

कामकाजी महिलाओं को नौकरी से लौटकर घरेलू कामकाज करने होते हैं। इस तरह से एक अतिरिक्त जिम्मेदारी संभाल कर कामकाजी महिलाएं अपने पूर्व जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो पाती है।

बच्चों की परवरिश

कामकाजी महिलाओं के पास बच्चों को समय देने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता है। फलतः उनके बच्चे संस्कारी नहीं बन पाते और भविष्य में बिगड़ जाने की संभावना बनी रहती है।

परिजनों का शक

नौकरी करने वाली महिलाओं के चरित्र के प्रति संदेह की समस्या बनी रहती है। कार्यालय में किसी भी कारण से थोड़ी सी देरी हो जाए तो परिजन विशेषकर पति शक की निगाह उसके अंदर तक बेध डालती है।

यौन शोषण

सरकारी कार्यालयों में कार्य करने वाली महिलाएं पूर्ण रूप से तो नहीं परंतु अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं। सरकारी कार्यालय में कार्यरत महिलाओं के भी यौन शोषण होते हैं। किंतु निजी संस्थानों अथवा मजदूरी करने वाली महिलाओं की दशा अत्यधिक दयनीय है।

वरीयता का मापदंड योग्यता नही

प्राइवेट संस्थानों में रोजगार विज्ञापन में स्मार्ट, सुंदर और आधुनिक महिलाओं को वरीयता इस प्रकार का प्रश्न खड़ा करती है कि कार्य क्षमता के आधार पर आगे बढ़ने वाले निजी संस्थानों का काम क्या स्मार्ट सुंदर और आधुनिक महिलाएं ही संभाल सकती है? योग्यता कोई मापदंड नहीं है! यदि एक बीमार मानसिकता की परिचायक है।

परिधान

कामकाजी महिलाओं के लिए परिधान बहुत बड़ी समस्या है। वह जरा से भी सवार कर चले तो लोगों द्वारा उस पर फब्तियां कसी जाती हैं।

पुरुषों की अपेक्षा सौतेला व्यवहार

महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम वेतन दिया जाता है तथा पुरुषों की तुलना में उनके साथ सौतेला व्यवहार भी किया जाता है। पहले विमान परिचारिकाओं के गर्भवती होने पर उन्हें सेवा मुक्त कर दिया जाता था। अब लंबे संघर्ष के बाद विमान परिचारिकाओं ने मां बनने का अधिकार पाया है।

नाईट ड्यूटी का दौरे

कामकाजी महिलाओं के लिए नाइट ड्यूटी करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। सबकी निगाहें मुसीबत कर देती हैं। अस्पतालों में जांच की पारी में काम करने वाली नसे, बड़े होटलों में काम करने वाली महिलाएं, अपनी ड्यूटी सुरक्षित निकालकर सुकून का अनुभव करती हैं।

नारी की नौकरी

यदि पत्नी पति की अपेक्षा श्रेष्ठ है तो इससे पति की हीन भावना का भी शिकार होना पड़ता है।

सुझाव

कामकाजी महिलाओं की समस्याएं, सुधारों और संवैधानिक प्रयासों के चलते नारी की मौलिक समस्या को नहीं सुलझाया जा सका है। संविधान ने नारी को मताधिकार एवं सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने का अधिकार दिया है।

लेकिन सामाजिक दृष्टि से आज भी पुरुषों की दासी ही महिलाओं को माना गया है। आज भी अनेक नारियों को उत्पीड़न, आत्मदाह, उनकी हत्या के मामले सामने आते रहते हैं। नौकरी करने वाली अर्थात कामकाजी महिलाएं भी इस तरह की समस्याओं की शिकार होती हैं।

आज के समय में दहेज का दानव नारी जीवन को त्रस्त बना दिया है। विधवा विवाह के नाम पर आज भी लोग नरभक्षी पौधे हैं। नारी की उन्नत के नाम पर कितनी ही बातें की जाए नारी आज भी उपेक्षित है। वह घर परिवार में एक सामान्य नारी से अधिक कुछ भी नहीं होती है।

आज भी गर्भ में लड़कियों को मारा जाता है तथा प्रसूत के समय दूषित कठिनाइयों का शिकार होना पड़ता है।

महिला हो या पुरुष काम करना किसी के लिए भी अनुचित नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि समाज की मानसिकता, घर परिवार और सामाजिक जीवन की परिस्थितियां ऐसी बनाई जाए, ऐसे उचित वातावरण का निर्माण किया जाए जिससे कामकाजी महिलाएं भी पुरुषों के समान व्यवहार एवं व्यवस्था पा सके।

नारियों की समस्याओं के निराकरण के लिए फैमिली कोर्ट बनाए जाने चाहिए तथा उनके प्रति होने वाले अपराधों के मामलों में तकनीकी नहीं बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण को अपनाकर निर्णय लिए जाने चाहिए।

दहेज, बलात्कार, अपहरण आदि समस्याएं आज भी नारी के सामने एक बड़ी चुनौती है।

 निष्कर्ष :-

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जब तक नारी के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव नहीं आएगा। तब तक नारी का जीवन अस्वस्थ ही बना रहेगा। भारतीय नारी की मुक्ति के लिए सांस्कृतिक आंदोलनों की आवश्यकता है। संविधान और कानून इसमें सिर्फ मदद कर सकते हैं।

 

लेखिका : अर्चना  यादव

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