बिगाड़ देती है

बिगाड़ देती है | Ghazal Bigaad Deti Hai

बिगाड़ देती है

( Bigaad Deti Hai )

बड़े बड़ों को ये चाहत बिगाड़ देती है
ये होशमंदो को दौलत बिगाड़ देती है

बढ़ावा दो न शरारत को तुम तो बच्चों की
कि उनको बेजा हिमाक़त बिगाड़ देती है

तुम्हारे दीद की हसरत हमेशा ही रहती
हमें ये वस्ल की आदत बिगाड़ देती है

गुज़रता है मेरा हर लम्हा तेरी यादों में
हर इक दिन इश्क़ की रग़बत बिगाड़ देती है

हराम होता है आराम जान लो लोगों
सभी को मुफ़्त की राहत बिगाड़ देती है

रखो गिला न शिकायत कभी भी अपनों से
ये अच्छे- अच्छों की इज़्ज़त बिगाड़ देती है

क़दम ज़मींन पे पड़ते नहीं किसी के भी
सभी को झूठी ये शुहरत बिगाड़ देती है

बग़ैर पैसे के करते न काम हैं कोई
कि भ्रष्ट लोगों को रिश्वत बिगाड़ देती है

बनाना दोस्त हमेशा ही सोचकर मीना
बुरों की तो हमें सोहबत बिगाड़ देती है

Meena Bhatta

कवियत्री: मीना भट्ट सि‌द्धार्थ

( जबलपुर )

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