आज की रात | Ghazal Aaj ki Raat
आज की रात
( Aaj ki Raat )
आज की रात इधर से वो हो कर गुजरी
लाख की बात सहर सी हो कर गुजरी
थाम के हाथ चले थे जब भी वो मेरा
वक्त के साथ नहर सी हो कर गुजरी
मान कर बात कहा था उसने ऐसे ही
चाह के हाथ लहर सी हो कर गुजरी
बात से बात किया करते थे जब उनकी
प्यार के नाम बहर सी हो कर गुजरी
कौन जाने क्यो उनपे मरता है यूँ ही
इश्क की हालत कहर सी हो कर गुजरीं
आज तक भी है गुमनाम हमारी साँसे
जिधर से गुजरी डगर सी हो कर गुजरी
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र