थोड़ा सा | Geet Thoda Sa
थोड़ा सा
( Thoda Sa )
थोड़ा सा अखबार पढ़ा फिर ,
बैठ गया तह करके .
जो भी मुँह में आया मुखिया ,
चला गया कह करके .
बाएँ – दाएँ देखा उसने ,
हँसी खोखली हँसकर .
निकल गई ज्यों कील जिगर से,
कुछ अंदर तक धँसकर .
मुख पर थोड़ा दर्द न झलका ,
बैठा है सह करके .
कोसा जाए बुरा कब्र तक ,
यही सोच सिर धुनता .
बुरा वक्त गर ना होता तो ,
क्या मैं इसकी सुनता .
ठीक नहीं है बैर मगर से ,
सागर में रह करके .
नए दर्द को भुला रहा वह ,
गीत पुराना गाकर .
घड़ा चिकना हुआ है देखो ,
जाने क्या कुछ खाकर .
भली बुरी बातों ने इस पर ,
देख लिया बह करके .
राजपाल सिंह गुलिया
झज्जर , ( हरियाणा )