Ghazal preshan

परेशाँ | Ghazal preshan

परेशाँ ही इसलिए ये दिमाग़ है मेरा

( Pareshan hi isliye ye dimag hai mera )

 

 

परेशाँ  ही  इसलिए  ये  दिमाग़ है मेरा
ख़ुशी के पल जिंदगी सें फराग़ है मेरा

 

भुलानें को कैसे पीऊं शराब ए यारों
कहीं खोया देखिए वो अयाग़ है मेरा

 

अंधेरे है ग़म भरे ही नसीब में शायद
ख़ुशी का ही बुझ गया वो चराग़ है मेरा

 

भूखे ही अब पेट सोना पड़ेगा मुझको फ़िर
चूल्हे  पे  ही जल गया देखो साग़ है मेरा

 

उल्फ़त की कैसे बढ़ेगी कहानी ये आगे
नहीं आया सुनने को यार राग़ है मेरा

 

कभी नहीं जो मिटेगा मिटाने से भी ये
लगा ऐसा दामन पे ही जो दाग़ है मेरा

 

उजड़ गया है सदा के लिए ही ए आज़म
हरा भरा प्यार का था जो बाग़ है मेरा

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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