देखा इक दिन | Ghazal Dekha ek Din
देखा इक दिन
( Dekha ek Din )
आंख दुश्मन की लाल कर रख दी
हेकड़ी सब निकाल कर रख दी
हाल आलस का ये हमारे है
आज की कल पे टाल कर रख दी
सच का परचम लगा है लहराने
फिर हक़ीक़त निकाल कर रख दी
हाथ उसके लगा नहीं कुछ पर
सारी पेटी खँगाल कर रख दी
बात मानी न मेरी बच्चों ने
पगड़ी देखो उछाल कर रख दी
देखा इक दिन तुम्हें जो ख़्वाबों में
शक्ल शेरों में ढाल कर रख दी
पहली चिठ्ठी लिखी थी जो तुमने
हमने मीना सँभाल के रख दी
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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