Kavita chal chhod de daru
Kavita chal chhod de daru

चल छोड़ दे दारू

( Chal chhod de daru )

 

चल छोड़ दे दारू जरा तू फोड़ दे बोतल।
मत लड़खड़ा प्यारे संभल संभल के चल।

करना है नशा तो कर जरा तू स्वाभिमान का।
धरती का लाल सपूत अन्नदाता किसान सा।

अभिमान का त्याग करके संभाल अपनों को।
शुभ कर्म कर संसार में जरा पाल सपनों को।

उड़ना ही है तो उड़ जरा उड़ान हौसलों की।
मत हो नशे में चूर करले पहचान अपनों की।

गिरना ही है गिर जरा मां-बाप के चरण में।
वो ही दीनबंधु परमात्मा चला जा शरण में।

रस्ता पकड़ मत बहक रे नशेमन में होकर चूर।
किस बात का घमंड तुझे क्यों हो रहा मगरूर।

छोड़ जमाने की बातें खुद का रख ले तू ध्यान।
क्या हश्र हुआ उनका जाकर देख ले श्मसान।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

दिल ना दुखाना किसी का | Geet dil na dukhana kisi ka

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here