ज़ख्म यादों के

( Zakhm yaadon ke ) 

 

न जानें मुझसे वहीं दिल अजीब रखता है
नहीं मुहब्बत नफ़रत वो क़रीब रखता है

बुरा किया भी नहीं है कभी उसी का ही
वहीं दिल को क्यों मुझी से रकीब रखता है

किसे देखेगा मुहब्बत भरी नज़र से वो
मुहब्बत से ही वहीं दिल ग़रीब रखता है

उड़द जाते है किसी की ज़ख्म यादों के ही
की ज़ख्म पर जब भी पट्टी तबीब रखता है

नमाज रोज़ पढ़े है करे सजदा रब को
उसे ख़ुशी से ख़ुदा ख़ुशनसीब रखता है

कभी किसी का बुरा कर नहीं सकता है वो
जहान जो भी मगर दिल अदीब रहता है

ख़िलाफ़ आज़म करे है वहीं साज़िश मेरे
नहीं मुझसे दिल वहीं हबीब रखता है

शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )

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