कैसी हालत है खाने के लिए | Kaisi Halat
कैसी हालत है खाने के लिए
( Kaisi halat hai khane ke liye )
कैसी हालत है खाने के लिए
मारे – मारे फिरे दाने के लिए
मेरी झोंपड़ी में चैन की शाम नहीं
बच्चे रोते हैं खिलाने के लिए
चूल्हे में देख लिया धुआंँ होता
नहीं कहता सो जाने के लिए
लोग अश्कों से मेरे वाकिफ हैं
कहाँ जाऊँ मैं कमाने के लिए
कल के उगते सूरज से पुछेंगे
ले चलोगे बोझ उठाने के लिए।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड