घर की अदला-बदली करके सियासत करने वालों से
घर की अदला-बदली करके सियासत करने वालों से
जनता ही लेगी हिसाब, बग़ावत करने वालों से,
घर की अदला-बदली करके सियासत करने वालों से।
टूटी फूटी, नाली सड़कें, गुस्से में है बच्चा बच्चा,
एक महफ़िल ही नाराज़ नहीं, सदारत करने वालों से।
कल तक जिनको गाली दी थी कैसे आंख मिलाओगे,
पूछ रहा हूं, मैं भी आज, हिमायत करने वालों से।
चूल्हा ठंडा, बर्तन खाली, मां की आंखें नम क्यों हैं,
दौलत वाली राजनीति की, इबादत करने वालों से।
हर चौखट पर ताले हैं, हर दिल में बेचैनी है,
क्या उम्मीद करें अब हम, हिफाज़त करने वालों से।
रंग बदलती शामें देखो, उजड़े ख्वाबों के मंज़र में,
ख़फ़ा ख़फ़ा है सारा ख़ित्ता, हुकूमत करने वालों से।
जो कल तक सब अपने थे, वो दुश्मन कैसे हो गए,
पूछ रहा है हर मज़लूम, हिमाक़त करने वालों से।
शहर में पानी, बिजली गायब, सबकी हालत खस्ता है,
वो कब तक खामोश रहेंगे, शिकायत करने वालों से।
जो सच की आवाज़ उठाए, उसका गला दबा डाला,
ये सवाल करेगा कल, अदालत करने वालों से।
अब ना मिलेंगे बहरे गूंगे , ना झूठे वादे होंगे,
कह दो आज ज़फ़र तुम ही, क़यादत करने वालों से।
ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली -32
zzafar08@gmail.com