जो ख़त पढ़ो | Ghazal Jo Khat Padho
जो ख़त पढ़ो
( Jo Khat Padho )
जो ख़त पढ़ो तो इबारत पे ग़ौर मत करना
हमारा ज़िक्र किताबों में और मत करना
छुपाये बैठे हैं दिल में ख़िजां के ज़ख़्मों को
हमारे फूल से चेहरे पे ग़ौर मत करना
हरेक सिम्त ही रुसवाइयों के चर्चे हैं
यूँ अपना ज़िक्र मेरे साथ और मत करना
ज़रा मैं दैरो- हरम को भी देख लूँ साक़ी
अभी शराब का यह ख़त्म दौर मत करना
हमारा ज़र्फ़ था चुपचाप पी गये आँसू
किसी ग़रीब पे तुम ऐसा जौर मत करना
छुपाये बैठे हो अब तक जिसे कहानी में
कभी भी उसकी अदाओं पे ग़ौर मत करना
ये बात याद रहे तुमको ऐ मेरे साग़र
मैं राह तकती हूँ रस्ते में ठौर मत करना
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
इबारत – शब्द विन्यास, आलेख
दैरो हरम – मंदिर और काबा , मंदिर, मस्जिद
ज़र्फ़ – सहनशीलता
जौर- अत्याचार
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