ग़लत को ग़लत जो कोई भी कहेगा | Galat ko Galat
ग़लत को ग़लत जो कोई भी कहेगा
( Galat ko galat jo bhi kahega )
ग़लत को ग़लत जो कोई भी कहेगा ,
यकीं मानिए मुश्किलों में फँसेगा ।
ग़लत के लिए साथ देंगे हज़ारों ,
सही बोलने पर अकेला रहेगा ।
ये दुनिया अजब चाल से चल रही है ,
हरिक आदमी एक दिन तो गिरेगा ।
ज़रा इल्म हासिल लगे ऐंठने सब ,
ये रब को बुरा तो बहुत ही लगेगा ।
लकीरों में लिक्खा पता क्या करें हम ,
जो मेहनत करेगा उसी को मिलेगा ।
सफलता जिसे झूठ से मिल गई हो ,
वो बातें इधर या उधर की करेगा ।
उसी की कहानी तो दिलचस्प होगी ,
बुलंदी जो उठ कर ज़मीं से छुएगा ।
मुखौटा लगा कर मुलाक़ात कर लो ,
पता हाल ए दिल न किसी को चलेगा ।
बहुत देर दस्तक दिए हो चुकी है ,
न जाने अभी द्वार कब तक खुलेगा ।
नक़ल में चमक तो असल से अधिक है ,
बताओ यहाँ देव किसको चुनेगा ।
वाह बहुत खूब
क्या कहने