पगडंडियाँ | Ghazal Pagdandiya
पगडंडियाँ
( Pagdandiya )
जिनके पांव जिंदगी के
पगडंडियों पर नहीं चलते
राहें राजमहल का ख्वाब
सब्जबाग जैसा उन्हें दिखता
जिनके सपने धरा की
धूलों को नहीं फांकते
साकार नामुमकिन सा
उन्हें हो जाता है
जिन्दगानी में समर की
इबारत न लिखी जरा
सुहाने सफर की कल्पना
थोती रह जाती है
मुस्कान की अरमान जो
ओठों पर ना लाये
दुससवारियों बेरुखी से सदा
वह घिरा रहता है
रिश्ते बन जाते हैं
राह चलते-फिरते अक्सर
अंगुलियो की पोरों के
रिश्ते रिसते नहीं मगर
शेखर कुमार श्रीवास्तव
दरभंगा( बिहार)
द्रष्टव्य: उर्दू अदबी की शेर-शायरी में
जज्बात , दर्द और जेहन की
खास अहमियत होती है.
मिर्जा गालिब, राहत इनदौरी
न इसी बल दिया है.