Ghazal | लकीर
लकीर
( lakeer )
हाथों की उलझी लकीरों में, तेरा नाम ढूंढ रहा हूँ।
इक बार नही कोशिश ये, बार बार कर रहा हूँ।
शायद नही तू किस्मत में, एहसास कर रहा हूँ।
फिर भी हृदय से कोशिश मैं, हर बार कर रहा हूँ।
कुछ रेखाएं ऐसी है जो, कुछ दूरी तक जाती है।
एक को काट के दूजी रेखा, हाथों में खो जाती है।
कुछ आडी है कुछ तिरछी सी, कुछ त्रिकोण बनाती है।
वो रेखा जो तुझ तक पहुंचे, मुझे नही मिल पाती है।
जीवन का यह द्वंद हृदय में, दिन ब दिन बढ जाती है।
शेर हृदय की सारी उलझन , चेहरे पर आ जाती है।
भूल नही पाता मै तुमको, मन बाँधू चाहे जितना,
इसी लिए हर पल हाथों में, तेरा नाम ढूंढ रहा हूँ।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )