Hindi mein satire
Hindi mein satire

अथ वार्तालाप खबर एवं सम्वाददाता

 

वह खबर संवाददाता के पीछे पड़ी हुई थी और सम्वाददाता उससे पीछा छुड़ाकर भाग रहा था। आखिर कार उस खबर ने सम्वाददाता को उसी प्रकार दबोच लिया जैसे खलनायक नायिका को पकड़ता हैै। खबर रूआंसी होकर बोली “प्रिय सम्वाददाता, तुम तुझसे इस तरह क्यों भाग रहे हो जैसे उधारखाता उधारदाता से भागता है“। ?

सम्वाददाता बोला “तुम कोई खबर जैसी खबर नही हो, आजकल तुम जैसी सपाट खबरों को कौन जगह देता है। खबर तो कटीली होनी चाहियें। उसके पीछे हम खुद भागते है।

खबर बोली “यदि तुम देश की प्रगति की खबरे नही छापोंगे तो देश तो पीछे ही रह जायेगा । प्रगति कैसे करेगा ? सम्वाददाता ने जवाब दिया “ठीक है हम लिखे देते है कि देश की प्रगति की हत्या नही हुई। आजकल खबरों में दो शब्द आवश्यक है। हत्या एवं बलात्कार या हम प्रगति को इस तरह छाप सकते है कि प्रगति का देश पर बलात्कार।”

वह सपाट खबर हतप्रभ रह गई । सम्वाददाता बोलता गया “आज कल सम्वाददाता खबरों तक नही जाता । खबरे चलकर सम्वाददाता तक आती है। खोजी पत्रिकारिता का मतलब है खबर सम्वाददाता को खोजे। सम्वाददाता के पास कहां इतना समय है कि वह खबर के पीछे भागे।

सम्वाददाता को पार्टियों से ही फुरसत नही मिलती । तुम्हें खबर बनना है तो डिनर या लंच दो। नहीं तो अपने मूल स्त्रोत में पडी रहो। उस खबर ने डांटा “तुम ब्लेक एण्ड व्हाइट के जमाने में मेरे पीछे भागते थे अब सेटेलाइट के जमाने में मुझे सपाट बताते हो शर्म नही आती ?”

अब की बार सम्वाददाता नही बोला उसकी कलम बोली” नही आती। उससे क्या बोल रही हो मुझसे बोलो । आज के जमाने में यदि कलम चाकू नही बनीं तो स्याही मिलना बंद हो जायेगी और आजकल तो खबर लिखी ही नही जाती ।

खबर कैमरे से टी.व्ही. तक का सफर व्हाया सेटेलाइट करती है। कोई कागज कलम का चक्कर नही। आज हत्या के कारण खबर नही बनती, खबर बनाने के लिये हत्या की जाती है। बलात्कार में बला, लात और कार सहित पूरा क्रम दिखाया जाता है।

मानो हत्या एवं बलात्कार तब प्रारंभ किया जायेगा। जब कैमरा इस्माइल प्लीज करेगा। कला आज चुटकुला हो गई है। उस्ताद उलाउद्दीन खां को चाय का विज्ञापन देना पड रहा है । भोंडे लोंडे इंडिया फेम हो जाते है ।

हम कपड़ो का निर्यात कर रहे है और नग्नता का आयात कर रहे है । देवताओं का मजाक उडाया जा रहा है। भगवान गणेश और कृष्ण जी की जीन्स पहले हुये मूर्तियां बनाई जा रही है।

कलम में वैसे भी स्याही कम थी अतः हांफने लगी। सम्वाददाता ने डांटकर उसका ढक्करन बंद कर दिया। और सपाट खबरे सें बोला “आजकल खबर एक विज्ञापन है और विज्ञापन एक खबर।

आपको खबर बनना है तो किसी विज्ञापन एजेन्सी के पास जाइये वह आपको नवयौवना की टांगो में लपेटकर परोसेगा तो सब आपको चटखारे लेकर खांयेगे। खबरो में तो आजकल भूतप्रेतों और तांत्रिकों को परोसा जा रहा है । आपको कौन पूछेंगा।

खबर मायूस हो गई तो पत्रकार ने कहा “सखी मायूस मत हो वो। तुम खबर को छापने के लिये कई छोटे समाचार पत्र है जैसे डम डम डीगा डीगा, बदले की आग, मिट्टी में मिला दूंगा, बीबी की मानों इत्यादि।

ये पत्र केवल त्यौहारों के आस पास ही विज्ञापन और शुभकामनाओं को बटोरने के लिये छपते है। लोग पांच दस स्पयों में अपना नाम छपा देखकर खुश हो जाते है। हां तुम तुम्हे हाशिये में छाप सकते है पर हत्या इत्यादि को बडे कालमों में ही छापेंगे।

हम तुम्हे छापकर सिंहासन नही हिला सकते।

तुम्हे छापकर कर तो हिंसा को ही मजबूत करेंगे । क्रांति सिंहासन लाती है । हम तुम्हे हिलाना चाहते है। हिलो हे सपाट खबर हिलो, महको, सरको चलो, कांपो, दौडो, घूमो इत्यादि । मगर इतना भी मत सरको कि छापे खाने में आ जाओं।”

वह खबर सिंहासन का पाया थी अतः उसने मजबूती से जमीन पकड़ ली। उसको पाठको की जरूरत थी। पाठको को उसकी जरूरत नहीं थी। पाठक उससे विदकते थे। वह सरकार की गोल मोल झूठीतम प्रस्तुति थी।

उस सपाट खबर से वह घाघ सम्वाददाता नहीं पटा तो वह खबर उससे छत्तीस का आंकडा बनाकर सरकारी बुलेटिन में समा गई।

 

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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