आँख का नूर बनो तो सही
( Aankh ka noor bano to sahi )
बात दिल की कभी तुम कहो तो सही
सिर्फ तुम दिल में मेरे रहो तो सही
प्रीति की रोशनी जगमगा दो हृदय
दीप बाती-सरिस तुम जलो तो सही
जिन्दगी का है लम्बा सफर साथ में
दूर कुछ हमसफर तुम चलो तो सही
तुमपे वारा है जीवन ये सारा सनम
तुम कभी मेरी भी कुछ सुनो तो सही
छोड़ दो यूँ जमाने की उल्फत को तुम
अब खुले दिल से मुझसे मिलो तो सही
प्यार का आसरा दे किसी जान को
आँख का नूर तुम अब बनो तो सही
चोट खाई है दिल पर बहुत ये सुधा
प्यार से ज़ख्म को तुम भरो तो सही
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
( वाराणसी )
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