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गम छुपा यूं मुस्कुराते रहे
( Gam chhupa yun muskurate rahe )
हम हंसते रहे अधर गाते रहे।
गम छुपा यूं हम मुस्कुराते रहे।
घात लगाए बैठे जहां में कई।
हम प्यार के मोती लुटाते रहे।
अड़चनें विघ्न बाधा आते रहे।
प्रगति पथ पे कदम बढ़ते रहे।
हौसलों की उड़ानें भावन हुई।
बुलंदियों को अक्सर पाते रहे।
पीर भरा सागर अपनों ने दिया।
प्रीत का सावन हम बरसाते रहे।
मन के भावों ने बदले रूप कई।
लेखनी ले हम मोती सजाते रहे।
शब्द सुरीले अब वह गीत कहां।
दिल को छू जाए बंध सुनाते रहे।
लोग आते रहे जहां से जाते रहे।
नव पुष्प खिले खेल दिखाते रहे।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )