हम रोते हैं | Hum Rote Hain
हम रोते हैं
( Hum Rote Hain )
दुख में तन्हा हम रोते हैं
सुख में शामिल सब होते हैं
खार ही खार दिखे हैं हर सू
हम हर सू जब गुल बोते हैं
फ़सलों पर हक़ ग़ैर जतायें
खेत तो जब हमने जोते हैं
लालच के रथ पर जो बैठें
अपना भी वो धन खोते हैं
उनके आँसू कौन पढ़ेगा
जो औरों का दुख ढोते हैं
आ जाते हैं और निखर कर
दाग़ों को जितना धोते हैं
सूरज कितना चीखा साग़र
लोग पड़े अब तक सोते हैं
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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