ख़याले-यार | Ghazal Khayale-Yaar
ख़याले-यार
( Khayale-Yaar )
ख़याले-यार से बढ़कर कोई ख़याल नहीं
शब-ए-फिराक़ है फिर भी ज़रा मलाल नहीं
किसी की सम्त उठा कर निगाह क्या देखें
तेरे जमाल के आगे कोई जमाल नहीं
जमाले -यार की रानाइयों में खोया हूँ
फ़ज़ा-ए-मस्त से मुझको अभी निकाल नहीं
उड़ेगी नींद तू खोयेगा चैन दिन का भी
दिमाग़ो-दिल में तसव्वुर किसी का पाल नहीं
बयान करने से पहले न अश्क़ बह निकलें
तू पूछ मुझसे परेशानियों का हाल नहीं
मैं तोड़ बैठूँ न ज़ंजीर अपने पैरों की
लहू को यार तू इतना मेरे उबाल नहीं
ये रख रखाव भी उसका है बाइस-ए-हैरत
ग़रूरे -हुस्न पे आया ज़रा ज़वाल नहीं
मैं बेख़ुदी में न ग़ुस्ताखियाँ कहीं कर दूँ
शराब और तू साग़र में मेरे डाल नहीं
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
शब-ए-फिराक़-विरह की रात
मलाल- दुख – पश्चाताप
जमाल – अदितीय रूपवान
ज़वाल – पतन ,गिरावट ,कमी आना ,
बाइसे-हैरत -आश्चर्य का कारण
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