सुख दुख मिलके सहेंगे
( Sukh dukh milke sahenge )
आशाओं की ज्योत जला, मीठे बोल सबसे कहेंगे।
मुस्कानों के मोती लेकर, सुख-दुख मिलकर सहेंगे।
मिले बड़ों का साया सर पे, आशीषों से भरे झोली।
खुशियों के दीपक लेकर, सबसे बोले मीठी बोली।
हंसी-खुशी जीवन बिताएं, हौसलों की बात कहेंगे।
प्यार के मोती लुटाकर, सुख-दुख मिलकर सहेंगे।
आंधी तूफान आते जाते, मंजिलों की ओर चलेंगे।
समय समय का फेर होता, संघर्षों को भी मात देंगे।
घोर निराशा छाए फिर भी, हौसलों की उड़ान भरेंगे।
सद्भावो की बहा सरिता, सुख-दुख मिलकर सहेंगे।
चक्र समय का चलता, पल-पल रूप नया ढलता है।
नियति का खेल सारा, आशाओं का दीप जलता है।
छोड़ सब नफरत की बातें, खुशहाली से हम रहेंगे।
प्रेम कि बहा गंगा, सुख-दुख सब मिलकर सहेंगे।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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