गली उसकी बहुत पहरा रहा है | Ghazal gali uski
गली उसकी बहुत पहरा रहा है
( Gali uski bahot pahra raha hai )
गली उसकी बहुत पहरा रहा है
यहाँ माहौल कुछ ऐसा रहा है
बढ़ी है इसलिए दूरी उसी से
उसी का नर्म कब लहज़ा रहा है
दवाई ले नहीं पाया मगर यूं
नहीं कल जेब में पैसा रहा है
बुलाऊँ मैं उसे घर किस तरह फ़िर
उसी से जब नहीं रिश्ता रहा है
यहाँ तो साथ अपनों का मिला कब
बचपन से आज तक तन्हा रहा है
बनेगा किस तरह सहरी में खाना
नहीं घर आज तो आटा रहा है
अदावत की न कर बात मुझसे
मुहब्बत से आज़म नाता रहा है