Ghazal nibhaye saath jo
Ghazal nibhaye saath jo

निभाए साथ जो 

( Nibhaye saath jo )

 

 

निभाए साथ जो वो हम सफ़र ऐसा कहाँ मिलता

वफ़ाओ का मगर ऐसा यारों  रस्ता कहाँ मिलता

 

निभाए जो  हमेशा दोस्ती मुझसे  वफ़ा बनकर

मुझे कोई यहाँ ऐसा  मगर  चेहरा कहाँ मिलता

 

तन्हाई दूर हों जाये  यहाँ  तो जीस्त की मेरी

कहीं भी तो मगर ऐसा लगा मेला कहाँ मिलता

 

बसा है झूठ दिल में इस क़दर जब देखिए यारों

यहाँ कोई मगर दिल का यारों सच्चा कहाँ मिलता

 

निशाँ मैं देख लूं उसके तसल्ली हो दिल को मेरे

कहीं भी दूर तक ऐसा मगर सहरा कहाँ मिलता

 

अमीरी दम यहाँ तो तोड़ रही है ग़रीबी का

पूरा मजदूरी का ही देखिए  पैसा कहाँ मिलता

 

यहाँ रहते बहुत से लोग उसके पास में आज़म

मुहब्बत  की  उसी से बात हो मौक़ा नहीं मिलता

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

यह भी पढ़ें : –

तेरे बिना ख़ुशी उदास है जिंदगी | Ghazal tere bina

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here